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सांस्कृतिक-साहित्यिक संचेतना का संगम है महाकुंभ विषयक संगोष्ठी एवं संवाद हुआ आयोजित 

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सांस्कृतिक-साहित्यिक संचेतना का संगम है महाकुंभ विषयक संगोष्ठी एवं संवाद हुआ आयोजित 

प्रयागराज उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान,लखनऊ की ओर से ‘सांस्कृतिक-साहित्यिक संचेतना का संगम है महाकुंभ’,विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
मुख्य अतिथि एवं सुपरिचित वक्ता,चिंतक एवं शिक्षाविद् डॉ संदीप मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहा कि कुंभ निश्चित रूप से हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को अक्षुण्ण रखने में और उसके विचार को विविधा और विस्तार देने में एक बड़ी भूमिका का निर्वाह करता है क्योंकि यह महाकुंभ ही है जहां हर आयु वर्ग का व्यक्ति अपनी समृद्ध,गौरवशाली,ऐतिहासिक और कालजयी संस्कृति और परंपरा से बहुत विधिवत और समग्र रुप से परिचित होता है जो निश्चित तौर पर उसके जीवन में उसके आचार-विचार,और व्यवहार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। महाकुंभ सचमुच में वह महापर्व है जो हमारे सोचने विचारने और निरंतर चिंतनन करने की इच्छा शक्ति और संकल्प बोध को और अधिक समृद्ध करती है और हमारी संचेतना को सदैव संचारित करती रहती है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए सुप्रसिद्ध कवि,लेखक एवं सहायक आचार्य,इलाहाबाद डिग्री कॉलेज (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) डॉ श्लेष गौतम ने कहा कि महाकुंभ भारत की सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्कारशाला है।मूल्य बोध एवं परंपराओं का समग्र दर्शन है महाकुंभ।आचरण, आचार-विचार का वह सांस्कृतिक सेतु है जो पूरे राष्ट्र को सनातनी संस्कार सूत्र से जोड़ता है। महाकुंभ में हर जगह चर्चा गोष्ठी संवाद साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजन होते रहते हैं जिसमें धर्म अध्यात्म ज्ञान विज्ञान अनगिनत संदर्भों में बात होती रहती है जिसमें हमारी अनुपम अतुलनीय और समृद्धशाली साहित्यिक सांस्कृतिक परंपरा को लेकर बात होती है।महाकुंभ वह अवसर होता है जब हम समेकित और समग्र भाव से यह चिंतन करते हैं कि कैसे हमारी साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत की जो अक्षय ऊर्जा है,जो अमूल निधि है वह और समृद्ध और जन उपयोगी हो तथा हमारे लिए यह मार्ग प्रशस्त करती है कि इतिहास,परंपरा से सीख लेते हुए हम कैसे अपने जीवन को देश समाज और परहित के उपकार और भले के लिए लगा सकते हैं।

सुपरिचित युवा नाट्यविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता देवेंद्र राजभर ने कहा कि महाकुंभ वह दर्शन है जो हमारे जीवन को सरल करता है और एक ऐसी शिक्षा और ज्ञान से जोड़ता है जिससे कि हम अपनी सांस्कृतिक साहित्यिक सामाजिक भूमिका को अच्छी तरह समझ पाते हैं और राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य योगदान देते हैं।

कार्यक्रम अध्यक्ष,सुपरिचित वक्ता,लेखक एवं सदस्य बाल कल्याण समिति,प्रयागराज श्री अरविंद ने कहा कि महाकुंभ बहुत ही विभिन्न एवं विविध रूपों में हमको हमारी सांस्कृतिक साहित्यिक पहचान से जोड़ने का काम करती है और निरंतर हमारी चेतना को क्रियाशील रखती है जागृत रखती है जीवंत रखती है और खासतौर से जो हमारा किशोर है जो बच्चे हैं जो युवा हैं उनको एक ऐसी अक्षय सनातनी परंपरा की अमूल्य निधि सौंपती है, साक्षात्कार कराती है जो बाल मन, किशोर एवं युवा मन को इस बात का उत्तर दायित्व,कर्तव्य बोध कराती है कि समाज में और राष्ट्र के निर्माण ने उनकी कैसी सकारात्मक और सार्थक भूमिका होनी चाहिए।

सुपरचित वक्ता एवं समाजसेवी प्रशांत चंद्रा ने सभी आमंत्रित वक्ताओं तथा श्रोताओं का स्वागत एवं आभार प्रकट करते हुए महाकुंभ को एक ऐसा महनीय आयोजन बताया जो हमारी विपुल प्राचीन सांस्कृतिक साहित्यिक उपलब्धियों का एक ऐसा प्रकाश स्तंभ है जो हर युग का सकारात्मक और सार्थक मार्गदर्शन करती है।

कार्यक्रम में श्रोताओं की सार्थक उपस्थिति रही।

 

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