भगवान गणेश की प्रतिमा के लिए नर्मदा की यह मिट्टी (इको-फ्रेंडली) क्यों है मूर्तिकारों की पहली पसंद?
जबलपुर (उमा शंकर मिश्रा )
देशभर में 19 सितम्बर को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी. बप्पा मोरया को घरों में विराजमान करने के श्रद्धालु तैयारियों को पूरी करने के लिए जोर – शोर से जुट गए हैं। बाजारों में भी रौनक देखने को मिल रही है. गणेश चतुर्थी को लेकर इस बार सबसे ज्यादा यदि कोई उत्साहित है तो वो हैं मूर्तिकार, जो अपनी मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं.
उजाला शिखर के प्रतिनिधि से बात करते हुए काँच घर स्थित चाय कला मंदिर के मूर्तिकार कैलाश प्रजापति बताते हैं कि उनकी बनाई हुई मूर्तियां खास होती हैं, क्योंकि वह अपनी मूर्तियों को बनाने के लिए माँ नर्मदा के कछारी इलाके की मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं। जिसमें कई तरह की खूबियां होती हैं. नर्मदा तट के चिकनी मिटटी का प्रयोग ज्यादातर इस लिय्रे किया जाता है क्योंकि ये मिट्टी काफी देर तक उसी स्थिति में रहती है, जैसा हम इसे आकार देते हैं. ऐसा होने से मूर्ति की फिनिशिंग में ज्यादा दिक्कत नहीं आती. और साथ ही विषर्जन के दौरान मूर्ति इको-फ्रेंडली होने के कारण नर्मदा नदी में किसी प्रकार का प्रदूषण भी नहीं होती है, और साथ ही माँ नर्मदा का आशीर्वाद भी सदैव बना रहता हैं.