विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान का 27वाॅ वार्षिक अधिवेशन भिलाई, छत्तीसगढ़ में सम्पन्न
साहित्य भारी-भरकम शब्द है: – डाॅ. अरुणा पल्टा
1-सम्मिलित हुए 15 राज्यों के प्रतिनिधि
2- पटना की कृष्णामणि बनी काव्य सम्राट
3-डाॅ0 जयंती प्रसाद नौटियाल, डाॅ0 चवाकुल रामकृष्ण राव, डाॅ0 अलका पोत्दार सहित कुल 15 विद्वतजन हुए सम्मानित
आधुनिक वैश्वीकरण के युग में भी साहित्य कोई हल्का सा शब्द नहीं, बल्कि साहित्य एक भारी-भरकम शब्द है। इस आशय का प्रतिपादन हेमचंद विश्वविद्यालय, दुर्ग, छत्तीसगढ़ की कुलपति डाॅ0 अरुणा पल्टा ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश एवं स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय, हुडको, भिलाई, छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संस्थान के 27 वें वार्षिक अधिवेशन (16, 17 जून 2023, 19वाॅ साहित्य मेला) के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि व उद्घाटक के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रही थीं। डाॅ. अरुणा पल्टा ने आगे कहा कि साहित्य वर्तमान और भविष्य की निरंतर चिंता करता है। साहित्य के क्षेत्र में और कार्य करने की आवश्यकता है। महिलाएं जब लिखने लगी तब से महिलाओं की स्थिति में सुधार होता गया। हिंदी के प्रचार का पौधा संस्थान ने लगाया है, ये बात बहुत ही प्रशंसनीय है।
पांच सत्रीय इस आयोजन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता सस्थान के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख की। विशिष्ट अतिथि चवाकुल रामकृष्ण राव-अध्यक्ष, हिन्दी प्रेमी मंडली तथा स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय, भिलाई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री दीपक शर्मा थे। संस्थान के सचिव डाॅ0 गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने प्रास्ताविक भाषण में कहा कि 15 जून 1996 को स्थापित यह संस्थान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच चुका है। प्रतिमाह 4 आभासी गोष्ठियों से संस्थान की सक्रियता जारी है।
इस अवसर पर संस्थान की वार्षिक स्मारिका ‘विश्व स्नेह समाज’ व श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव के काव्य संग्रह ‘मनलाभ मंजरी’ का विमोचन मंचासीन अतिथियों के द्वारा किया गया।
अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन व दीप प्रज्वलन हुआ। सत्र का शुभारंभ लक्ष्मीकांत वैष्णव की सरस्वती वंदना से हुआ। अतिथि परिचय डाॅ0 रेशमा अंसारी ने दिया। स्वागत उद्बोधन डाॅ0 मुक्ता कौशिक़ ने दिया। कु मानसी डावरे ने कोली नृत्य प्रस्तुत किया। इस सत्र का मंच संचालन डाॅ0 सरस्वती वर्मा ने आभार तथा डाॅ0 हंसा शुक्ला प्राचार्या, स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय ने किया।
दूसरा सत्र परिचर्चा का रहा। जिसका विषय था ‘देश की प्रगति में साहित्य का योगदान’। इसमें अपना बीज वक्तत्व देते हुए डाॅ. विजयालक्ष्मी रामटेके, पूर्व अधिष्ठाता राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर, महाराष्ट्र ने कहा -‘जिस राष्ट्र का साहित्य सजग है, श्रेष्ठ है तो निश्चित ही उस राष्ट्र की चेतना का स्तर ऊंचा ही होगा। अतः किसी भी राष्ट्र का साहित्य उसकी जागृति का मापदंड होता है। साहित्य जीवन को समृद्ध करता है। वह अपने काल का प्रतिबिंब होता है। साहित्य मनुष्य की चेतना को झकझोरता है तथा जीवन को देखने, समझने व परखने की दृष्टि प्रदान करता है।’
मुख्य वक्ता डाॅ. सुधीर शर्मा, कल्याण काॅलेज, भिलाई, छत्तीसगढ़ ने अपने मंतव्य में कहा कि विश्व में भारतीय साहित्य उच्च कोटि का है। इस राष्ट्र के निर्माता मनुष्य मात्र ही नहीं, बल्कि सैकड़ों पशु-पक्षी भी हैं। आज अनेक विकल्प मौजूद है। पर कबीर, सूर, तुलसी, रहीम, रसखान आज भी जिंदा है। राष्ट्र के निर्माण में भाषा और साहित्य का अमूल्य योगदान है। आज हमारे पास वृहद साहित्य है। साहित्य ने ही देश को बनाया है।
