26 जुलाई 1925 में जन्म लेने वाले कलाकार तैयब मेहता को कलाकारों ने शुभकामनाएँ दी
प्रयागराज.26 जुलाई 1924 को गुजरात के खेड़ा जिले में जन्मे तैयब मेहता का लालन-पालन गुजरात के दाऊदी बोहरा समुदाय में हुआ। उन्होंने 1952 में सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई से कला में डिप्लोमा प्राप्त किया। इसके बाद वे 1959 में लंदन चले गए, जहाँ पढ़ाई के साथ-साथ वे प्रदर्शनियाँ भी लगाते रहे। वे 1965 में फिर भारत लौटे और यहाँ कई प्रदर्शनियाँ आयोजित कीं।
तैयब मेहता एक भारतीय चित्रकार थे…
जिन्हें सन 2007 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। शुरूआती दौर में उन्होंने कुछ दिन फ़िल्म एडिटर का काम भी किया था और उसके बाद मुंबई में कला संस्थान में दाखिला लेकर चित्रकला सीखने लगे। तैयब मेहता ने एम एफ़ हुसैन और एसएच रज़ा जैसे दिग्गज चित्रकारों के साथ प्रोगरेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप में मिलकर काम किया। एक बार
एमएफ़ हुसैन ने तैयब मेहता के निधन पर बीबीसी से बातचीत में कहा था 60 से 70 वर्षों से तैयब का हमारा साथ रहा है. सैयद हैदर रज़ा, पदमसी, तैयब मेहता, समकालीन भारतीय कला के लिए इन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी दे दी,,,,,मुझे याद है शुरु आती दौर में बड़ी मुश्किलें आईं, इतने बड़े बड़े कला विद्वान बैठे हुए थे, जब हम लोग कुछ नया कर रहे थे, तो उन्होंने बड़ी बड़ी बाधाएं डालीं, लेकिन बदले में कुछ कहने के हम लोगों ने अपनी मेहनत और काम से लोगों की ज़बानें बंद कर दीं.
आज उनका नामोनिशान नहीं है.”
भारतीय कलाकारों में तैयब मेहता एक ऐसे कलाकार हैं जिनकी कलाकृति से नए कलाकारों ने प्रेरणा ली और उनकी अनुकृति कर तोड़ मरोड़कर अपनी पहचान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी वो कहते हैं ना बड़े ऐसे ही लोग कहां बनते हैं बड़े बनने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती हैं । खैर तैयब मेहता की अलग पहचान हैं 60 के दशक में तैयब मेहता कई वर्षों तक लंदन में रहकर काम किया अपने चित्रों में “डायगनल” के प्रयोग के लिए वे काफ़ी जाने जाते हैं, इसके अलावा वे (Legend) किवदंतियों से लिए गए चरित्र को भी आधुनिक तरीके से अपनी पेंटिंग में दिखाते थे.
“जो लोग पृथ्वी की सुंदरता पर विचार करते हैं, उन्हें दिव्य शक्ति का भंडार मिलता है जो जीवन भर बना रहता है।
पुराने दिनों को याद करते हुए वे कहते हैं, “हमारे पास पैसे नहीं होते थे, लेकिन हमारे साथ मीडिया का साथ बहुत अच्छा था जो हमारा समर्थन करते थे ।
कला के क्षेत्र में तैयब मेहता का योगदान बहुत बड़ा माना जाता रहा हैं स्मरण करें तो जैसे फ्रांस में 100 सालों में दो तीन ही विद्वान पैदा हुए. वैसे तो बहुत अच्छे काम करने वाले हैं लेकिन विशिष्टता सिर्फ़ दो चार में ही होती हैं
तैयब मेहता को उनके परम मित्र “के जी सुब्रमण्यन “द्वारा 1983 शांतिनिकेतन में दो साल के लिए एक कलाकार के रूप में आमंत्रित किया गया था और इस प्रयोजन के दौरान उनकी “रिक्शा और काली” और “महिषासुर श्रृंखला “सभी को चित्रित किया गया था।
