प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कारण भारत के महान लोकतंत्र की 75 वर्षों की संसदीय यात्रा पर गर्व करने का अवसर हमें मिला
देश की 75 वर्ष की संसदीय यात्रा में आपातकाल के 21 काले महीनों में लोकतंत्र के इस मंदिर पर काला दाग लगा था
धारा 370 एवँ 35 ए समाप्त करना भारतीय संसद का ऐतेहासिक फैसला
लोकसभा मुख्य सचेतक साँसद राकेश सिंह ने संविधान सभा से अब तक 75 वर्षों की संसदीय यात्रा- उपलब्धियां, अनुभव, स्मृतियाँ और सीख पर केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में रखा पक्ष*
जबलपुर। देश और दुनिया में अनेक अवसर होते हैं जो इतिहास के पन्नों पर अंकित होते हैं, और कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो इतिहास में अंकित होने पर इतिहास भी जिन्हें सहेजना चाहता है, और आज जो घट रहा है उसे अवसर के रूप में बदलने वाले हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी को मैं संपूर्ण देशवासियों की तरफ से आभार प्रकट करना चाहता हूं, जिनके कारण भारत के महान लोकतंत्र की 75 वर्षों की संसदीय यात्रा पर गर्व करने का अवसर हमें मिला है यह बात लोकसभा के मुख्य सचेतक एवँ जबलपुर साँसद राकेश सिंह ने संसद के विशेष सत्र के दौरान संविधान सभा से अब तक 75 वर्षों की संसदीय यात्रा- उपलब्धियां, अनुभव, स्मृतियाँ और सीख पर केंद्र सरकार की ओर से चर्चा करते हुए लोकसभा में कही।
साँसद राकेश सिंह ने कहा उन्होंने कहा 1952 के बाद से पिछले 71 वर्षों मे इस भवन ने अनेक विद्वान सांसदों के भाषणों को सम्मान से सुना है। इस सदन ने जवाहरलाल नेहरू – पिलू मोदी, जवाहरलाल नेहरू – अटल बिहारी बाजपेयी, जवाहरलाल नेहरू – फिरोज गांधी जैसे लोगों की नोकझोंक भी सुनी है। मधु लिमये, डॉक्टर लोहिया, श्रीपाद डांगे, आचार्य कृपलानी, इंद्रजीत गुप्त, ओम प्रकाश त्यागी, प्रकाश वीर शास्त्री, लालकृष्ण अडवाणी, कार्तिक उरांव, मधु दंडवते, सुषमा स्वराज जैसे उत्कृष्ट सांसदो की इतनी लंबी परंपरा है कि सबके नाम लेना संभव भी नही है। तब से आज तक, हमारे इस विशाल देश में हमारी इस लोकसभा और राज्यसभा के माध्यम से, लोकतंत्र का प्रवाह अविरल बह रहा है किन्तु इसने एक ही अपवाद था 26 जून 1975 से 23 मार्च 1977 का कालखंड। यानि आपातकाल के 21 काले महीनों में लोकतंत्र के इस मंदिर पर काला दाग लगा था। आपातकाल के उन 21 महीनो मे, इस देश के मौलिक अधिकारो का हनन करके पूरे देश को ही कारावास मे बदल दिया गया था। किंतु इस देश की जनता परिपक्व है। समझदार है। उसने रक्तहीन क्रांति करके, संपूर्णतः लोकतांत्रिक पद्धति से कांग्रेस को सबक सिखाया था।
साँसद सिंह ने कहा भारतीय लोकतंत्र की सुंदरता देखिए, कि आपातकाल के अंतिम दिनों में लोकतंत्र के इस दाग को हटाने बाबू जगजीवन राम, आचार्य कृपलानी, विजय लक्ष्मी पंडित, हेमवती नंदन बहुगुणा,चंद्रशेखर जैसे लोग आए जो कांग्रेस की संस्कृति में पले-बढे थे इसीलिए, अपने पार्टीगत मतभेदों को दूर रखकर इस सदन ने कई बार, स्पष्ट और उच्च स्वर मे एकमतेन प्रस्ताव पारित किये हैं, जैसे – 22 फरवरी 1994 को हमारे सदन ने एकमत से यह प्रस्ताव पारित करके विश्व को साफ संदेश दिया था कि संपूर्ण जम्मू-कश्मीर हमारा हैं। पाकिस्तान और चीन को कब्जा किये हुए भूभाग से हटना ही पडेगा, और इस कश्मीर मुक्ति के संकल्प पर, सारा सदन एक हैं। पूरे विश्व को दिया गया भारत का यह संदेश एकदम स्पष्ट था कि यदि देश की एकता और अखंडता पर कोई संकट आएगा तो भारत एक था एक है और एक रहेगा।
*धारा 370 समाप्त करना ऐतेहासिक फैसला :*
