प्रयागराज के कलाकार सत्याधीर सिंह की कला यात्रा…
लेखिका पूनम किशोर
कालकृति वाह सृजन है जो आनंद की अनुभूति कराता हैं, चाहे वह रंग का एक धब्बा हो या फिर पत्थर के बीच की कोई दरार प्रकृति में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां सौंदर्य ना हों केवल उसके स्वरूप भिन्न होते हैं।
एक ऐसे कलाकार की हाल ही में दिल्ली के प्रसिद्ध कला दीर्घा हैबिटेड सेंटर में लगी एक सप्ताह की चित्रों की प्रदर्शनी में कुछ ऐसा ही देखने को मिला वह कलाकार बहुत दूर से नहीं बल्कि प्रयागराज के मूल निवासी सत्यधिर सिंह हैं, इनका जन्म प्रयागराज में 10 नवंबर 1982 हुआ इनके पिता एन बी सिंह और मां रीता सिंह हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दृश्य कला विभाग से बी, एफ ए किया तभी से मैं सत्यधीर को जानती हूं मैं बी एफ ए प्रथम बैच की छात्रा रही और सत्यधीर बी एफ ए द्वितीय वर्ष के छात्र रहे । फिर भी सवाल करना लाज़मी हैं भई! 1 प्रश्नन – बीएफए करने के बाद का सफर कैसा रहा?
उत्तर – ….सफर कैसा रहा तो हसीं भी आनी थी की जानते हुए भी यह सवाल करना खैर ! सत्यधीर ने बड़े सहजता से उत्तर दिया और अपना आगे का सफर भारत भवन भोपाल में शुरू हुआ , (एक विश्व प्रसिद्ध मल्टी आर्ट सेंटर) में पूर्णकालिक फ्रीलांस कलाकार के रूप में काम करने के लिए भोपाल जाने का फैसला किया। हिन्दी साहित्य पढ़ने में मेरी हमेशा से गहरी रुचि रही है। साहित्य में मेरी रुचि ने अनगिनत विचारों को पोषित किया और मेरे दिमाग को एक रचनात्मक मिश्रण दिया। मुझे उन विचारों को पेंटिंग और चित्रों के रूप में व्यक्त करना अच्छा लगता है। मध्यवर्गीय आम आदमी की कहानियाँ मुझे हमेशा आकर्षित करती थीं। यही कारण है कि शरद चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे साहित्यिक विद्वानों की कहानियों से प्रभावित हूं।
मुंशी प्रेम चंद्र, फणीश्वर नाथ रेणु और जोगेन चौधरी, मंजीता जैसे महान कलाकार के.जी. सुब्रमण्यम आदि। शुरू से साहित्य पढ़ने से मेरी कला को काफी प्रभावित किया,एक प्रकार की नाटकीय और व्याख्यात्मक गुणवत्ता को मैं अपनी सभी भावनाओं को पेंटिंग के माध्यम से जीता हूं। मैं रेखाओं और रेखाचित्रों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में बहुत सहज हूं। जब मैं खुश या दुखी होता हूं, तब भी पेंटिंग करता हूं, जब मैं उदास होता हूं, तब भी पेंटिंग करता हूं। मैं अपने शरीर और दिमाग को आराम देने के लिए पेंटिंग करता हूं। मैं खुद को बढ़ावा देने के लिए पेंटिंग भी करता हूं, जब मैं रुढ़िवादी समाज से लड़ रहा होता हूं तब भी पेंटिंग करता हूं और सबसे बढ़कर मेरा जुनून और पेशा पेंटिंग ही है। चित्रकारी अब मेरी आदत बन गई है और धीरे-धीरे यह मेरी केशिकाओं में रक्त की तरह बहने लगती है।
2- प्रश्नन – आपके रेखा चित्रों को देखकर ऐसा लगता है कि यह किसी नाटक या कहानी का रूपांतरण है। क्या यह सच है?
