टेक्नोलॉजी इस सदी की सबसे बड़ी चुनौती है जिसके हम गुलाम बनते चले जा रहे हैं। स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की वजह से लोग एक दूसरे से डिस्कनेक्ट हो गए हैं। मन की स्थिरता के लिए भावनात्मक संबल बहुत आवश्यक है।
उक्त उद्गार प्रोफेसर अखिलेश कुमार सिंह, कुलपति, प्रोफेसर राजेंद्र सिंह रज्जू भैया विश्वविद्यालय, प्रयागराज में सोमवार को उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय एवं प्रोफेसर राजेंद्र सिंह रज्जू भैया विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में मन की स्थिरता एवं भावनात्मक कल्याण विषय पर सक्षमता निर्माण संबंधी एक दिवसीय शिक्षक अभिविन्यास कार्यक्रम में व्यक्त किए।
प्रोफेसर सिंह ने सरस्वती परिसर स्थित लोकमान्य तिलक शास्त्रार्थ सभागार में शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि लोग एक दूसरे से तो डिस्कनेक्ट हो ही रहे हैं लेकिन अब स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि व्यक्ति ने खुद से भी दूरी बना ली है। जो इस शताब्दी की गंभीर चुनौती है। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि जीवन में हमें प्रतिस्पर्धा की जगह सहयोग की भावना का विकास करना चाहिए। उन्होंने कहा अगर प्रतिस्पर्धा करनी ही हो तो फुटबॉल के मैच की तरह होनी चाहिए। जिसमें एक टीम के सभी खिलाड़ी गोल करने के लिए एक दूसरे को पास करते हुए फुटबॉल को गोल तक ले जाते हैं।
प्रोफेसर सिंह ने कहा कि आज सारे झगड़े वास्तविकता एवं धारणा को लेकर खड़े हुए हैं। आज भूख और प्यास के लिए झगड़ा नहीं हो रहा बल्कि देश की सीमा पर एक रेखा खींच दिए जाने के कारण उस सीमरेखा को लेकर झगड़ा हो रहा है, जबकि प्रकृति ने वह सीमरेखा बनाई ही नहीं।
अभिविन्यास कार्यक्रम में बीज वक्ता सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एवं परामर्शदात्री डॉ.रूपा शंकर ने कहा कि शरीर पांच तत्वों के मेल से बना है। जिनका असंतुलन होने से ही समस्याएं उत्पन्न होती हैं। उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ शरीर के लिए व्यायाम एवं योग को हमें प्रतिदिन करना चाहिए। मन की शांति के लिए 7 से 8 घंटे की पर्याप्त नींद के साथ ही पाक कला में भी प्रवीण होना चाहिए।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह ने कहा कि घर में एवं कार्य स्थल पर मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का सही होना आवश्यक है। शिक्षकों को विशेष रूप से अपनी कक्षाओं में अंतर क्रिया करते समय भी इसका विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है उन्होंने कहा कि अगर शिक्षक अपने को खुश रखेगा तभी छात्र भी उससे खुश रहेंगे। अध्यापकों के अंदर यह भावना भी विकसित होनी चाहिए कि जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करें।
प्रो. सिंह ने कहा कि गुस्से एवं तनाव को किस प्रकार नियंत्रित किया जाए यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए दूसरों की भावनाओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए।
विषय प्रवर्तन स्वास्थ्य विज्ञान विद्या शाखा के निदेशक प्रोफेसर गिरजा शंकर शुक्ला ने करते हुए कहा के शरीर में चोट लगने पर हम तुरंत डॉक्टर के पास जाते हैं परंतु हमें न जाने कितनी बार मानसिक चोट का सामना करना पड़ता है। जिसका जिक्र हम कहीं नहीं करते। उन्होंने कहा कि मन और भावना का संयोग बहुत विचित्र है।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम के निदेशक प्रोफेसर पीके पांडे ने किया। संचालन डॉ सुरेंद्र कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर छत्रसाल सिंह ने किया। समारोह में मुक्त विश्वविद्यालय एवं रज्जू भैया राज्य विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने प्रतिभाग किया।