साँसद सिंह ने कहा यह सदन इतिहास की गलतियों को सुधारने वाले एक फैसले के लिए भी जाना जाएगा।इसी सदन में भारत का अटूट हिस्सा रहे जम्मू कश्मीर को लेकर चर्चाएं हुई है। इसी सदन के सदस्य रहे डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस गलती का विरोध किया था, उन्होंने कहा था कि देश में दो प्रधान, दो विधान और दो निशान कैसे हो सकते हैं? उन्होंने इसी सदन में स्पष्टता से कहा था कि यह कैसे हो सकता है देश में जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र राज्य का दर्जा देने की मांग करने वाले शेख अब्दुल्ला क्या जम्मू और लद्दाख की जनता को भी अधिकार देंगे? यह देश की अखंडता के साथ खिलवाड़ होगा। परंतु यह निर्णय हुआ और हम सब ने देखा कि इस गलत निर्णय की कीमत निरपराध और मासूम लोगों को अपनी जान और इज्जत की कीमत पर चुकानी पड़ी परंतु हम सब गवाह है कि इसी सदन में माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में देश के गृह मंत्री माननीय अमित शाह ने जब धारा 370 व 35 ए के खात्मे का बिल प्रस्तुत किया। तो इतिहास में दर्ज होने वाली बहस भी इसी सदन में हुई। जिसका जवाब देते हुए माननीय गृह मंत्री जी ने कहा था कि देश की एकता और अखंडता के लिए आवश्यकता पड़ी तो जान भी दे देंगे और धारा 370 और 35 ए की समाप्ति के साथ आज जम्मू कश्मीर विकास की इबारत लिख रहा है।
*लोकतंत्र का उद्गम भारत में हुआ*
साँसद राकेश सिंह ने कहा अभी कुछ दिन पहले जी – ट्वेंटी सम्मेलन के अवसर पर भारत मंडपम मे आयोजित ‘लोकतंत्र की जननी – भारत’ यह प्रदर्शनी हममे से अनेकों ने देखी होगी।
विश्व मे लोकतंत्र का उद्गम किस प्रकार से भारत मे हुआ है, इसका सुंदर चित्रण किया है। इस मान्यता को विश्व के सामने प्रभावी रूप से लाने के लिए मै प्रधानमंत्री मोदी जी को साधुवाद देता हूं।
ऋग्वेद को विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना गया है। इसी ऋग्वेद में हमारी लोकतंत्रिक परंपराओं का स्पष्ट उल्लेख है। ऋग्वेद में 40 स्थानो पर तथा अथर्व वेद मे 9 स्थानों पर ‘गणतंत्र’ शब्द का उल्लेख आता है। अर्थात, हजारो वर्षों से हमारे भारत में लोकतांत्रिक गणतंत्र की सनातनी परंपरा रही है। ऋग्वेद के दसवें अध्याय के 174 वें सूक्त के पहले मन्त्र के अनुसार, ‘देश मे राजा या राष्ट्राधिपति के चुनाव होते रहे है’। आत्वा हर्षितमंतरेधी ध्रुव स्तिष्ठा विचाचली:।
विशरत्वा सर्वा वांछतु मात्वधं राष्ट्रमदि भ्रशत ।।
अर्थात – हे राष्ट्र के अधिपति, मै आपको चुनकर लाया हूं। आप सभा के अंदर स्थिरता बनाये रखे। सारी प्रजा आपको चाहेगी। आपके द्वारा राज्य पतित नही होगा।
उन्होंने कहा अथर्ववेद के तीसरे अध्याय के चौथे भाग का दूसरा मंत्र है- त्वां विशेष वृणता राज्याय त्वामिमाः प्रदिशाः पंचदेवी: ।
वश्मन राष्ट्रस्य कुकदि श्रयस्व, ततो व उग्रो विमजा वसूनि ।।
अर्थात – देश मे बसने वाली प्रजा, मतलब देश के नागरिक, आपको राष्ट्राधिपति या प्रतिनिधि चुने। ये विद्वानों की बनी उत्तम मार्गदर्शक पंचायतें, आपका अनुमोदन करे। ऐसे अनेक उदाहरण, अनेक श्लोक, अनेक मंत्र हमे वेदों मे मिलेंगे, जो इस बात को रेखांकित करते है कि लोकतंत्र यह हमारी सनातन परंपरा है। हमारे खून मे लोकतंत्र है। इसलिये प्रधानमंत्री जी द्वारा भारत को ‘लोकतंत्र की जननी’, अर्थात ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ कहना विश्व को भारत के लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराता है।
चाहे महाभारत हो या बौद्ध साहित्य, ‘गणतांत्रिक प्रणाली’ का उल्लेख सभी स्थानो पर है।
उन्होंने कहा वैशाली साम्राज्य का लिच्छवी गणराज्य, मिथिला का विदेह, कपिलवस्तू का शाक्य, काशी का मल्ल और अटल, अराट, मालव… यह सभी गणराज्य लोकतांत्रिक प्रणाली के उदाहरण है। वैशाली के पहले राजा, विशाल का चयन, चुनाव के द्वारा हुआ था।
जब अलेक्झांडर ने आक्रमण किया उसके बीस वर्ष बाद यूनान का राजदूत मेगास्थनीज, भारत मे चंद्रगुप्त मौर्य के शासन मे आया था।
उसने अपनी पुस्तक मे भारतीय गणराज्यों की लोकतंत्रिक प्रणाली का विस्तार से उल्लेख किया है।
*हम लोकतांत्रिक प्रणाली के संवाहक है*
