हिंदी दिवस पर हिंदुस्तानी एकेडमी के तत्वावधान में हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी
हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में आज दिनांक 14 सितंबर 2023 को ‘सामाजिक समरसता में नाथ पंथ का अवदान’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रज्ज्वलन एवं सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत हिन्दुस्तानी एकेडेमी के सचिव देवेंद्र प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर ‘हिन्दुस्तानी’ त्रैमासिक के बाबू श्यामसुन्दर दास पर केन्द्रित विशेषांक का विमोचन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि नाथ पंथ की परंपरा में महायोगी गुरु गोक्षखनाथ से प्रारम्भ करके आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक सामाजिक समरसता के लिए अनेक अभियान चलाए हैं। इसीलिए नाथ पंथ समरसता का पर्याय कहा जाता है। नाथ पंथ ऊँच-नीच, छुआछूत और कुरीतियों के खिलाफ समाज को जगाने में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। महंत दिग्विजय नाथ ने शिक्षा के क्षेत्र में समरसता लाने के लिए महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना किया एवं इसमें दलित, शोषितों और वंचितों को प्राथमिकता दी। महंत अवैद्यनाथ का मीनाक्षी पुरम में पुनर्वास तथा देश भर के धर्माचार्यों के साथ वाराणसी में डोमराज के घर भोजन करने की घटना सामाजिक समरसता की पराकाष्ठा है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. रविशंकर सिंह विशेष कार्य अधिकारी महायोगी गुरु गोरक्षनाथ शोधपीठ गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर ने कहा कि नाथ पंथ के सामाजिक समरसता में सबसे बड़ा योगदान गोरक्षनाथ का रहा है उन्होंने योग दर्शन को सभी के लिए सुलभ बनाया। नाथ पंथ की आध्यात्मिक धारणा है कि जो ब्रह्मांड में है वही पिंड में है इसलिए पिंड के शोधन की आवश्यकता है अर्थात मनुष्य को अपने शरीर का शोधन करना चाहिए। नाथ पंथ जाति, धर्म, लिंग संप्रदाय के आधार पर किसी तरह का कोई विभेद नहीं करता है। कार्यक्रम में एमडीएस विश्वविद्यालय अजमेर राजस्थान से पधारे डॉ सूरजमल राॅव ने कहा कि राजस्थान में नाथ संप्रदाय का विशेष प्रभाव रहा है। नाथ संप्रदाय की व्यापक पहुंच आम साधारण व्यक्ति से लेकर राज परिवार तक समान रूप से दृष्टिगत होती हैं। नाथ संप्रदाय के सांस्कृतिक जीवन मूल्य राजस्थान के लोक जीवन एवं सभ्य समाज में स्पष्ट रूप से देखे जाते हैं। राजस्थान की भौगोलिक स्थिति कुछ इस प्रकार है कि मध्यकालीन आक्रान्ताओं ने इसी रास्ते भारत पर आक्रमण किया। सूफी दर्शन और इस्लाम दर्शन सभी सर्वप्रथम इसी प्रदेश में व्यापकता से फैले नाथ संप्रदाय एवं सखी संप्रदाय के साथ औलिया फकीरों को साथ-साथ देखा गया। सामाजिक सद्भाव की दृष्टि से राजस्थान के पाँच पीरों ने मध्यकाल से लेकर आज तक हिन्दू, मुस्लिम समन्वय संस्कृति का भाव विकसित किया। यहॉं के आध्यात्मिक लोक जीवन में नाथों की औलियो के साथ सूफियों के दर्शन को आज भी गाया जाता है। यहॉं के नाथ मठ भारतीय संस्कृति के पोशक एवं संरक्षक रहे हैं । लखनऊ से आए वैज्ञानिक अधिकारी डॉ मधुसूदन उपाध्याय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतवर्ष आध्यात्मिक प्रयोगशाला भी है, संस्कृतियों का अंगना- पलना भी है। यहॉं उच्चाभिलाषी आत्माओं के मुक्ति हेतु समय – समय पर ईश्वर प्रेरित साधना पद्धतियों का विकास होता रहा है। आदिनाथ भगवान शिव द्वारा प्रवर्तित और गोरख तथा मछेंदर जैसे सिद्ध योगियों द्वारा पोषित नाथ परम्परा ऐसी एक विलक्षण तथा क्रियात्मक साधना पद्धति है जो शैव शाक्त और योग सबको अंतर्गुम्फित करके मानव मन और तन को किन्हीं बहुत बड़ी महत अर्हताओं के लिए तैयार करती है। यह हम सबका सौभाग्य है कि हम आज कौशिकी अमावस्या के दिन इस पवित्र परम्परा को याद कर रहे हैं।’ अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में लोक पहल के संयोजक डॉ विजय कुमार सिंह ने कहा कि हमें हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभिमान होना चाहिए तथा हमें स्वयं इसे अपनाना चाहिए । उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सामाजिक समरसता का प्रतीक बताया तथा कहा कि गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति को सभी धर्म संप्रदाय के द्वारा चढ़ाई जाने वाली खिचड़ी तथा उसका भंडारे में सभी जात धर्म संप्रदाय के लोगों को एक साथ उसका ग्रहण करना सामाजिक समरसता का सबसे बड़ा उदाहरण है। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपाल जी पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्धानों में डाॅ. अमिताभ त्रिपाठी, डाॅ. उमा शर्मा, डाॅ. शान्ति चैधरी, डाॅ. पीयूष मिश्र ‘पीयूष’, गलाम सरवर, व्यासमूनि, सहित शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य आदि उपस्थित रहे।