सावन महत्व शिवलिंग की उत्पत्ति,सावन क्यों मनाया जाता है क्यों प्रिय है यह महीना?
लेख-स्वामी धरानंद,पीठाधीश्वर, मनकामेश्वर महादेव
शिव पुराण के अनुसार माता सती भगवान शिव को हर जन्म में पति रूप में पाना चाहती थी माता सती के देह त्याग के बाद उन्होंने हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया बचपन से ही शिव को अपना पति मान लिया और एक महीने घोर तपस्या की उससे भगवान शंकर प्रसन्न हुए फिर पार्वती जी ने पति रूप में उनको वर मैं मांगा तब शिव पार्वती का विवाह हुआ माता पार्वती ने जिस महीने मैं तपस्या की वह मास सावन मास था शिव इसी महीने में प्रसन्न हुए थे इस कारण यह साधना के लिए बहुत ही उपयुक्त मास है शिव इस मास प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं जो भी श्रद्धालु इस मास में शिव आराधना पूजा पाठ जलाभिषेक करता है उसको भगवान शंकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं।
विष्णु भगवान के शायन हो जाने के बाद श्रृष्टि की देखरेख शिव के हाथों में रहती हैः-
देव शयनी एकादशी के बाद भगवान शिव योगनिद्रा में चले जाते हैं तब से देव उत्थानी एकादशी तक श्रृष्टि का भार भगवान शिव के हाथों में रहता है शिव रुद्र हैं जल्दी प्रसन्न भी हो जाते हैं और जल्दी क्रोधित भी हो जाते हैं भगवान को वेदो मैं अत्यधिक बलवान कहा गया है इसलिए उन्हें क्रोध ना आए इसलिए सभी उनके ऊपर अनेक पदार्थों से अभिषेक करते हैं जिससे वह शांत प्रसन्न रहें इसलिये इस महीने अभिषेक का महत्व बताया जाता है।
माता पार्वती ने किस व्रत को किया था?
सावन के महीने में शिव को प्रसन्न एवं पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने मंगला गौरी का व्रत किया था इसी व्रत से शिव प्रसन्न हुए थे यह व्रत माता पार्वती ने सावन के महीने में किया था ऐसी मान्यता है कि कन्याओं को भी इस सावन माह में अच्छा पति मिले इस कामना से इस मास में व्रत पूजा करनी चाहिए जिससे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
सावन महत्त्व श्रीमद् भागवत के अनुसार?
जब समुद्र मंथन हुआ तो देवताओं और असुरों ने मंथन प्रारंभ किया उस मंथन से सर्वप्रथम हला हल विष निकला उसके कारण सृष्टि में अफरा-तफरी मच गई और सब डर गए तब सभी देवताओं ने भगवान शिव की आराधना की ध्यान किया फिर भगवान वहाँ प्रकट हुए फिर सभी देवताओं ने भगवान शंकर को श्रृष्टि की रक्षा करने की प्रार्थना की फिर भगवान शंकर ने उस हला हल बिष को अपने कंठ में धारण कर लिया बिष को धारण करने के बाद भगवान शंकर को अत्याधिक ताप हुआ उसको देखते हुए सभी देवताओं ने भगवान का जलाभिषेक जिससे भगवान को शीतलता मिली जिस समय यह सब हुआ था वह मास भी सावन मास था इसलिए भी सावन मास में भगवान शंकर का जल अभिषेक करना अति उत्तम माना गया है।
भगवान शिव प्रथम बार भूलोक में अपने ससुराल आऐ थे?
शिव पुराण के अनुसार हिमालय राज की पुत्री पार्वती से विवाह होने के बाद भगवान शिव प्रथम बार पृथ्वी लोक अपनी ससुराल आऐ थे वह मास भी सावन ही था उस समय भगवान शिव का भव्य स्वागत हुआ था हिमालय राज ने शिव से वरदान मांगा कि आप प्रत्येक सावन के महीने में अपने ससुराल पधारें तब से भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी लोक मैं जो भी प्राचीन शिवालय हैं उनमें वास करते हैं इसलिए जो भी श्रद्धालु इस समय जलाभिषेक और आराधना करता है भगवान शंकर सरलता से प्रसन्न हो जाते हैं।
श्रीमद् भागवत के अनुसार?
श्रीमद् भागवत के अनुसार सावन के महीने में भगवान शिव दो कारणों से पृथ्वी लोक में वास करते हैं एक हिमालय राज के वरदान के कारण दूसरा दक्ष प्रजापति के कारण माता सती के यज्ञ कुण्ड मैं समाहित हो जाने से भगवान क्रोधित हो गये थे उन्होंने यज्ञ विध्वंस कर दिया था उसी समय दक्ष का सिर भगवान ने अपने त्रिशूल से धण अलग कर दिया था भगवान को अत्याधिक क्रोधित देख कर सभी देवताओं ने भगवान शिव की आराधना स्तुति की तब भगवान प्रसन्न हुये ओर उन्होंने प्रजापति दक्ष को बकरे का सिर लगा कर उनको प्राण दान दिया फिर दक्ष ने भगवान शिव की स्तुति की और यह वरदान मांगा कि आप प्रतिवर्ष सावन के महीने में हम सब पृथ्वी वासीयों के ऊपर कृपा करने के लिए पृथ्वीलोक पर निवास करें तब से सावन के महीने में भगवान शिव पृथ्वीवास करते हैं इसी महीने में मार्कंडू ऋषि के पुत्र मार्कंडेय ने सावन महीने में कठिन घोर तपस्या की थी और भगवान शिव को प्रसन्न करके के आशीर्वाद प्राप्त किया था।
सावन मास मैं व्रत रखने से वैज्ञानिक दृष्टि से फायदा?
हम सब जानते हैं कि हमारा सनातन धर्म वैज्ञानिक भी है सावन में व्रत रखने से वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह बरसात का मौसम होता है इस समय सब्जियों में कीड़े लग जाते हैं फास्ट फूड भी रखने लायक नहीं होता है मौसम के कारण हमारे पाचन की समस्या भी होती हैं व्रत रखने से हमारी पाचन शक्ति भी ठीक होती इस समय बरसात होने के कारण छोटे-छोटे कीड़े जमीन में चलने लगते हैं उनकी भी रक्षा हो इसलिए भी व्रत पूजन अनुष्ठान करने से व्यक्ति एक जगह रहता है इसी कारण साधु संत एक जगह रह कर चातुर्मास्य करते हैं ।
शिव का अर्थ क्या है?
शिव का अर्थ व्याकरण में शिवदं कल्याणं ददाति इति शिव का अर्थात जो कल्याण प्रदान करता है शिवलिंग का अर्थ होता है सृजन, चिन्ह, प्रतीक जो कल्याण का प्रतीक हो वह शिवलिंग है।
शिवलिंग की उत्पत्तिः
लिंग पुराण के अनुसार एक बार ब्रम्हा और विष्णु भगवान के बीच विवाद हो गया जब उनका विवाद अत्याधिक बढ़ गया तब अग्नि की ज्वालाओं में लिपटा हुआ लिंग ब्रह्मा और विष्णु के बीच स्थापित हो गया दोनों उस लिंग का रहस्य की खोज करने लगे फिर भी कुछ नहीं समझ पाए दोनों ने हजारों वर्ष तक इस लिंग खोज की और फिर भी नहीं पता चला तब निराश होकर शिवलिंग के पास आएं तब उन्हें 🕉️ की आवाज सुनाई दी और दोनों ने 🕉️ की साधना प्रारंभ की तब उस शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए तभी से भगवान शिवलिंग के रूप में साक्षात वास करते हैं।