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याद किये गए मुंसी प्रेम चंद्र,हिंदुस्तानी एकेडमी में की गई गोष्ठी, पुष्पार्चन

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याद किये गए मुंसी प्रेम चंद्र,हिंदुस्तानी एकेडमी में की गई गोष्ठी, पुष्पार्चन

हिन्दुस्तानी एकेडेमी के प्रशासनिक कक्ष में मुंशी प्रेमचंद की जन्म जयंती के अवसर पर ‘प्रेमचंद के साहित्यिक अवदान के संदर्भ में’ विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुंशी प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्चन के साथ हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एकेडेमी के कोषाध्यक्ष दुर्गेश कुमार सिंह ने कहा कि ‘मुंशी प्रेमचंद का प्रयागराज से बहुत लगाव था इसीलिए उन्होने सरस्वती को यहाँ प्रयागराज में स्थापित करने मे सहयोग किया था। प्रेमचंद की रचनाओं की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी उनके समय में थी। प्रेमचंद ने किसानों, मजदूरों की समस्या को उठाया।विचार गोष्ठी के मुख्य वक्ता विवेक सत्यांशू ने कहा कि ‘प्रेमचंद का हिन्दुस्तानी एकेडेमी से विशेष जुड़ाव रहा है। प्रेमचंद एकेडेमी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैैं। एकेडेमी का प्रतिष्ठित पहला ‘एकेडेमी सम्मान’ इनको दिया गया। एकेडेमी ने इनकी कहानी का अनुवाद ‘हड़ताल’ को प्रकाशित किया है। आचार्य श्रीकांत शास्त्री ने कहा कि ‘मुंशी प्रेमचन्द प्रथमतः आदर्शवादी उपन्यासकार रहें हैं किन्तु बाद में यथार्थवादी उपन्यासों की रचना की है। ऐसे उपन्यासों की शुरुआत सेवासदन (1918) से होती है। सामाजिक अत्याचार से पीड़ित नारी जीवन से जुड़ी वेश्यावृत्ति की समस्या का विश्लेषण किया गया है। गोदान अपने युग और समाज की महागाथा है। विचार गोष्ठी में एकेडेमी की प्रकाशन अधिकारी ज्योतिर्मयी ने कहा ‘प्रेमचंद अपने नारी पात्रों को कर्म, शक्ति और साहस से संयुक्त करते हैं। स्त्री के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सवाल प्रेमचंद के साहित्य में देखे जा सकते है। प्रेमचंद कितने प्रगतिशील थे उसका उदाहरण है कि उन्होंने एक विधवा से विवाह किया था।’ विचार गोष्ठी का संचालन करते हुए एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपाल जी पाण्डेय ने कहा कि ‘प्रेमचन्द जी ने अपने उपन्यासों में सामाजिक कुरीतियों ग्रामीण जीवन की समस्याओं- मजदूर, किसान, नेता, उपदेशक, राजा, रंक सभी का यथार्थ चित्रण किया है। उनकी कहानियों में गरीबों बेबसों का कारूणिक चित्रण मिलता है। कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों में रवि भूषण पाण्डेय, रतन पाण्डेय, संतोष कुमार तिवारी, अंकेश कुमार श्रीवास्तव, अनुराग ओझा, सुनील कुमार, एवं समस्त एकेडेमी परिवार के साथ शहर के अन्य रचनाकार एवं शोध छात्र भी उपस्थित थे।

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