इस प्रयोजन के दौरान चित्रित की गई सबसे अच्छी रिक्शा पर आकृति थी। शांतिनिकेतन में तैयब का निमंत्रण ऐतिहासिक था,शांतिनिकेतन की देहाती लय ने उनकी इंद्रियों को शांत किया; छोटी-छोटी गलियों में रिक्शा चालक छाए हुए थे; शांतिनिकेतन के आसपास का सांस्कृतिक दृश्य उनके कार्य के लिए प्रेरणादायक था और मानवीय पीड़ा के साथ-साथ जीवन के उत्सव और प्रशंसा के प्रति उनकी तल्लीनता को और मजबूत करता था। संयोग से तैयब 1950 के दशक से ही रिक्शा चालकों का चित्रण कर रहे थे। शांतिनिकेतन ने उन्हें एक नई प्रेरणा के साथ एक विषय भी दिया।
तैयब मेहता ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था की आकृति कैनवास के फलक को संशोधित करने का एक साधन बन जाती है। मैं वास्तव में किसी पुरुष या महिला की छवि से चिंतित नहीं हूं, बल्कि ऐसी छवि से चिंतित हूं जो एक निश्चित प्रकार के जुड़ाव को उत्तेजित करती है जो दर्शक को कैनवास की तरफ खींचती है।
तैयब मेहता ने अपने शुरुआती चित्रों में अभिव्यक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है, विकृत भयावह चित्र, उनका कहना था कि मैंने चित्रकला की भाषा की समझ विकसित नहीं की थी। अभिव्यक्ति सीधे दर्शक को प्रभावित करती है । तैयब मेहता बंधे हुए बैल की विभिन्न छवियों में हमारी राष्ट्रीय स्थिति के बारे में जागरूकता दिखाते हैं। वे बंधे हुए बैल के रूप में अपने समुदाय के सख्त नियमों और गतिविधियों को भी व्यक्त करते हैं।
तैयब मेहता कहते हैं जिस तरह से वे वध करने से पहले किसी जानवर के पैर बांधते हैं और उसे खलिहान के फर्श पर फेंक देते हैं, उससे आपको लगता है कि कुछ बहुत महत्वपूर्ण छुट गया है। बंधे हुए बैल से हमारी राष्ट्रीय स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जहां मानव समूह अपनी अपार ऊर्जा का सही दिशा में उपयोग करने में असमर्थ है। शायद मेरे समुदाय के बारे में भी मेरी भावना, एक ऐसा समाज जिसका ताना-बाना बहुत सुगठित था, लगभग क्रूरता को छू गया था।
आज भारतीय कला में सारी दुनिया की दिलचस्पी है और इस दिलचस्पी का एक बड़ा श्रेय तैयब मेहता को भी जाता है। जब क्रिस्टी जैसी कलादीर्घा ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी कृतियों की नीलामी की तो भारतीय कला के लिए ये एक बड़ी बात थी। समकालीन भारतीय कला इतिहास में तैयब मेहता ही अकेले पेंटर थे जिनका काम इतने कीमतों में बिका।
तैयब मेहता की पेंटिंग ‘काली’ ऑनलाइन नीलामी में रिकॉर्ड 26.4 करोड़ रुपये में बिकी थी। पहले यह पेंटिंग थिअटर डायरेक्टर एब्राहिम अलकाजी के कलेक्शन का हिस्सा थी। यह पेंटिंग मानवीय मन की दुविधा, अच्छाई और बुराई की लड़ाई, सृजन और विनाश को लेकर अंतर्द्वद को दर्शाती है। यह नीलामी सैफ्रोनर्ट कंपनी द्वारा आयोजित की गई। सैफ्रोनर्ट ने अपने बयान में कहा, “आधुनिकतावादी तैयब मेहता ने आज सैफ्रोनर्ट के समर ऑनलाइन नीलामी में 26.4 करोड़ रुपये में काली (1989) की बिक्री के साथ एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है।” मेहता का पिछला रिकॉर्ड मशहूर नीलामी घराने क्रिस्टी के साथ था। मई 2017 में उनकी पेंटिंग ‘वुमन ऑफ रिक्शा’ (1994) क्रिस्टी की नीलामी में 22.99 करोड़ में बिकी थी। सैफ्रोनर्ट ने काली के खरीदार के नाम का खुलासा नहीं किया और कहा कि ऐसा करना कंपनी के नियम के खिलाफ है।
एमएफ़ हुसैन कहते थे कि तैयब मेहता आधुनिक कला के बड़े स्तंभ थे और उनके निधन से भारतीय आधुनिक कला को बहुत भारी नुकसान हुआ है.
और हम कलाकारों के लिए दोनो का जाना ही कला जगत के लिए बहुत बड़ी छती है ।
लिखिका पूनम किशोर
चित्र क्रिस्टीज़, सोथबीज़, एशिया सोसाइटी.