राजर्षि टंडन की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा मुक्त विश्वविद्यालय- प्रोफेसर केबी पांडेय
मुक्त विश्वविद्यालय करेगा राजर्षि टंडन से जुड़े दुर्लभ लेखों का संग्रह – कुलपति
हिन्दी के प्रति राजर्षि टंडन का अगाध प्रेम अभिनंदनीय – श्री कक्कड़
राजर्षि टंडन व्याख्यानमाला के 16 वें पुष्प का आयोजन
उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज में मंगलवार को भारत रत्न राजर्षि टंडन के जन्मदिवस पर राजर्षि टंडन स्मृति व्याख्यानमाला के 16 वें पुष्प का आयोजन किया गया।
व्याख्यानमाला के मुख्य अतिथि लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष तथा छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर के बी पांडेय ने कहा कि राजर्षि टंडन ने हिंदी को स्थापित करने का भागीरथ प्रयास किया। उनका मानना था कि हिंदी ही पूरे देश को एकता के सूत्र में बांध सकती है। हिंदी को समृद्ध बनाने के साथ साथ राजर्षि टंडन चाहते थे कि स्वतंत्र भारत के तरुण अपने को देश के प्राचीन गौरव तथा आदर्शों से जोड़ें। इसके लिए शिक्षा से बड़ा और कोई माध्यम नहीं हो सकता। प्रोफेसर पांडेय ने कहा कि उत्तर प्रदेश में राजर्षि टंडन के नाम पर स्थापित यह मुक्त विश्वविद्यालय राजर्षि जी की अपेक्षाओं पर निरंतर खरा उतर रहा है। राजर्षि टंडन के मन में गरीबों दलितों वंचितों तथा महिलाओं के उत्थान की बलवती आकांक्षा थी। प्रोफेसर पांडेय ने राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के साथ अपने गहरे जुड़ाव को साझा किया। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डी पी सिंह जहां उनके गुरू रहे वहीं एक अन्य कुलपति प्रोफेसर ए के बख्शी उनके शिष्य रहे। इसी तरह उन्होंने राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के पुत्र श्री संत प्रसाद टंडन एवं उनके पौत्र श्री दिनेश टंडन से अपने संबंधों को साझा किया। संत प्रसाद टंडन विभागाध्यक्ष तथा दिनेश टंडन उनके सहपाठी रहे। प्रोफेसर पांडेय ने कहा कि जिस प्रकार प्रयागराज को गंगा यमुना सरस्वती की त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है। उसी तरह राजनीति के क्षेत्र में भी राजर्षि टंडन, महामना मदन मोहन मालवीय तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रयागराज की आधुनिक त्रिवेणी कहा जाता था।
मुख्य वक्ता श्री उमेश चंद्र कक्कड़, कवि एवं साहित्यकार ने कहा कि राजर्षि टंडन ने हिंदी भाषा के प्रचार के लिए केवल वैचारिक योगदान ही नहीं किया बल्कि उसे व्यवहारिक रूप भी दिया। हिंदी साहित्य सम्मेलन के जन्मदाताओं में उनकी भूमिका प्रमुख थी। उनका मानना था कि हिंदी भारत की रीढ़ है, भारत की आत्मा है, हिंदी के प्रति टंडन जी का अगाध प्रेम अभिनंदनीय है। हिंदी उनके संस्कार का प्रतिबिंब थी। श्री कक्कड़ ने कहा कि हमारी मातृभाषा जितनी समर्थ और विकसित होगी उतना ही वैश्विक स्तर पर हमारा राष्ट्र और नागरिक विकसित होंगे। उन्होंने कहा कि आज संकल्प का दिन है कि राजर्षि टंडन के सपनों को साकार करने के लिए भाषा के विकास की प्रक्रिया अनवरत बनी रहे।
अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए कुलपति प्रोफ़ेसर सीमा सिंह ने कहा कि राजर्षि टंडन नियम और अनुशासन के बहुत पाबंद थे। टंडन जी का जीवन हम सबके लिए अनुकरणीय है। उनकी सादगी और सरलता को हर व्यक्ति को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि मुक्त विश्वविद्यालय ने अपने पुस्तकालय में राजर्षि टंडन से जुड़े दुर्लभ लेख एवं पांडुलिपियों के संग्रह का कार्य प्रारंभ किया है। उन्होंने जन सामान्य से इस कार्य में सहयोग करने का आह्वान किया। जिससे आने वाली पीढ़ी राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे महा मनीषी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सके।
इसके पूर्व लोकमान्य तिलक शास्त्रार्थ सभागार में अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन एवं मां सरस्वती तथा राजर्षि टंडन की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया। अतिथियों का वाचिक स्वागत कार्यक्रम निदेशक प्रोफेसर पी के पांडेय ने किया। कार्यक्रम के बारे में संयोजक डॉ जी के द्विवेदी ने तथा अतिथियों का परिचय आयोजन सचिव डॉ दिनेश सिंह ने दिया। संचालन श्रीमती कौमुदी शुक्ला एवं धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव कर्नल विनय कुमार ने किया।
इस अवसर पर राजर्षि टंडन जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आयोजित लेख प्रतियोगिता में शिक्षक, कर्मचारी एवं छात्र वर्ग में प्रथम तीन स्थान पर आए प्रतिभागियों को मुख्य अतिथि, कुलपति व मुख्य वक्ता ने स्मृति चिन्ह एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। सम्मानित होने वालों में शिक्षक संवर्ग में प्रथम श्री राजेश सिंह,द्वितीय कौमुदी शुक्ला एवं तृतीय कामना यादव रहीं। कर्मचारी संवर्ग में प्रथम श्री इन्दुुभूषण पांडेय, द्वितीय डॉ सोनी मिश्रा तथा तृतीय श्री शिवकुमार कुशवाहा रहे। इसी प्रकार शिक्षार्थी संवर्ग में प्रथम संतोष कुमार यादव, द्वितीय अंकित सोनी तथा तृतीय बृजेश सिंह रहे।