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त्रि-दीवसीय भाषा संसद में 11 प्रस्ताव पारित हुुये,सभी राजभाषा संबंधी संस्थाएं अगर मिलकर आन्दोलन चलाएं तो हिन्दी अपना उचित स्थान पा सकती है – डाॅ. कन्हैया सिंह

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त्रि-दीवसीय भाषा संसद में 11 प्रस्ताव पारित हुुये,सभी राजभाषा संबंधी संस्थाएं अगर मिलकर आन्दोलन चलाएं तो हिन्दी अपना उचित स्थान पा सकती है – डाॅ. कन्हैया सिंह


बहुभाषिकता हमारी कमजोरी नहीं हमारी ताकत है – डाॅ. बहादुर सिंह परमार,हिन्दी को भारतीय भाषाओं का सेतु बनने की जरूरत है- प्रो. संजीव दुबे,

हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0 प्र0, प्रयागराज एवं नया परिमल, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में त्रि-दिवसीय ‘भाषा संसद’ के तृतीय दिवस दिनांक 24 जुलाई 2023 को दो सत्रों में ‘भाषा संसद’ का आयोजन हिन्दुस्तानी एकेडेमी स्थित गाँधी सभागार में किया गया।  प्रथम सत्र का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिह्न और शाॅल देकर किया। प्रथम सत्र में ‘भाषा संसद (राष्ट्रभाषा हिन्दी, भारतीय भाषाएँ एवं मातृभाषा)’ विषय पर परिचर्चा हुई। इस सत्र के संचालक डॉ. निरंजन कुमार ने आमंत्रित वक्ताओं से उपरोक्त विषय पर संवाद किया। डॉ. प्रसून कुमार सिंह ने कहा कि मातृभाषा हमेशा हमारी पीड़ा को व्यक्त करती है. मातृभाषा में हमेशा वह सुख मिलता है जो माँ की गोद और आँचल में मिलता है। इस सम्बन्ध में उन्होंने भाषा से सम्बन्धित केदारनाथ सिंह की एक कविता का उल्लेख किया। डॉ. वीरेन्द्र मीणा ने कहा कि हिन्दी के पाठ्यक्रम में मातृभाषा के शब्दों के रखने की बात की। डॉ. अमितेश कुमार ने रामविलास शर्मा की हिन्दी जाति की अवधारणा और रंगमंच पर प्रयोग की जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में  अपनी बात रखी। डॉ. विजय कुमार रविदास ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शान्तिनिकेतन का हवाला देते हुए पश्चिम बंगाल में हिन्दी के प्रयोग पर विचार व्यक्त किया। डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता ने कहा कि हिन्दी या अन्य किसी भाषा का इतिहास तब तक नहीं लिखा जा सकता जब तक उसकी अपनी मुकम्मल भाषा नहीं होगी। चिंतन की क्षमता उस जबान में होती है जो माँ देती है। डॉ. सुनील विक्रम सिंह ने कहा कि भोजपुरी सिर्फ लोक भाषा लायक है, साहित्य के लायक नहीं है. उन्होंने मुश्तफा कमाल पाशा का उदाहरण देते हुए राष्ट्रभाषा लागू करने के प्रश्न पर कड़ाई करने की बात की। डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने सभी भाषाओं के समन्वय की बात की। डॉ. संजय सिंह ने प्रारम्भिक शिक्षा के लिए मातृभाषा पर जोर दिया। डॉ. रमेश सिंह ने सम्पूर्ण भारत में हिन्दी के वर्चस्व की बात की। डॉ मार्तंड सिंह ने कहा कि भाषा ही हमारा पर्याय है। भाषा ने ही हमें बनाया है। जिस देश की  भाषा मर जाएगी उस देश की संस्कृति भी मर जाएगी। डाॅ. सरोज सिंह ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए और सम्मान के साथ अन्य भाषाओं को भी सीखना चाहिए। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य प्रो. पंकज कुमार ने कहा कि भारतीय संविधान के माध्यम से हमने बहुत सारे अनुत्तरित प्रश्नों को खोजने का प्रयास किया है। दक्षिण भारत में जिस तरह से हिन्दी संस्थान खोले गये उसी तरह उत्तर भारत में भी दक्षिण भारतीय भाषाओं के संस्थान खोलने की बात की। भाषा संसद के समापन सत्र में अतिथि वक्ताओं में डॉ. राकेश सिंह  ने कहा की जब  तक हम लोक मन को नहीं पढ़ेंगे तब तक भाषा का महत्त्व नहीं समझ सकते। डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी ने भाषाओं में वर्ग सहयोग की भूमिका और भोजपुरी के महत्त्व को रेखांकित किया।  डॉ. बहादुर सिंह परमार ने कहा कि बहुभाषिकता हमारी कमजोरी नहीं हमारी ताकत है। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. संजीव दुबे ने कहा कि हिन्दी को भारतीय भाषाओं का सेतु बनने की जरूरत है। अध्यक्षीय उद्बोधन में, पूर्व अध्यक्ष उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, डॉ. कन्हैया सिंह ने कहा कि सभी राजभाषा संबंधी संस्थाएं अगर मिलकर आन्दोलन चलाएं तो हिन्दी अपना उचित स्थान पा सकती है। दोनों सत्रों का धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के कोषाध्यक्ष दुर्गेश कुमार सिंह एवं नया परिमल के सचिव डॉ. विनम्रसेन सिंह ने किया। भाषा संसद में उपस्थित विद्वानों में प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह, प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल, डॉ. बृजेश कुमार पाण्डेय, डॉ. अनिल कुमार सिंह, प्रसिद्ध कवि डॉ. श्लेष गौतम, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधार्थी चन्द्रशेखर कुशवाहा, विकास कुमार यादव, बाल करन सिंह, राजेश्वरी मौर्या, सर्वेश सिंह, शुभांकर सिंह तथा  स्नातक-परास्नातक के छात्र-छात्राएं एवं हिन्दुस्तानी एकेडेमी के कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
त्रि-दिवसीय भाषा संसद में पारित प्रस्ताव

