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हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में गाँधी सभागार में डाॅ उदयनारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला हुई आयोजित

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हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में गाँधी सभागार में डाॅ उदयनारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला हुई आयोजित

 

हिन्दी का क्षेत्र बहुत व्यापक है – प्रो. रामकिशोर शर्मा,बोली और भाषा का संबंध चोली और दामन का संबंध – डाॅ. राधेश्याम सिंह,कई कृतिया भोजपुरित की वजह से ही चर्चा के केन्द्र में रहीं – डाॅ. भगवती प्रसाद द्विवेदी,ब्रजभाषा द्वारा तैयार जमीन पर खड़ी बोली का विकास हुआ है – प्रो. कृष्णचन्द्र गोस्वामी,मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचनाओं में बुन्देली का प्रयोग किया – डाॅ. चित्रगुप्त,बोलियों का विकास ही भाषा को बनाता है – देवेन्द्र प्रताप सिंह,हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में गाँधी सभागार में डाॅ उदयनारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत ‘क्षेत्रीय बोलियों का मानक हिन्दी पर प्रभाव’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा एवं डाॅ उदयनारायण तिवारी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। इस अवसर पर हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0प्र0, प्रयगागराज द्वारा प्रकाशित प्रो. रामकिशोर शर्मा की पुस्तक ‘साहित्य विमर्श के विविध आयाम’ का विमोचन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिह्न और शाॅल देकर किया। । कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत करते हुए एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि डाॅ उदयनारायण तिवारी का भाषा-विज्ञान के क्षेत्र मे विशेष योगदान था उनकी स्मृति में हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को ‘डाॅ उदयनारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन करती है इसी क्रम में आज राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। हिन्दुस्तानी एकेडेमी का यह प्रयास रहता है कि क्षेत्रीय बोलियों का मानक हिन्दी पर प्रभाव पर विस्तृत चर्चा की जाय। जिससे क्षेत्रीय बोलियों और हिन्दी के अन्तः सम्बंधों का समझा जा सके। बोलियों का विकास ही भाषा को बनाता है। राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो. राम किशोर शर्मा (पूर्व विभागाध्यक्ष – हिन्दी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज) ने कहा कि ‘हिन्दी’ संज्ञा का प्रयोग साहित्येतिहास के संदर्भ में उसके अन्तर्गत सभी बोलियों के लिये किया जाता है किन्तु भाषा के संदर्भ में यह प्रयोग मानक हिन्दी के लिए ही सीमित हो गया है। हिन्दी का क्षेत्र बहुत व्यापक है। पश्चिम में अम्बाला, बीकानेर, जेसलमेर, पूर्व में रामगढ़ से भागलपुर तक, उत्तर में गंगोत्री यमुनोत्री, दक्षिण में बालाघाट- दुर्ग तक हिन्दी प्रदेश है। इतने लम्बे क्षेत्र में करीब 18 क्षेत्रीय बोलियाँ हैं। खड़ी बोली हिन्दी सक विकसित मानक हिन्दी अवधी, ब्रज, बुन्देली, भोजपुरी आदि के ध्वनिगत, व्याकरणगततत्वों को ग्रहण करके अपने मानक स्वरूप को स्थिर किया है।’ कार्यक्रम में क्षेत्रीय बोलियों का मानक हिन्दी पर प्रभाव विषय पर डाॅ. भगवती प्रसाद द्विवेदी, भोजपुरी भाषा, पटना, ने कहा कि ‘भोजपुरी एक ऐसी भागीरथ है जिसके एक तट पर लोक हे दूसरे किनारे पर शास्त्र तथा बीच में अहर्निश सांस्कृतिक प्रवाहित होती है। इसकी अभिव्यंजनामूलक अकूत शब्द-सम्पदा लोकोक्ति-मुहावरों की छटा, लोककथा, लोकगाथा, की किस्सागोई नवगीत समकालीन कविता की गवँईं चाछुष विम्बधर्मिता हिन्दी के तेवर और प्राभावोत्पदकता में चार चाँद लगाती है। हिन्दी पहला आँचलिक उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ (शिवपूजन सहाय) से लेकर ‘काशी का अस्सी’ (काशीनाथ सिंह) तक कई कृतिया भोजपुरित की वजह से ही चर्चा के केन्द्र में रहीं।’ संगोष्ठी में अवधी भाषा के मर्मज्ञ डाॅ. राधेश्याम सिंह, सुलतानपुर, ने कहा कि ‘बोली और भाषा का संबंध चोली और दामन का संबंध होता है। भाषा आपनी बोलियों का संरक्षण करती है और बोली अपनी भाषा को समद्धा करती है। अवधी, हिन्दी भी उन सत्रह बोलियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जो हिन्दी को उज्जिवित करती रही है। भूमंडलीकरण के परिदृष्य में क्षेत्रीयताओं उद्देश्य के साथ ही साथ क्षेत्रीय बोलियाँ भी अपनी अलग अस्मिता और पहचान के लिए बेचैन हों उठीं। परिणामस्वरुप हिन्दी की मानकता पर प्रभाव पड़ना शुरु हुआ है। हिन्दी के मानक स्वरुप के निर्माण में ब्रजभाषा के योगदान को रेखांकित करते हुए वृन्दावन से पधारे प्रो. कृष्णचन्द्र गोस्वामी ने कहा कि ‘राजभाषा के मानकीकरण की अपेक्षा हमारी भाषिक अनेकता में एकसूत्रता की अंकाक्षा का दूसरा नाम है। मध्यकाल में यह ब्रजभाषा द्वारा लगभग सम्पूर्ण उत्तरापथ में तैयार की गयी जमीन पर उस खड़ी बोली का विकास हुआ है, जोे स्वतंत्रता के बाद राजभाषा बनी।‘ बुंदेली भाषा के विद्वान वक्ता डाॅ. चित्रगुप्त, कन्नौज ने कहा कि ‘जगनिक के आल्हा खण्ड से लेकर तुलसीदास जी और आधुनिक कवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचनाओं में बुन्देली का प्रयोग किया है, हिन्दी के साथ साथ ब्रज, अवधी कन्नौजी जैसी बोलियों में बुन्देली का रस है, हिन्दी के अनेक मानक शब्द बुंदेली से साम्य रखते हैं।’ व्याख्यानमाला का संचालन एकेडेमी की प्रकाशन अधिकारी ज्योतिर्मयी ने किया। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्धानों में डाॅ. मुरारजी त्रिपाठी, डाॅ. उमा शर्मा, डाॅ. पीयूष मिश्र ‘पीयूष’, डाॅ. सृष्टि कुशवाहा, जितेन्द्र नारायण राय, एम.एस. खान, आचार्य श्रीकांत शास्त्री, आलोक मालवीय, रवि भूषण पाण्डेय सहित शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य आदि उपस्थित रहे।

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