विभागाध्यक्ष हिन्दी, श्री क्लाॅथ मार्केट इंस्टीट्यूट आॅफ प्रोफेशनल स्टडीज, इंदौर, मध्य प्रदेश डाॅ. अर्चना चतुर्वेदी ने कहा कि सभी युगों में साहित्य का योगदान दिखाई देता है। साहित्य के अभाव में किसी भी देश की प्रगति असंभव है।
सत्र की अध्यक्षता किशोर न्यायालय, सोनभद्र के सदस्य डा. ओम प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि मानवीय सभ्यता एवं राष्ट्र के विकास में साहित्य का संपूर्ण योगदान सदैव से रहा है। साहित्य समाज में सौहार्द, एकता और जागरूकता से फैलाता है, जिससे राष्ट्र निर्माण में साहित्य की भूमिका महत्वपूर्ण है। साहित्य सामाजिक यथार्थ को प्रकट करने में सहायक होता है और सामाजिक मुद्दों को उभारकर नवीनता और गतिशीलता देकर राष्ट्र की सर्वतोमुखी प्रगति करने में सहयोगी रहा है। साहित्य हममें भावनाओं की एक व्यापक श्रृंखला तक खोलता है। सारांशतः साहित्य राष्ट्र के विकास की धुरी है। देश की प्रगति समृद्ध साहित्य पर ही अवलंबित है।
इस सत्र के अतिथियों का स्वागत श्रीमती सीमा रानी प्रधान तथा आभार सुश्री नम्रता ध्रुव ने व्यक्त किया।
आयोजन का तीसरा सत्र सम्मान समारोह का रहा। इस सत्र के मुख्य अतिथि मैट्स विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रो. डा. के. पी. यादव ने कहा कि संस्कृत साहित्य हमारी अमूल्य निधि है। विश्व में भारतीय साहित्य की अपनी पहचान है। भारतीय साहित्य समन्वय की भूमिका को लेकर चलता है। संस्कृत साहित्य तो हमारी अमूल्य निधि है। साहित्य समाज का निर्माता है। साहित्य से समाज बनता है। साहित्य प्राण है। साहित्य से समाज को बदला जा सकता है। समाज के निर्माण में साहित्य महनीय भूमिका का निर्वहन कर सकता है। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट महानुभावों को उपाधियों व सम्मान से अतिथियों द्वारा गौरवान्वित किया गया, जिनमें डाॅ0 जयंती प्रसाद नौटियाल, देहरादून, उत्तराखंड को ”साहित्य गौरव”, श्रीमती कृष्णा मणि श्री, पटना, बिहार को “काव्य सम्राट”, श्रीमती नीता अग्रवाल, हनुमानगढ़, राजस्थान को “साहित्य श्री“, श्री जय प्रकाश पांडेय, देहरादून, उत्तराखंड को “पत्रकार श्री”, डाॅ0 अलका सुरेंद्र पोतदार, पुणे, महाराष्ट्र को “विशिष्ट हिंदी सेवी सम्मान”, श्री चवाकुल राम कृष्ण राव, हैदराबाद, तेलंगाना को “हिंदी सेवी सम्मान”, डाॅ0 रजनीकांत शाह, वडोदरा, गुजरात एवं डाॅ0 देवीदास बामणे, पेण, महाराष्ट्र को “राष्ट्रभाषा सम्मान”, डाॅ. मृणालिका ओझा, रायपुर, छत्तीसगढ़ को “समाज श्री”, प्रा0 रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र को ‘संस्कारश्री’ तथा प्रो. डाॅ. शहनाज अहमद शेख, नांदेड़, महाराष्ट्र को “शिक्षक श्री” से सम्मानित किया गया।
विशिष्ट अतिथि डाॅ0 जयंती प्रसाद नौटियाल, महानिदेशक, वैश्विक हिंदी शोध संस्थान, देहरादून, उत्तराखंड ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि हिंदी विश्व की सबसे बड़ी भाषा है। विश्व में भाषाओं की रैंकिंग एथ्नोलोग नाम की अमेरिकी संस्था करती है। वह संस्था हिंदी को तीसरे स्थान पर दिखाती है जबकि सत्य है कि हिंदी विश्व में पहले स्थान पर है। विश्व में प्रमुख भाषाओं की स्थिति इस प्रकार है- 1) हिंदी 1560 मिलियन 2) अंग्रेजी 1452 मिलियन 3) चीनी (मंदारिल) 1325 मिलियन 4) स्पेनी 548 मिलियन 5) फ्रेंच 274 मिलियन।