उत्तर – मेरा काम शुरू से फिग्रेटिव ही रहा हैं मनुष्य की उपस्थिति न भी हो तो उसका आभास रहता हैं मनुष्य प्रकृति की सबसे सुंदर कृति है मैं अपने चित्रों में रेखाओं को विशेष महत्व देता हूं और मेरी कला में रेखाओ का महत्वपूर्ण पक्ष हैं और रेखाओं को बरतने में दो बातें साफ तौर पर ज़रूरी हैं एक तो चित्रकार की अपनी मानसिक स्थिति और रंगों के प्रयोग का तकनीकी पक्ष। एक कलाकार अपने सिद्धांत के आधार पर अपने रंगों का इस्तमाल करता है और मैं अपनी बात कहने के लिए वैसे ही रेखाओं और रंगों का चुनाव भी करता हूं रेखाओं का प्रभाव देखने वाले के मन पर पड़े ऐसा प्रयास रहता हैं। शब्दों में तो इसकी व्याख्या एक कला समीक्षक ही कर सकता हैं।और अपने काम में मैं न केवल रंगों और स्थान के रूप में विरोधाभास और जुड़ाव पैदा करता हूं, बल्कि जिसे हम समकालीन कहते हैं, उसके साथ इतिहास और परंपरा को मिलाकर अतीत और वर्तमान को एक साथ लाने का भी प्रयास करता हूं। मेरी कहानियाँ वर्तमान समस्याओं और आम लोगों के सामान्य जीवन के अनुभवों पर केंद्रित हैं। और यह कल्पना की दुनिया का निर्माण करता है। मेरी पेंटिंग्स अक्सर सपने और वास्तविक दुनिया के बीच इस संघर्ष को दिखाती हैं।
आलंकारिक शैली कला का एक पुराना रूप है। प्राचीन काल से ही इस शैली में बहुत काम हुआ है लेकिन इस दुनिया को देखने का मेरा अपना नजरिया है। मैं अपनी कहानियों को पंक्तियों के अनूठे रूप में सुनाता हूं, मेरी पंक्तियों की ताकत और लय मुझे अपने काम को समकालीन शैली में प्रस्तुत करने में मदद करती है जहां मैं एक आम मध्यमवर्गीय व्यक्ति की आंखों के माध्यम से भारतीय भावना को चित्रित करता हूं। जो एक कथा सा लगता है।
3 प्रश्नन – आपने अपने चित्रों में रेखाओं को अत्यधिक महत्व दिया है और कहीं कही चटक रगों का भी प्रयोग किया क्या आपको कहीं न कहीं बिना रंगो के चित्र अधूरे लगते हैं?
उत्तर – मैं मुख्य रूप से आलंकारिक ड्राइंग और पेंटिंग के अमूर्त रूप में काम करता हूं, जिसमें काले और सफेद रंग की कठोरता को मैने प्राथमिकता दी है, लेकिन आजकल मैं अपने चित्रों के लिए मुख्य रूप से ग्रे शेड रंग का उपयोग करता हूं। मेरे काम में अक्सर कैनवास/कागज पर ऐक्रेलिक पेंट या काले रंग के गतिशील, व्यापक ब्रश स्ट्रोक और कैनवास की पृष्ठभूमि पर और आकृतियों में बहुत सपाट रंग शामिल होते हैं, लेकिन रेखाओं के बोल्ड और शक्तिशाली स्ट्रोक के साथ जो मेरी कला की विशेषता हैं। यह अक्सर देखा गया है कि मेरी पेंटिंग, विशेष रूप से मेरी आकृतियों की रेखाएं मेरे अवचेतन मन की कहानियों की गति नियंत्रित है लेकिन गतिशील भावना व्यक्त करती हैं। रंगों का अपना महत्व हैं एक कलाकार के लिए माध्यम उसकी मन की बात कहती हैं और उस मन में छुपी सारी भावनाओं को सामने लाने में मदद करती हैं लाल, पीला, नीला,भूरे रंगो से प्रकृति के अनेक वस्तुओं को उसकी जीवंतता में रखकर मैं अपने चित्रों में उभारने का प्रयत्न करता हूं।
4 प्रश्नन – ऐसा सुना है की आपको साहित्य के साथ साथ संगीत भी बहुत पसंद हैं और वो आपके कलात्मक जीवन में कितना महत्व रखती हैं?
