नहीं नज़र आया मोहर्रम का चांद-जुमेरात को होगी माहे मोहर्रम की पहली
कहीं से भी चांद दिखाई देने की खबर नहीं मिली इस तरह ज़िलहिज्जा की उन्तीस को चांद नहीं दिखाई देने की सूरत में ब्रहस्पतवार 30 ज़िलहिज्जा को चांद नमुदार होने के साथ जुमेरात से मोहर्रम का आग़ाज़ होगा। अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सैय्यद मोहम्मद अस्करी के मुताबिक़ शिया मर्कज़ी चांद कमेटी ने मोहर्रम के चांद न होने की तस्दीक की है।वहीं सुन्नी समुदाय की ओर से भी चांद नहीं दिखाई देने का ऐलान किया गया है ऐसे में माहे मोहर्रम की पहली 20 जुलाई को और दसवीं मोहर्रम यानि आशूरा 29 जुलाई शनिवार को होगा।
इस्तेक़बाल ए अज़ा के जुलूस के साथ माहे ग़म माहे अज़ा का शुरु हुआ दौर
इराक़ के करबला में चौदह सौ साल पहली यज़ीदी सेना से मुक़ाबला करते हुए शहीद हुए नवासा ए रसूल हज़रत इमाम हुसैन व अन्य 71 शहीदों की याद में दो माह और आठ दिनों तक चलने वाले अज़ादारी के दौर का आग़ाज़ इस्तेक़बाल ए अज़ा के जुलूस के साथ हो गया। दरियाबाद स्थित इमामबाड़ा अरब अली खान से देर रात शुएब बहादुर की अगुवाई में मातमी अन्जुमनो ने जुलूस निकाला शहज़ेब असग़र की निज़ामत में मजलिस का आग़ाज़ हैदर जैदी बिट्टू की सोज़ख्वानी से हुआ। ज़ाकिर ए अहलेबैत अशरफ अब्बास खां ने मजलिस को खिताब किया। उम्मुल बनीन सोसायटी के महासचिव सैय्यद मोहम्मद अस्करी के अनुसार अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया बख्शी बाज़ार , अन्जुमन हैदरी दरियाबाद , अन्जुमन असग़रिया दरियाबाद , अन्जुमन मोहाफिज़े अज़ा दरियाबाद , अन्जुमन हुसैनिया क़दीम दरियाबाद के नौहाख्वानो ने शायरों से लिखवाए नए कलाम के नौहे पढ़ कर ग़म का इज़हार किया।जुलूस देर रात तक गलियों में गश्त करते हुए सम्पन्न हुआ।जुलूस में अलम के साथ शबीहे ज़ुलजनाह भी निकाला गया जिसकी ज़ियारत और बोसा लेने को अक़ीदतमन्दों का हुजूम उमड़ा।शाह बहादुर ,गौहर क़ाज़मी ,ताशू अल्वी ,पार्षद फसाहत हुसैन, मोहम्मद अहमद गुड्डू ,यासिर सिबतैन ,सलीम रिज़वी , नजीब इलाहाबादी ,सैय्यद मोहम्मद अस्करी ,मिर्ज़ा अज़ादार हुसैन ,आसिफ रिज़वी ,ज़ैग़म अब्बास नक़वी ,हसन टाईगर ,अली रिज़वी आदि शामिल रहे।वहीं रानीमंडी स्थित इमामबाड़ा नवाब साहब की कोठी से एक अन्य जुलूस संयोजक ताहिर हुसैन उर्फ अब्बू की ओर से निकाला गया। मौलाना असगर अब्बास दरियाबाद ने मजलिस को खिताब किया अन्जुमन अब्बासिया व अन्जुमन शब्बीरिया के नौहाख्वानो ने पुरदर्द नौहा पढ़ते हुए जुलूस को छम्मन खां के हाते पर देर रात पहुंच कर सम्पन्न कराया।