विशिष्ट अतिथि डाॅ0 चंद्रशेखर सिंह, विभागाध्यक्ष हिन्दी, शासकीय महाविद्यालय, घरघोड़ा, रायगढ़, छत्तीसगढ़ ने कहा कि कोई भी सम्मान, पाने वाले के उत्साह में वृद्धि करता है। सम्मान व्यक्ति के कार्य की गति को बढ़ाकर पाने वाले को प्रेरणा प्रदान करता है। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश पारंगत प्रतिभाओं को प्रतिष्ठित सम्मानों से गौरवान्वित करता है, यह अत्यंत हर्ष की बात है। नव लेखकों को लेखन के साथ पठन में भी रुचि रखनी चाहिए, क्योंकि बिना पढ़े, लिखने में उतना वजन नहीं होता।
इस सत्र की अध्यक्षता श्री ओम प्रकाश त्रिपाठी, सदस्य, किशोर न्यायालय, सोनभद्र, उत्तरप्रदेश ने की। मंच पर संस्थान के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख तथा सचिव डाॅ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी की गरिमामय उपस्थिति थी।
सत्र का संचालन श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव, सक्ति छत्तीसगढ़, स्वागत डाॅ0 भरत शेणकर- अहमदनगर, महाराष्ट्र, डाॅ0 सरस्वती वर्मा, महासमुन्द्र, छत्तीसगढ़ ने व्यक्त किया।
चैथे सत्र में इस सत्र में रात्रि विश्राम करने वाले समस्त विद्वतजनों को कुछ न कुछ प्रस्तुत करने को कहा गया था। जिसमें मंच पर उत्तर प्रदेेश प्रभारी श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’, रायबरेली, डाॅ0 रजनीकांत शांतिलाल शाह, नवसारी, गुजरात, महाराष्ट्र प्रभारी, डाॅ0 भरत त्रयंबक शेणकर, अहमदनगर, महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ प्रभारी डाॅ0 मुक्ता कौशिक-रायपुर विराजमान रही। इस सत्र में श्रीमती मणिबेन द्विवेदी-वाराणसी, उ0प्र0, प्रा0 रोहिणी डावरे- अकोले, महाराष्ट्र, श्रीमती संतोष शर्मा ‘शान’ हाथरस, उत्तर प्रदेश, श्रीमती नीता अग्रवाल- रावतसर-हनुमानगढ़, राजस्थान, श्री रुप बेतरतीब-सक्ति, छ0ग0, श्री जयप्रकाश पाण्डेय, देहरादून, उत्तराखंड, श्रीमती उपमा आर्य, लखनऊ, उ0प्र0, प्रा0 मधु भंभानी-नागपुर, महाराष्ट्र, डाॅ0 हंसा शुक्ला-आम्दी, छ0ग0, शेख शहनाज अहमद, नादेड़, महाराष्ट्र श्री ओम प्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, उ0प्र0 ने कविताएं एवं ग़ज़ले प्रस्तुत की तो श्रीमती रश्मि वी.बी-मंगलुरु, कर्नाटक कन्नड़ गीत, डाॅ0 भरत शेणकर ने मराठी गीत प्रस्तुत किया।
दिनांक 17 जून को पांचवा सत्र/समापन सत्र संस्थान के पदाधिकारियों, सदस्यों के सम्मान का रहा। इस सत्र के मुख्य अतिथि डाॅ0. विनय कुमार पाठक, राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त पूर्व अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि हिंदी भाषा एवं साहित्य का उत्कर्ष निश्चित है। समस्त भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी भाषा एवं साहित्य का उत्कर्ष निश्चित है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति यदि व्यवहार में आती है तो क्षेत्रीय एवं भारतीय भाषाओं को विकसित होने का सुअवसर निश्चित मिलेगा। हम अपने बच्चों को जर्मनी, रूसी, जापानी जैसी विदेशी भाषाएं सीखने के लिए विदेश भेजने के बदले यदि विदेश से विद्वानों को आमंत्रित किया जाता है, तो व्यय की कितनी बचत होगी। उर्दू हिंदी की ही एक शैली है। देश में गंगा जमुनी तहजीब के लिए भारतीय भाषाओं को प्रमुखता देने की नितांत आवश्यकता है। हिंदी में सारी संभावनाएं हैं। अंग्रेजी के पीछे भागने की जरूरत नहीं है।
संस्थागत स्तर पर कार्य करने वाले महानुभावों को अतिथियों द्वारा इस अवसर पर सम्मान प्रदान करके उन्हें गौरवान्वित किया गया। जिनमें डाॅ0 हंसा शुक्ला, प्राचार्या, स्वामी स्वरूपानंद महाविद्यालय, हुडको, भिलाई को “श्रीमती राजरानी देवी स्मृति सम्मान”, डाॅ0. अर्जुन गुप्ता “गुंजन”, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश को “श्री मुखराम माकड़ हिंदी सेवी सम्मान’, डाॅ. सुनीता सिंह “सुधा”, हिसार, हरियाणा को ‘श्री बुद्धिसेन शर्मा स्मृति सम्मान”, श्रीमती मणिबेन द्विवेदी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश को ‘श्री पवहारी शरण द्विवेदी स्मृति सम्मान’, डाॅ. ओम प्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश को “कैप्टन तुकाराम रोडकर स्मृति सम्मान”, डाॅ. भरत त्र्यंबक शेणकर, राजूर, अहमदनगर, महाराष्ट्र को ‘आयोजक श्री-2022’, श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव, रायबरेली, उत्तर प्रदेश एवं डाॅ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ को ‘विहिसा श्री’, प्रा.