उन्होंने कहा मैं यह सब यहां विस्तार से बता रहा हूं, वो इसलिये कि पूरे विश्व मे, हम लोकतांत्रिक प्रणाली के संवाहक है और इसीलिए 1895 मे बाल गंगाधर तिलक जी ने सबसे पहले संविधान सभा बनाने की मांग उठाई थी। जब अंग्रेज भारत को स्वतंत्रता देने को विवश हुए, तब 6 दिसंबर 1946 को उन्होने संविधान सभा का गठन किया। 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिलने के बाद, भारत के लिए यह संविधान सभा पूर्णतः प्रभुता संपन्न बन गई।
सच्चिदानंद सिंह जी इसके अस्थाई अध्यक्ष रहे। बाद मे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष बनाया गया। संविधान बनाने वाली प्रारूप समिति की अध्यक्षता, डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर जी को दी गई। संविधान विशेषज्ञ, बी एन राव जी का भी इसमे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इस संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 महिने 18 दिन मे, कुल 165 दिन बैठकें की। संविधान सभा की कार्यवाही पूर्णतः पारदर्शी व लोकतांत्रिक थी। इसकी बैठकों मे प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थी।
उन्होंने कहा आज जो हमारा सेंट्रल हॉल है, वहा 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई। इसमे बोलने वाले पहले वक्ता थे आचार्य कृपलानी जी। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान को मान्यता दी और इस संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई। जैसा कि हम सभी जानते है, 26 जनवरी 1950 को संपूर्ण संविधान लागू हुआ, जिसकी परिणति संसद, अर्थात लोकसभा – राज्यसभा गठित करने मे हुई।
उन्होंने कहा लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर मे, लोकसभा का पहला सत्र प्रारंभ हुआ वह दिन था, मंगलवार 13 मई 1952।
लोकसभा के हमारे पहले अध्यक्ष माननीय वी मावलंकर ने कुछ आदर्श परंपराये इस सदन के सामने रखी। स्वस्थ बहस की परंपरा इस सदन मे चलना प्रारंभ हुई। उनके बाद के अध्यक्षों ने भी सदन को कुशलता से चलाते हुए, इसे लोकतांत्रिक प्रणाली के मंदिर के रूप मे प्रस्थापित किया और इस कारण, भारत मे एक मजबूत और स्वस्थ संसदीय संस्कृति की नीव डाली जा सकी। जो हमारे अध्यक्ष माननीय बिरला जी के प्रभावी कार्यकाल में भी जारी है।
*पुराने क़ानून* :- सिंह ने कहा देश में अभी कुछ समय पहले तक कुछ ऐसे ब्रिटिशकालीन क़ानून अस्तित्व में थे जिनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी थी, परन्तु फिर भी वे अमल में लाये जा रहे थे। 1400 से ज्यादा ऐसे कानूनों को समाप्त करने में पीढियां निकल गई, लेकिन इस सदन को प्रसन्नता है कि माननीय मोदीजी के नेतृत्व वाली सरकार ने इन्हें समाप्त कर भारत के लोकतंत्र का सम्मान ही बढाया है।
सिंह ने अपनेउद्बोधन ने कहा कि अंबेडकर जी ने कहा था
“हमने जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा बनाई गई सरकार का सिद्धांत स्थापित किया है तो हमें प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम हमारे रास्ते में खड़ी बुराइयों की पहचान करने और उन्हें मिटाने में ढिलाई नहीं करेंगे। देश की सेवा करने का यही बेहतर रास्ता है।” यह अंबेडकर जी के विचार हैं पर इनकी व्याख्या अपने-अपने तरह से हो सकती है पर उसका विचार एकदम स्पष्ट है कि प्रतिज्ञा पूर्वक बुराईयों को मिटाना। क्या भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी नैतिक और सामाजिक बुराई नहीं है? और इसलिए जब देश के गरीब से गरीब आदमी का भी जनधन खाता खोला जाता है तो यह भ्रष्टाचार पर सबसे बड़ी नकेल नहीं है? ताकि इस सदन में बनी योजनाओं में यदि हम 100 पैसा किसी गरीब या लाभार्थी को भेज रहे हैं तो उसके पास पूरा पैसा ही पहुंचे।
तो क्या यह देश के लोकतंत्र और संविधान निर्माता अंबेडकर जी के विचारों का सम्मान नहीं है?