हिन्दुस्तानी एकेडमी एवं नया परिमल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘भाषा संसद’  मे 3 दिनों तक चले भाषा संसद के अंतिम सत्र में कार्यक्रम में  डॉ कन्हैया सिंह (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ) की अध्यक्षता में कुछ महत्वपूर्ण प्रस्ताव सहमति से पारित किए प्रस्ताव के महत्वपूर्ण बिंदु निम्न हैं-
1. भारत की भाषाओं के आपसी संबंधों पर विचार हुआ और यह तय किया गया कि इस संबंध को और मजबूत  किया जाएगा।
2. भाषा के आधार पर एक वृहत्तर भारत की तस्वीर बनती है, इस धारणा का व्यापक प्रचार किया जाएगा। वृहत्तर भारत के साथ संबधों के निर्वाह के रास्ते भी तलाश किए जाएंगे।
3. हिन्दी और उनकी जनपदीय भाषाओं का रिश्ता धीरे धीरे जटिल होता जा रहा है। प्रत्येक जनपदीय भाषाएं हिन्दी से अलग पहचान के लिए संघर्षरत हैं। इनके कारणों की तलाश कर उसके निदान की बिंदुओं को उद्घाटित किया जाएगा।
4. संस्कृत भारतीय भाषाओं के बीच की कड़ी है। इस कड़ी की उपेक्षा हुई है। इस संबंध में   समन्वय बनाया जाएगा।
5. हिन्दी और अंग्रेजी के बीच वर्चस्व की राजनीति का अंत कर इनकी भूमिकाओं के सही रेखांकन की आवश्यकता है। किसी भी भाषा के प्रति दुराग्रह को त्यागकर उसकी उचित भूमिका तय किए जाने का प्रयास किया जाएगा।
6. प्रत्येक राज्य में कम से कम एक भारतीय भाषा विश्वविद्यालय की स्थापना हो जो भारतीय भाषाओं के वांगमय में उपस्थित ज्ञान संपदा को देश के समक्ष प्रस्तुति में योगदान का अवसर प्रदान करे
7. सामान्य शब्दों के लिए भारतीय भाषाओं में समांतर कोश निर्मित हो
8.  इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में भारतीय भाषाओं के कुंजीपटल हों जिससे लोग अपनी भाषा में अधिकतम योगदान कर सकें
9. प्रत्येक विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में भारतीय साहित्य का एक पाठ्यक्रम अनिवार्य हो देश की भावात्मक एकता को अभिव्यक्त करता हो
10. भारतीय भाषाओं के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक आयोग का गठन हो  ।
11. समस्त भारतीय भाषाओं में सामान्य अभिवादन के प्रति हम देशभर में जनजागरण करेंगे। एवं संविधान सभा की तीन दिन की बैठक को सर्व समाज में चर्चा का विषय बनाएंगे।

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