मधु भंभानी, नागपुर, महाराष्ट्र को ‘शब्द सुधाकर सम्मान’ तथा प्रा.रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र को ‘संचालक श्री’, श्रीमती संतोष शर्मा ‘शान’, हाथरस, उ0प्र0 के लिए प्रशस्ति पत्र, लघुकथा निर्णायक मंडल का प्रशस्ति पत्र डाॅ. अर्चना चतुर्वेदी इन्दौर, मध्यप्रदेश, आयोजन में विशेष योगदान के लिए डाॅ0 सरस्वती वर्मा-महासमुन्द्र, छत्तीसगढ़ एवं श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव ‘मनलाभ’, सक्ति, छ0ग0 को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त श्री पवहारी शरण द्विवेदी स्मृति न्यास की ओर से डा. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र को ‘अति विशिष्ट हिंदी सेवा सम्मान’ तथा छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के प्रांतीय अध्यक्ष श्री कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ को ‘क्षेत्रीय भाषा प्रसारक सम्मान’ से विभूषित किया गया।
विशिष्ट अतिथि न्यायमूर्ति चंद्रभूषण वाजपेयी, पूर्व न्यायधीश, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि हमारी परंपरा वसुधैव कुटुंबकम को लेकर चलने वाली है। साहित्य वही जो देश की प्रगति में योगदान दें। वर्तमान में आवश्यकता है कि निरूपयोगी साहित्य को अलग करके सत् साहित्य को स्थापित किया जाए। साहित्य के मूल तत्व कभी नहीं बदलते। वे शाश्वत होते हैं। देश की उन्नति के लिए मूल तत्व अक्षुण्ण होने चाहिए।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे संस्थान के अध्यक्ष डाॅ0 शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने कहा कि हिंदी ने भारत के बाहर अपने चरण रखे हैं। हिंदी अपने दम पर आगे बढ़ रही है। उसने अंतरराष्ट्रीय रूप धारण करके बड़ी सफलता प्राप्त कर विश्व मंच पर हिन्दी पहुंच चुकी है। अनेक राष्ट्रों के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिंदी के अध्ययन, अध्यापन व शोध की उपलब्धता है।
इस अवसर पर संस्थान की छत्तीसगढ़ इकाई द्वारा संस्थान के अध्यक्ष डा. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख व संस्थान के सचिव डाॅ0 गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी का अभिनंदन किया गया। अभिनंदन मंचासीन अतिथियों की उपस्थिति में संस्थान की छत्तीसगढ़ प्रभारी डाॅ0 मुक्ता कौशिक, प्रतिनिधि डाॅ0 सरस्वती वर्मा, सदस्य श्रीमती सीमा निगम, डाॅ0 हंसा शुक्ला, श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव ने किया।
मंच पर संस्थान के उपाध्यक्ष श्री ओम प्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश तथा सचिव डाॅ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश की गरिमामयी उपस्थिति रही।
आयोजन की शुरुआत श्रीमती मणि बेन द्विवेदी की सरस्वती वंदना से हुआ, इस सत्र का संचालन प्रा0 रोहिणी डावरे, अतिथि परिचय डाॅ0 सरस्वती वर्मा ने तथा आभार आयोजन प्रभारी डाॅ0 मुक्ता कौशिक ने व्यक्त किया।
इस अवसर पर डाॅ0 उपमा आर्य, लखनऊ, डाॅ0 रजिया शेख बसमत, हिंगोली, श्री नरेंद्र परिहार, नागपुर, श्रीमती अपराजिता शर्मा-छ0ग0, श्री रतिराम गढ़ेवाल-रायपुर, श्री दीनबन्धु आर्य-लखनऊ, सुश्री सीमा रानी प्रधान-छत्तीसगढ़, सुश्री नम्रता ध्रुव-छत्तीसगढ़, डाॅ0 किरण बाला पटेल-छत्तीसगढ़, श्री राकेश श्रीवास्तव-रायबरेली सहित अन्यान्य विद्वतजन व हिन्दी प्रेमी उपस्थित रहे। राष्ट्रगान के साथ अधिवेशन का समापन हुआ।