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अखण्ड भारत के देशों में तेजी से फैल रही सनातन सांस्कृतिक चेतना: शंकराचार्य अधोक्षजानंद

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अखण्ड भारत के देशों में तेजी से फैल रही सनातन सांस्कृतिक चेतना: शंकराचार्य अधोक्षजानंद

-30वें पीठारोहण पर जगद्गुरु के माघ मेला शिविर में हुये भव्य अनुष्ठान

-भारी संख्या में संत-महात्माओं व श्रद्धालुओं ने शंकराचार्य का किया अभिवादन

-साल भर मनाया जाएगा शंकराचार्य का 30वां पीठारोहण, देश भर में होंगे आयोजन


प्रयागराज । पूर्वाम्नाय गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देवतीर्थ जी महाराज का 30वां पीठारोहण समारोह आज माघ मेला स्थित शंकराचार्य शिविर में पूरी भव्यता के साथ मनाया गया। इस दौरान मठ के आचार्यों द्वारा शिविर में शिवार्चन एवं यज्ञ समेत विविध अनुष्ठान सम्पन्न किए गए।

अनुष्ठान में उपस्थित भारी संख्या में संत-महात्माओं और श्रद्धालुओं ने शंकराचार्य अधोक्षजानंद देवतीर्थ का फूल-माला, पुष्पगुच्छ और अंगवस्त्र से भव्य स्वागत व अभिवादन किया। जगद्गुरु ने भी सभी को आशीर्वाद दिया। इस अवसर पर संतों को कंबल वितरित किया गया और वृहत् भंडारे का भी आयोजन हुआ।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जगद्गुरु अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने कहा कि आद्य शंकराचार्य भगवान के पथ का अनुसरण करते हुए गोवर्धन पीठ द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा अखंड भारत में सनातन धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार किया जा रहा है।

शंकराचार्य ने बताया कि श्रीलंका, नेपाल, थाईलैंड और कंबोडिया सहित अखण्ड भारत के 18 देशों में भारतीय सांस्कृतिक चेतना बड़ी तेजी से फैल रही है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भारत सरकार की मौजूदा नीतियों के चलते अखंड भारत के सभी देश राजनीतिक एकीकरण की दिशा में भी शीघ्र ही उन्मुख होंगे।


नवंबर 2021 से अखंड भारत के भ्रमण पर हैं शंकराचार्य अधोक्षजानंद

गौरतलब है कि शंकराचार्य अधोक्षजानंद देवतीर्थ नवंबर 2021 से 12 ज्योतिर्लिंग एवं 52 शक्तिपीठ यात्रा के अंतर्गत अखंड भारत का भ्रमण कर रहे हैं। देश के विभिन्न राज्यों समेत श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल की यात्रा के बाद हाल ही में उन्होंने थाईलैंड और कंबोडिया की यात्रा सम्पन्न की है। शीघ्र ही वह अखंड भारत के अन्य देशों की भी यात्रा करेंगे।

पीठारोहण समारोह को संबोधित करते हुए शंकराचार्य अधोक्षजानंद ने कहा कि देश के पूर्वाेत्तर क्षेत्र समेत समूचे भारत में इस समय वैदिक सनातन संस्कृति की गूंज है। हालांकि देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में धार्मिक अनुष्ठानों को और बढ़ावा देने की उन्होंने वकालत की है। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में वरिष्ठ संतों और महात्माओं के न पहुंचने से वहां धर्मान्तरण को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे वहां के सनातन धर्मावलम्बियों में निराशा का भाव पनप रहा है। जगद्गुरु ने केंद्र और राज्य सरकारों से भी सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास कार्यों को बढ़ावा देने को कहा है। उनका कहना है कि वहां विकास के कार्य हुये हैं और हो भी रहे हैं, लेकिन समयानुसार उसे और गति देने की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि शंकराचार्य अधोक्षजानंद देव तीर्थ देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में नियमित जाते रहते हैं और वहां व्यापक स्तर पर यज्ञादि अनुष्ठान कराते रहते हैं।

गोवर्धन पीठ के 145वें व वर्तमान शंकराचार्य हैं अधोक्षजानंद देवतीर्थ

मठ के एक प्रवक्ता ने बताया कि स्वामी अधोक्षजानंद देव तीर्थ का वर्ष 1995 में प्रयाग अर्धकुम्भ के अवसर पर बसंत पंचमी के दिन गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य के पद पर अभिषेक हुआ था। उन्होंने बताया कि लगभग 2700 वर्ष पहले आद्य शंकराचार्य भगवान ने गोवर्धन पीठ समेत चार मठों की स्थापना की थी। गोवर्धन मठ का भोगवारि सम्प्रदाय है। भगवान जगन्नाथ यहां के देवता और देवी विमला हैं। यहां का वेद ऋग्वेद और महावाक्य प्रज्ञानं ब्रह्म है। इस मठ के अधीन अंग, बंग, कलिंग, मगध, उत्कल और बर्बर क्षेत्र आते हैं। स्वामी श्री पद्मपादाचार्य मठ के प्रथम आचार्य थे।

गोवर्धन मठ के 143वें शंकराचार्य स्वामी श्री भारती कृष्ण देवतीर्थ जी महाराज थे, जिनकी 64वीं पूण्य तिथि कल माघ मेला स्थित शिविर में मनाई जाएगी। मठ के 144वें शंकराचार्य स्वामी श्री निरंजन देवतीर्थ जी महाराज रहे। निरंजन देवतीर्थ के परम कृपापात्र शिष्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देवतीर्थ जी गोवर्धन पीठ के 145वें व वर्तमान शंकराचार्य हैं। प्रवक्ता ने यह भी बताया कि शंकराचार्य अधोक्षजानंद देवतीर्थ का 30वां पीठारोहण समारोह साल भर मनाया जाएगा। इस दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों में विविध आयोजन सम्पन्न होंगे।

 

समारोह में जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज, डिब्रूगढ असम जूना अखाडा के महंत त्रिवेणी पुरी, निर्मोही अखाडा के महंत भरत दास, आर्यावर्त विद्वत परिषद के अध्यक्ष डाक्टर रामजी मिश्र, दण्डी स्वामी ब्रम्हदेवाश्रम, सहित भारी संख्या में संत, महंत, दण्डी स्वामी आचार्य गण एवं प्रशासनिक अधिकारीउपस्थित रहे।

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