उन्होंने कहा मै नेहरू जी को उधृत करना चाहूंगा, संविधान सभा की बैठक में एक संकल्प पर चर्चा के दौरान 22 जनवरी 1947 को उन्होंने कहा था “एक व्यक्ति जो भूखा है, गरीब है, पहनने को कपड़े नहीं है उसके लिए तब तक वोट डालने का भी महत्व नहीं है।
महोदय, हम अपने महान लोकतंत्र में कब तक लोगों को भूखा और गरीब रखकर उसके वोट के महत्व की प्रतीक्षा करेंगे और यदि देश के प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी ने उसकी गरीबी दूर करने के लिए प्रधानमंत्री आवास का पक्का मकान उसको दिया। जिसके घर दीपावली के दिन की बिजली का बल्ब नहीं जला, उसके घर बिजली का कनेक्शन दिया। उज्जवला का गैस सिलेंडर दिया।
शौचालय दिया और कोरोना से अब तक मुफ्त का राशन दिया
और ऐसा करते समय बिना किसी भेदभाव के सबको समान अवसर दिए तो क्या उस गरीब को वोट डालने का महत्व स्थापित करना तथा यह लोकतंत्र का सम्मान नहीं है?
*साझा प्रयास :* साँसद सिंह ने कहा आज इस सदन में उपस्थित विभिन्न विचारों व दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले अपने सभी साथी सांसदों का भी आह्वान करना चाहूंगा कि ये गौरवशाली यात्रा हम सभी की है।
यह हमारे और आपके साझा प्रयासों की कहानी है। और अब जब हम माननीय प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता और संकल्प से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं,
और तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं, तब हम विश्व में एक महाशक्ति के रूप में आने जा रहे हैं और इस समय हम पूर्णतः भारतीय ज्ञान, व भारत की अपनी आर्थिक ताकत के बूते बने संसद के नए भवन में प्रवेश कर गुलामी के प्रतीकों को हटाते हुए आगे बढ़ रहे हैं, तब हमारी साझा जिम्मेदारी है
कि नए भवन को भावी पीढ़ियों और भविष्य के भारत की नींव रखने वाले लोकतंत्र के उस मंदिर के रूप में स्थापित करें
जहां मंदिर के घंटे के नाद की तरह एक ही गूंज हो- सबका साथ सबका विकास सबका प्रयास और सब का विश्वास। विश्वास मानिए 140 करोड़ भारतीयों के स्वप्न का भारत हम मिलकर बना लेंगे इतनी ताकत है इस मंत्र में।
उन्होंने कहा मैं हमारे सदन की प्रेस मीडिया गैलरी में बैठे व देश के सभी मीडिया के साथीगणों के प्रति भी आभार प्रकट करता हूं।
यह हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है जो संविधान सभा से आज तक हमेशा हमारी संसदीय प्रणाली का हिस्सा रहा है और हमारे प्रयासों को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया है।
यह यात्रा कितनी महत्वपूर्ण और सार्थक है कि जब संविधान सभा हुई तो इसकी कार्यवाही का सीधा प्रसारण आकाशवाणी के माध्यम से देश ने सुना था और आज संसद टीवी के माध्यम से देश इसे प्रत्यक्ष देख रहा है। मै हमारी इस यात्रा में संसद के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी धन्यवाद देना चाहूंगा।
संविधान सभा की पहली बैठक से आज तक का यह सफ़र इनके बिना पूरा नहीं हो सकता। मैं अपने नेतृत्व के प्रति भी आभार प्रकट करना चाहता हूं जिन्होंने इतिहास में अंकित होने वाली इस चर्चा में बोलने का मौका दिया।