उत्तर – जी हां मुझे आमतौर पर अपने स्टूडियो में शास्त्रीय वाद्य संगीत बजाता हूं जो मुझे सकारात्मक ऊर्जा और लय देता है मेरी कई पेंटिंग (रचना) तब आकार लेती हैं जब मैं अर्ध अवस्था में होता हूं और जब मैं जागता हूं तो मेरी रेखाओं के माध्यम से रचना आमतौर पर समाप्त होने लगती है और आसानी से कागज/कैनवास पर रंग और स्याही के साथ रेखाओं को प्रवाहित कर देती है।
सत्यधीर ने देश विदेशों में बहुत सारी प्रदर्शनियां भी की बहुत सारे पुरस्कार से सम्मानित भी हुए जिनमे से प्रमुख पुरस्कार -2024-25-पोलक-क्रास्नर फाउंडेशन अनुदान, न्यूयॉर्क, यूएसए 2020-21-पोलक-क्रास्नर फाउंडेशन अनुदान, न्यूयॉर्क, यूएसए 2008-2009 ललित कला अनुसंधान अनुदान, छात्रवृत्ति नई दिल्ली
2007-एच.आर.डी. (राष्ट्रीय छात्रवृत्ति) नई दिल्ली
2015-2016-प्रफुल्लधनुकर आर्ट फाउंडेशन द्वारा प्रथम सिटी अवार्ड भोपाल और इलाहाबाद 2015-अमेरिकन आर्ट अवार्ड विजेता श्रेणी -8 में तीसरा और छठा पुरस्कार, आर्ट ब्रूट।2013-सर्वश्रेष्ठ फोटोग्राफी के लिए दूसरा पुरस्कार, सेंट्रलइंडियन हाईलैंड्स वाइल्डलाइफ फिल्म 2012-अमेरिकन आर्ट अवार्ड विजेता श्रेणी -8 में प्रथम पुरस्कार।2012-अमेरिकी कला पुरस्कार विजेता, श्रेणी-27 में चौथा, पांचवां, छठा पुरस्कार। 2011- महाराजा मान सिंह कला, संगीत, संस्कृति समिति, ग्वालियर में प्रथम पुरस्कार।2006-26वीं राज्य ललित कला अकादमी, लखनऊ2006 – प्रथम वार्षिक प्रदर्शनी, ए.यू. में सम्मानजनक उल्लेख।
एकल प्रदर्शनी-
2023- चित्र प्रदर्शनी ऑडिटोरियम हॉल जहांगीर आर्ट गैलरी नई दिल्ली 2018- “शेड्स” एलायंसफ़्रैन्काइज़ डी भोपाल,2013 – धूमिमल आर्ट गैलरी नई दिल्ली 2012 – जीवन का आनंद “जहांगीर आर्ट गैलरी, कालाघोड़ा, मुंबई, इंडियन काउंसिल फॉर कटूरा रिलेशन्स (आई.सी.सी.आर.) क्षेत्रीय केंद्र, भोपाल
समय बदलता है समय के साथ कला भी बदल ही जाती हैं सत्यधीर ने अपने रेखाओं से एक अलग पहचान बनाई समय बदलता है नए माध्यम आ जाते हैं यह हर काल में होता आया है । जब एक कलाकार अपने माध्यम कला सामग्री को अच्छे से समझ लेता है तब यही समझ उसकी कला जीवन का आधार बनती हैं फिर नए नए बदलाव के प्रति उपेक्षा का भाव कलाकार को पीछे छोड़ जाती हैं और फिर वह अपनी एक स्टाइल में रम जाता हैं जिससे उसकी एक पहचान कला के रूप में सामने आती हैं और यह एक दो सालों में नहीं बनती इसके पीछे कलाकार कि वर्षों की तपस्या होती हैं