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लेख संजय पाण्डेय 

Ujala Live

लेख संजय पाण्डेय 

*इस समय संसदीय लोकतंत्र शायद अपने सबसे निचले मकाम पर पहुंच गया है।यह ढलान कब समाप्त होगी, समतल जमीन कब मिलेगी ,कोई नहीं जानता,किसी को पता नहीं**

जिम्मेदार कोई भी हो , संसद परिसर में पिछले कुछ दिन पहले जो हुआ वह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चेहरे पर एक बड़े धब्बे के समान है । घटना पर चर्चा नहीं करेंगे , सब जान गए हैं कि क्या क्या हुआ । कौन दोषी और कौन अहंकारी यह किसी से छिपा हुआ नहीं है ।

दस वर्षों से संसद का ऐसा कोई सत्र नहीं हुआ जब सब कुछ 50 प्रतिशत शांति के साथ संपन्न हो गया हो । 100 प्रतिशत शांत सदन तो अब असंभव हो गए हैं । संसद सत्र दूसरे को नीचा दिखाने , जिस जनता ने वोट देकर सरकार बनाई उसे काम न करने देने के लिए बदनाम हो चुके हैं । लगता है संसदीय राजनीति ख़ीज मिटाने का एक मंच बन चुकी है ।

सबसे बड़ी खीज चुनावी पराजय से उत्पन्न होती है । अब देखिए 2012 से राहुल गांधी ने कांग्रेस की चुनावी बागडोर संभाली । तब से हालिया महाराष्ट्र के चुनाव तक उनके नेतृत्व में हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी को 89 बार पराजय का सामना करना पड़ा । जाहिर है उनके व्यवहार में नफ़रत और खीज का जन्म होना ही था , हो भी गया ।

बरसों से संसद में जो चल रहा है , सारंगी जी के साथ जो हुआ वह उसी पराजयी खीज का परिणाम है । और क्या करे कोई ? भाई 55 साल तक बेख़ौफ़ राज करना और फिर 22 सालों तक सत्ता को तरसते रह जाना आसान नहीं होता । जाहिर है जब वह सत्ता नहीं मिलती तब उस सत्ता को पाने के लिए सब कुछ जायज है । बेशक इस रास्ते पर कोई अडानी आए कोई मोदी आए या फिर कोई सारंगी ?

दलितों का नया वोट बैंक बनाने के लिए राहुल और प्रियंका कल नीली ड्रेस पहनकर संसद आए । लम्बे समय से यह रंग कांशीराम और मायावती की बपौती बने हुए थे । पर यह क्या हुआ , व्हाइट से ब्ल्यू होते ही स्वभाव इतना गर्म ? आजादी के बाद वह जमाना था जब सफेद कबूतर और सफेद गुब्बारे उड़ाए जाते थे । वह शांति का प्रतीक थे । सुर्ख लाल , गहरा नीला और काला रंग शांति नहीं क्रांति और शोक के प्रतीक हैं

भाई बहन ने नीला चुना । क्रांति या शोक के लिए नहीं , अंबेडकर के प्रति निष्ठा दिखाते हुए 17.5% मतदाताओं को 17% मुस्लिमों के साथ जोड़कर 12 वर्षों में 89 पराजयों से उबरने के लिए । कमाल है राजनीति तेरा कमाल है । सब खेल रहे हैं । कोई हालात से खेल रहा है तो कोई जज्बातों से । करें भी क्या । 28 दलों को जोड़कर इंडिया बनाया और वह भी काम न आया । निशाना तो शाह और मोदी हैं , बेचारे प्रताप सारंगी और मुकेश राजपूत रास्ते में आ गए ।

तो घेर रहे हैं कभी राफेल के नाम पर , कभी अडानी के नाम पर । हर बार चौपट आ गिरे तो चलो सब की कमजोर कड़ी अंबेडकर पर ही खेलना शुरू । अब राह में जो भी गिरे तो गिरे , अपनी राजनीति नहीं लुढ़कनी चाहिए । पिछले दस सालों से तो लगातार यही चल रहा है । न वे संसद चला पा रहे हैं , न वे चलने दे रहे हैं ।
उक्त विचार भाजपा की वरिष्ठ नेता एवं ब्राह्मण परिषद उत्तर प्रदेश के प्रदेश उपाध्यक्ष इंजीनियर संजय शेखर पांडे ने एक कार्यक्रम में व्यक्त किया

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