‘हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा’ कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया
प्रयागराज हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ०प्र०, प्रयागराज के तत्वावधान में हिन्दी पखवाड़ा के अन्तर्गत ‘हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा’ गाँधी सभागार, हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ०प्र०, प्रयागराज में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन एवं सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यापर्ण के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में सम्मानित कवियों का स्वागत पुष्पगुच्छ एवं प्रतीक चिह्न देकर एकेडेमी के सचिव।
देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत करते हुए एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा ‘हिन्दुस्तानी एकेडेमी वर्ष पर्यन्त हिन्दी साहित्य के संवर्धन एवं विकास के लिये कार्य करती है। इसी क्रम में हिन्दी पखवाड़ा के अवसर पर अत्यन्त अल्प समय में इस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया है। मेरा यह प्रयास रहता है कि हिन्दी तथा उसकी क्षेत्रीय भाषाओं (अवधी/ब्रज / बुन्देली/भोजपुरी) के विकास एवं संवर्धन में हिन्दुस्तानी एकेडेमी महत्वपूर्ण भूमिका निभाये।
इसके तहत हमने नगर तथा नगर के बाहर के भी क्षेत्रों से रचनाकारों को लेकर यह कार्यक्रम कराने का निर्णय लिया है। आपके सहयोग और मार्गदर्शन से एकेडेमी अपने संकल्पों को पूरा करने के लिये कटिबद्ध है। एकेडेमी साहित्यानुरागियों के अनुराग से चलने वाली संस्था है।’ कवि सम्मेलन में आमंत्रित रचनाकार डॉ. विनय शंकर दीक्षित उन्नाव, डॉ. शशांक प्रभाकर आगरा, डॉ. कमलेश राय कादम्बिनी सिंह – बलिया, सत्येन वर्मा – इन्दौर, राहुल शर्मा – मुरादाबाद,, डॉ. शुभम् त्यागी मेरठ, प्रीति त्रिपाठी – नई दिल्ली, महेश श्रीवास्तव – बस्ती, दानबहादुर सिंह – वाराणसी, सौरभ कुमार प्रयागराज, अभिजीत मिश्रा – रायबरेली, मनोज मद्रासी – अमरावती ने काव्य पाठ किया।
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ. कमलेश राय मऊ ने तथा संचालन डॉ. श्लेष गौतम ने किया। कवि सम्मेलन में कवियों ने कविता के सभी रसों से सराबोर किया तथा समाज की विसंगतियों पर प्रहार करते हुए कविताएँ सुनायी गयीं। विषेषकर सामाजिक सरोकारों से रुबरु होते हुए रचनाकारों ने रचनाओं में विविध रंग उड़ेले जिनका रसास्वादन करके श्रोता भाव विभोर हो गये।
आमंत्रित रचनाकारों के काव्य पाठ
दियना घरे घरे बारा
राह सगरी सवारा
चान अंगने उतारा
कि अंजोरिया बढ़े न
*डॉ. कमलेश राय, मऊ* *अध्यक्षता*
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा।
यह है हमको देवलोक से ज्यादा प्यारा।।
देवनागरी लिपि अपनी देवों की वाणी हुं।
समुचित कल्याण यही अपना, कल्याणी हुं।।
*डॉ. विनय दीक्षित, उन्नाव*
दौलत की झंकार नहीं
फन की खनक रखते हैं
हम फकीरों की बात मत पूछो
मुट्ठी में फलक रखते हैं
माना कि तुम सूरज हो
हमे तुमसे क्या लेना
हम जुगनू ही सही
खुद की चमक रखते हैं
*सत्येन वर्मा, इंदौर*
धन दौलत तो साथ में घड़ी दो घड़ी होती है
जीस घर में माँ-बाप होते है
वह जगह जन्नत से ज्यादा बडी होती है
*मनोज मद्रासी, अमरावती*
दुनिया के प्रश्नों का हल तो नहीं ये पर दुनिया के अधरों पे ताले
पड आये थे,
लखन जी देख-देख रो रहे थे फूट-फूट इतना कि नयनों में छाले
पड़ आये थे,
प्रथ्वी भी रो रही थी, अग्नि भी रो रही थी, चरणों में मानो जैसे
भाले पड़ आये थे,
सीता जी तो अग्नि में जली नहीं थी परन्तु राम जी के हृदय में छाले पड़ आये थे,
*अभिजीत मिश्रा, रायबरेली*
कठिन समय का हल होती है। नई पहल होती है
इंकलाब होती है कविता गंगाजल होती है
प्रेम हुआ करती है कविता त्याग हुआ करती है
राजमहल में मीरा सा बैराग हुआ करती है
*श्लेष गौतम, प्रयागराज*
चांद को तन्हा तकने लगी आजकल।
कहती माँ हे सयानी हुयी आजकल !
सामने बैठ दर्पण के इठलाके में।
बात खुद से ही करने लगी आजकल !
*शुभम त्यागी, मेरठ*
द्वेष और ईष्या को छोड़ मन स्वस्थ रहे,
स्वच्छता का ऐसा परिवेश होना चाहिए
लेखनी उठाऊं जब जब भी मां शारदे मैं
सार्थक कोई संदेश होना चाहिए
याचना को छोड़ हम सभी कर्मयोगी बनें,
भाव नहीं लिप्सा का शेष होना चाहिए
देश की अखंडता में सौंप देवें मन प्राण
हम रहें या ना रहे देश होना चाहिए
*प्रीति त्रिपाठी (दिल्ली)*
नज़र में तेरी हम जहाँ देखते हैं
जमीं तो ज़मीं आसमां देखते है।
तुम आओ तो बन जाए ये घर, वगरना
इसे तो फ़क़त हम मकां देखते हैं
न दिखती जिन्हें आग अपने घरों की
वो औरों के घर का धुआं देखते हैं।
*डा0 कादम्बिनी सिंह, बलिया*
शोलों से यारी हो गयी अंगार के लिए।
सबसे निभाना ही पड़ा घर बार के लिए
से साधु बनने की मुश्किल बहुत थी राह,
इक शख्श मारना पड़ा किरदार के लिए ||
*शशांक नीरज आगरा ‘*
हर कोई हमें सुन ले हम वो तान नहीं
आसान हैं पर इतने भी आसान नहीं
होते हुए तुम्हारा हम हो जायें किसी के
नादान है पर इतने भी नादान नहीं है
*महेश श्रीवास्तव, बस्ती*
हरेक बदनामी और शोहरत लिएका के लाती है उम्र अपनी
कभी जो खबरों की सुर्खियाँ थे अब उनका चर्चा कहीं नहीं है
अगर वसीयत लिखोगे अपनी तो जान पाओगे में हकीकत
तुम्हारी अपनी ही मिल्कियत में तुम्हारा हिस्सा कहीं नहीं है।
*राहुल शर्मा, गुरादाबाद*
तुम्हें ये ध्यान रखना था जरा ईमान रखना था
कहानी में तुम्हें अपनी मेरा सम्मान रखना था
*दान बहादुर सिंह, वाराणसी*
कलम है हथियार मेरा कलम ही संसार
कलम से करता रहूंगा शब्द के श्रृंगार
*सौरभ श्री प्रभागराज*
कार्यक्रम के अंत में एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर डॉ. शान्ति चौधरी, प्रदीप तिवारी, एम एस खान, अंजना खरे, क्षमा द्विवेदी, डॉ. दुर्गा प्रसाद तिवारी, अशोक त्रिपाठी, लालता प्रसाद यादव, आदि उपस्थित रहे।