पुल के अभाव में आदिवासी और स्कूली बच्चे कोटेश्वरी नदी तैरकर पार होते हैं।
विश्व आदिवासी दिवस पर संजय नईमा की खास रिपोर्ट
ग्रामीण अंचलों मे निवास करने वाले आदिवासी समाज आज भी मूलभूत सुविधाओं से काफी दूर है। मामला राजोद क्षेत्र की कचनारिया पंचायत के चार मजरो का है। पिछले दो दशक से कोटेश्वरी नदी पर पुल की मांग करते आ रहे आदिवासी ग्रामीणों को आज तक पुल की सौगात नहीं मिल पाई है। केवल सर्वे और मंजुरी के आश्वासन के सहारे ये लोग पुल का सपना संजोये बैठे है। साल मे दस माह तक पानी से लबरेज भरी रहने वाली कोटेश्वरी नदी पर आवागमन करना ग्रामीणों सहित स्कूली विद्यार्थियों के लिये किसी जोखिम से कम नहीं है। लेकिन क्षेत्र के कम पढे लिखे ग्रामीण अब शिक्षा का महत्व समझ चुके है। इसलिये प्रतिदिन अपनी बच्चो को स्कुल भेजने के लिये नदी पार करते है। इनमे कुछ लडकिया तो इतनी बहादुर है की वे तैरकर नदी पार करती है और पीछे उनके पालक स्कूली बैक सिर पर लेकर नदी पार करते है । क्योंकि नदी गहरी है और बच्चों की हाइट कम होने से किताब भीगने का डर रहता है।
पिछले दो दशक से कर रहे है समस्या का सामना- राजोद से करीब 4 किमी दूर कचनारिया पंचायत है यहां पर कोटेश्वरी नदी बहती है। नदी के दूसरे किनारे पर रसानिया,राजघाटा,गुलरीपाडा और पटलावद रोड जैसे आदिवासी बाहुल्य गांव है। इनके लिये शिक्षा,स्वास्थ सहित कई मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति के लिये राजोद एवं कचनारिया पर निर्भर रहना पडता है। कोटेश्वरी नदी मे 12 माह मे से 10 माह तों पानी से लबरेज रहती है। नदी पर पुल नही है इसलिये ग्रामीणों को तैरकर नदी पार करना पडती है। बच्चो को भी इसी तरह स्कूल जाने के लिए करीब 200 मीटर की दुरी तैरकर ही पार करना पडती है। वही यदि कोई बिमार या फिर प्रसूता महिला को अस्पताल भिजवाना हो तो ग्रामीणों को नदी पार करवाने के लिये काफी समस्या का सामना करना पडता है।
दो दशक पूर्व सर्वे होकर मिल चुकी मंजुरी,भूमिपूजन भी हुआ लेकिन नहीं बना पुलः- ग्राम पंचायत कचनारिया के सरपंच प्रतिनिधी पन्नालाल डामर बताते है की यह समस्या 1990 के समय से आ रही है। 1993 मे आरईएस विभाग ने 80 लाख की लागत के पुल का सर्वे किया था मंजूरी मिल कर निर्माण के लिए भूमिपूजन भी कर दिया। उसके बाद काम आगे नहीं बडा।
श्री डामर ने बताया की मीडिया के माध्यम से कई बार पुल निर्माण के लिये मांग की गई ज्ञापन भी सोपे गये लेकिन सुनवाई नहीं हुई। पिछले वर्ष जरूर तकनीकी स्वीकृति के लिये प्रस्ताव बनाकर भेजे गये थे लेकिन मंजुरी नही मिल पाई। सरपंच प्रतिनिधी पन्नालाल डामर बताते है की क्षेत्रीय विधायक प्रताप ग्रेवाल ने आश्वासन दिया है की जल्द पुल का निर्माण करवाया जायेगा पिछले दिनो सर्वे के लिये अधिकारी आये थे।
ज्योति जैसा साहस जुट रही है शिवानी- इस प्रकार की समस्या बरमंडल के पास पंचरूडी नदी के समीप बहने वाली खईडिया नदी पर भी आ रही थी। जब पर करीब 5 वर्ष तक मीडिया ने मुहिम चलाकर नदी पर दो करोड़ की लागत का पुल निर्माण करवाया था। इस दौरान एक साहसी बालिका ज्योति प्रतिदिन टयुब पर सवार होकर नदी पार करके विद्यालय जाती थी। इस बालिका के साहस एवं हौसले के चलते नदी पर पुल का निर्माण हो पाया था। इसी प्रकार का साहस राजघाटा से आने वाले बालिका शिवानी दिखा रही है। शिवानी ने बताया की प्रतिदिन नदी को तैरकर पार करके विद्यालय आते है। लेकिन ठंड और बारिश के समय काफी समस्या होती है। जब नदी उफान पर होती है तो उसे तैर कर पार करना मौत से सामना करने के बराबर होता है। वही ठंड मे ठंडे पानी मे तैर कर आते है कपडे गिले हो जाते है। कई बार तो बिमार भी हो जाते है।
ग्रामीणों ने बताया की शासन वैसे तो जहाँ जरूरत नही है वहा पर करोडे रू खर्च कर देता है लेकिन यहां पर ग्रामीणों की समस्या के समाधान के लिये डेढ करोड की राशि खर्च कर पुल नहीं बना पा रहा है। केवल कागजी घोडे दौडाने एवं आश्वासन के सिवाये कुछ नहीं मिल पाया है।