शत्रु संपत्ति यानी बटवारे के वक्त पाकिस्तान गए लोगो की संपत्ति……बटवारे के 75 साल बाद भी पाकिस्तान गए लोगो के नाम दर्ज संपत्ति सिस्टम पर सवाल खड़े करती है
कानपुर देहात
मुल्क के इतिहास में 14 अगस्त की तारीख आंसुओं से लिखी गई एक ऐसी इमारत है जिसमें बेइंतेहा दर्द, गम, गुस्सा, और एक पछतावे का भाव है यही वह दिन थ जब देश का बटवारा हुआ और 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त 1947 को भारत को एक अलग राष्ट्र घोषित कर दिया गया लेकिन बटवारे 75 साल बाद भी भारत से पाकिस्तान गए लोगो की अचल संपत्ति ( शत्रु संपत्ति ) आज भी सरकारी अभिलेखों में दर्ज है यानी पाकिस्तान की नागरिकता लेने के बाद भी पाकिस्तानी नागरिकों की ज़मीन कानपुर देहात में है जो सिस्टम पर सवालिया निशान लगाता है
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आखिर क्या है शत्रु संपत्ति
पाकिस्तान में 1965 में हुए युद्ध के बाद 1968 में शत्रु संपत्ति संरक्षण एवं पंजीकरण अधिनियम पारित हुआ था किस अधिनियम के अनुसार जो लोग बंटवारे या 1965 में और 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान चले गए वहां की नागरिकता ले ली थी उनकी सारी अचल संपत्ति शत्रु संपत्ति घोषित कर दी गयी है फिलहाल इन शत्रु संपत्तियों की देख रेख की ज़िम्मेदारी कस्टोडियल ऑफ एनीमी प्रॉपर्टी फॉर इंडिया के पास है
सरहदों के बंटवारे होने के बाद शत्रु मुल्क के नाम से जाना जाने वाला पाकिस्तान का जब भी ज़िक्र आता है तब तब भारत में सियासत गरमा जाती है लेकिन जब ज़िक्र मात्र से ही हंगामा खड़ा हो जाता है अगर ऐसे में भारत में करोड़ों की जमीन के मालिकाना हक अगर पाकिस्तान में रह रहे नागरिकों के नामो की ज़मीन यहां हो तो चौकना लाजमी है आइए हम आपको एक ऐसे सच से रूबरू कराते है जिसके बारे में ना तो आपने कभी सुना होगा ना ही आप उसके बारे में जानते होंगे।गौर से देखिए इस ज़मीन को जहां तलक नजर जा रही है वहां तक की ज़मीन भारतीय नागरिक की नहीं बल्कि पाकिस्तान में रह रहे लोगों के नाम दाखिल है और ये हम नहीं कह रहे है बल्कि सरकारी अभिलेख बोल रहे है अब जरा गौर से देखिए इन सरकारी दस्तावेजों को इनमें दर्ज भूस्वामी के नामो को और निवास स्थान के कॉलम को इसमें भारत कि जगह पाकिस्तान लिखा है ये दस्तावेज पाकिस्तान के नहीं बल्कि यूपी के कानपुर देहात जिले के अलग अलग भूमि गाटा संख्या के अभिलेख है हैरत की बात ये नहीं है कि ये लोग पाकिस्तान में रहने वाले है खास बात ये है कि अरसा पहले मुल्क छोड़ चुके यह लोग आज भी यहां करोड़ों कि ज़मीन के मालिक बने बैठे है ताजा रैवन्यू रिकॉर्ड के अनुसार मुल्क के नाम के स्थान पर पाकिस्तान का नाम दर्ज है, दरअसल कानपुर देहात के अकबरपुर तहसील के अन्तर्गत आने वाला बारा गांव इस वक़्त सुर्खियों में है आपको बताते चले की सरहदों का बंटवारा होने के बाद यहां के रहने वाले लोग पाकिस्तान में जा बसे बंटवारे के बाद उनका यहां आना जाना भी नहीं हुआ संभव है कि सभी लोग अब जीवित भी ना हो लेकिन उनकी जमीने लावारिस पड़ी है या फिर अन्य लोगों ने उन जमीनों पर कब्जा कर रहे है।
दरअसल सरकारी अभिलेखों में दर्ज मुल्क के नाम पर भारत के सरकारी दस्तावेजों में कानपुर देहात की कुछ जमीनों के खतौनी में दाखिल भू स्वामियों के निवास स्थान के कॉलम में शत्रु देश पाकिस्तान का नाम अंकित है जिसने सरकारी महकमे और उनकी कार्य प्रणालियों पर तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं लंबे अरसे से दर्ज भारत की जमीनों पर गैर मुल्क का नाम प्रशासनिक अधिकारियों की बड़ी लापरवाही को दर्शाता है अगर हम नियम की बात करें तो हर 6 वर्ष में भूमि अभिलेख के दस्तावेजों की छानबीन की जाती है और उन अभिलेखों को दर्ज त्रुटियों को सही भी किया जाता है साथ ही साथ उन सभी दस्तावेजों को तहसील स्तर पर नवीनीकरण भी किया जाता है लेकिन अरसे से कानपुर देहात की कुछ जमीनों में दर्ज गैर मुल्क पाकिस्तान का नाम अभी तक बदस्तूर अंकित है सवाल यह खड़ा होता है कि जब हर 6 साल में दस्तावेजों में नवीनीकरण की प्रक्रिया करी जाती है तो फिर लंबे अरसे से दर्ज पाकिस्तान का नाम अभी तक जमीनों की कुछ खतौनियों में क्यों अंकित है
इस बाबत जब हमने कानपुर देहात की जिलाधिकारी नेहा जैन से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें इस जनपद में चार्ज लिए कुछ दिन ही हुए हैं और उन्हें इस तरह के मामले की ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन उन्होंने इस बात को स्वीकार भी कर लिया कि इस तरह की जमीनों के कागजों में गैर मुल्क को जोड़ना नियमता सही नहीं है और इस तरह की भूमियों का निरीक्षण किया जाएगा साथ ही साथ जांच पड़ताल कर इन जमीनों की जानकारी कर शासन स्तर पर अवगत भी कराया जाएगा जिला अधिकारी ने बताया कि कुछ भूमिया शत्रु संपत्ति में भी दाखिल हो गए है जिस का अधिग्रहण उनके द्वारा किया जाएगा। वही जब हमने मौके पर पहुंचकर जमीन का मुआयना अकबरपुर तहसील के लेखपाल और 12 गांव के प्रधान के साथ किया तो प्रधान महोदय ने हमको बताया कि इस तरह की जो कमियां हैं जो गलतियां हैं वह सही नहीं है और इसके लिए वह अधिकारियों को ही जिम्मेदार मान रहे हैं