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हिन्दुस्तानी एकेडेमी में तीन सत्रों में चली भाषा संसद की कार्यवाही

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हिन्दुस्तानी एकेडेमी में तीन सत्रों में चली भाषा संसद की कार्यवाही


भाषा के उद्घाटन सत्र में विद्वानों द्वारा ‘भारतीय भाषाओं का अन्तः संबंध’ पर हुई चर्चा,भाषा संसद के प्रथम सत्र में ‘प्राचीन भारत में भारतीय भाषाओं की स्थिति और उनका संबंध’ पर भी चर्चा किया गया,हिन्दी सख्य भाव के साथ आगे बढ़ना चाहती है -प्रो. कुमुद शर्मा,उत्तर एवं दक्षिण की भाषाओं में समन्वय की जरूरत है – डाॅ. उदय प्रताप सिंह*
हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0 प्र0, प्रयागराज एवं नया परिमल, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में ‘भाषा संसद’ के प्रथम दिवस दिनांक 22 जुलाई 2023 तीन तीन सत्रों में हिन्दुस्तानी एकेडेमी स्थित गांधी सभागार में आयोजित किया गया। प्रथम सत्र का का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिह्न और शाॅल देकर किया। *इस अवसर पर अतिथियों द्वारा वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।* उदघाटन सत्र में कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथियों के स्वागत, सम्मान के पश्चात हिन्दुस्तानी अकादमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने स्वागत वक्तव्य देते हुए भाषाओं के बीच समानता और उनके अन्तर्सम्बन्ध को किस तरह मजबूत किया जाए। भाषा संसद में विचार प्रस्तुत करते हुए प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह जी ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि साहित्य के प्रति आस्था से अधिक उस साहित्यिक संगठन के प्रति होनी चाहिए। भाषा की अनेकता में संभ्रम की स्थिति न पैदा हो जाए इसीलिए मातृभाषा पर अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। जिसे नई शिक्षा नीति के अंतर्गत रखा गया है। देश की बहुभाषिकता पर राजनीति नहीं होनी चाहिए बल्कि उसकी सांस्कृतिक, सामाजिक एकरूपता पर चिन्तन होना चाहिए, जिस पर महात्मा गाँधी और काका कालेलकर ने भगीरथ पहल किया था। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री ब्रह्मदेव ने अपने वक्तव्य में कहा हिन्दी की महत्ता यह है की हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में उन्होंने ही प्रमुखता से प्रस्तावित किया जो हिन्दीभाषी क्षेत्र से नहीं थे क्योंकि हिंदी आम जनमानस की भाषा है। कार्यक्रम में उद्घाटनकर्ता के रूप में उपस्थित प्रो. सुनील कुलकर्णी ने कहा भारत भाषाई विविधता की दृष्टि से जितना समृद्ध है उतना विश्व का अन्य कोई देश नहीं है। यह आने वाली पीढियों के बीच और बढाने की आवश्यकता है। दिल्ली विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा की हिन्दी के प्रश्न को प्रतिशत का प्रश्न बना दिया गया है। हिन्दी सख्य भाव के साथ आगे बढ़ना चाहती है। साहित्य अकादमी अनुवाद के जरिए ही 24 भाषाओं के साहित्य को उपलब्ध करवा रही है। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कहा की नया परिमल पुराने परिमल की तरह प्रस्तुत हो रहा है। भारतीय भाषाओं का अंतर्संबंध रुका हुआ है। इसके लिए उत्तर दक्षिण की भारतीय भाषाओं में समन्वय की जरूरत है। भाषाओं का अंतः सम्बन्ध भाव से आता है। अंत में धन्यवाद ज्ञापन हिन्दुस्तानी अकादमी के कोषाध्यक्ष दुर्गेश कुमार सिंह ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्धानों में डाॅ. मार्तण्ड प्रताप सिंह, डाॅ. शान्ति चैधरी, एम. एस. खान,, डाॅ. चितरंजन सिंह, सहित शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य विद्वान आदि उपस्थित रहे।

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