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समान नागरिक संहिता आवश्यकता और अवसर विषय पर संगोष्ठी सम्पन्न

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समान नागरिक संहिता आवश्यकता और अवसर विषय पर संगोष्ठी सम्पन्न

विषय प्रवर्तन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य विनम्र सेन सिंह ने किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ मृत्युंजय राव परमार ने कार्यक्रम का संचालन किया।

विशिष्ट वक्ता श्री राकेश पाण्डेय, पूर्व अध्यक्ष हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने कहा कि संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक सिद्धांत हैं जिनमें अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि विधायिका उचित समय पर समान नागरिक संहिता का निर्माण करेगी। मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को अपनी हिंदू बहनों के बराबर विवाह, उत्तराधिकार आदि के कानून नहीं हैं। ट्राइब्स के कस्टमरी कानून भी अलग-अलग हैं। पिछले लॉ कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी समान कानून का समय नहीं है, पर मैं कहता हूं कि यही समय है।

मुख्य अतिथि श्री नीरज सिंह ने प्रयागराज की विशिष्ट भूमि का अभिनंदन किया और कहा कि यूनिफॉर्म और कामन शब्द में अंतर है। नागरिक संहिता सभी नागरिकों के लिए समान होनी चाहिए। समान नागरिक संहिता के विरोध में मुस्लिम समुदाय सबसे मुखर है जबकि अन्य अल्पसंख्यक समुदाय जैसे पारसी, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई इसके विरोध में नहीं हैं। क्रिश्चियन बहुल गोआ में समान नागरिक संहिता लागू है और किसी समुदाय ने अब तक कोई पीड़ा व्यक्त नहीं की। मुस्लिम महिलाएं तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने के अधिकार के मामले में अन्य समुदाय की महिलाओं से अपने को कमतर पाती हैं। पीड़ित हैं, पर अपनी पीड़ा मुखर रूप से व्यक्त नहीं कर पातीं। यह भारतीय युवाओं का कर्तव्य है कि वे पीड़ितों के स्वर बनें और लोगों को जागरूक कर समान नागरिक संहिता की स्वीकार्यता के लिए वातावरण तैयार करें।

सेवा निवृत्त न्यायमूर्ति सुनीत कुमार जी ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि किसी भी देश की आर्थिक उन्नति के लिए समाज में भी सुधार आवश्यक है। भारत की 80% आबादी पर आज समान नागरिक संहिता लागू है। 1955 में हिन्दू कोड बिल पास हो जाने के बाद हिंदुओं में जागरूकता आई और एक तरह से जाति की दीवार गिरी। हिंदू कानून में धीरे-धीरे बहुत सुधार हुए। 14 फीसदी आबादी जो आज समान नागरिक संहिता का विरोध करती है 1937 के पहले इन पर भी हिंदुओं के कानून ही लागू होते थे। एक साज़िश के तहत 1937 में शरियत कानून लागू किया गया। इसके पीछे उलेमा थे, इस्लामिक स्कॉलर और मुस्लिम जमींदार थे। उस समय कई मुस्लिम समुदायों ने शरिया का विरोध किया था जिनमें मालाबार के मुस्लिम एवं खोजा आदि थे। अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाय तो विवाह के लिए होने वाले धर्मांतरण बंद हो जाएंगे और सांप्रदायिक दीवार ढहने लगेगी। तीन चौथाई मुस्लिम आबादी शरिया की वजह से पसमांदा (पिछड़ा) है, यदि समान नागरिक संहिता लागू हुई तो यह भी समाज की मुख्य धारा में आ जाएगी।

गोष्ठी के संयोजक सुजीत सिंह  ने धन्यवाद ज्ञापन किया। सेवा के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने वाले नागरिकों का मुख्य अतिथि ने सम्मान भी किया। डॉ बी. बी. अग्रवाल, श्री अरुणेंद्र सिंह अन्नू, डॉ सुजीत सिंह (इविवि), अभिषेक राय सूर्या, अमित सिंह विकाश, डॉ•सर्वेश सिंह, शैलेंद्र मौर्या,वेद दुबे आदि गणमान्य जन मौजूद रहे ।

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