भाजपा जिलाध्यक्ष पद के दावेदारों की धड़कनें एक बार फिर बढ़ीं
जिला संवाददाता वैभव पचौरी
एटा। जब से यह सूचना बाहर आई है कि भारतीय जनता पार्टी आज यूपी में अपने जिलाध्यक्षों की घोषणा करेगी, तभी से इस पद के दावेदारों की धड़कनें और गतिविधियां एक बार फिर बढ़ गई हैं। पार्टी ने तय किया है कि हर जिले में जिला चुनाव अधिकारी द्वारा ही वहां के जिलाध्यक्ष के नाम की घोषणा की जाएगी। एक बात तो साफ है कि भाजपा ने यूपी में अपने जिलाध्यक्षों के नाम तय करने का सबसे दुरूह कार्य पूरा कर लिया है। 16 मार्च को जिलाध्यक्षों के नाम जब सामने आएंगे, तब यह काम ढाई महीने की देरी से पूरा हो पाएगा। जिलाध्यक्षों का चुनाव 31 दिसंबर 24 तक होने थे। इसके बाद नई तारीख 15 जनवरी तय हुई थी। इसके बाद यह काम टलता ही चला गया। जानकार सूत्र बताते हैं कि उत्तर प्रदेश भाजपा से जिलाध्यक्षों के नामों की जो सूची केंद्रीय कार्यालय में भेजी गई थी, वह एक बार नहीं, दो बार लौटाई गई थी। सूची लौटाने की वजह लेन-देन जैसे संदेहों के साथ ही सामाजिक समीकरण पूरे न होना भी था। पार्टी चाहती थी कि जिलाध्यक्ष पदों पर दलित, पिछड़ा और महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व हो। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व चाहता था कि यूपी में भाजपा के जिलाध्यक्षों के चयन में सभी जातियों को मौका मिले। समाजवादी पार्टी के पीडीए को पूरी तरह निष्प्रभावी करने के लिए भाजपा ने जिलाध्यक्षों का चयन बहुत सावधानी के साथ किया है। सूत्रों का कहना है कि जिलाध्यक्षों की जो सूची सामने आने वाली है, उसमें हर जाति का प्रतिनिधित्व दिखेगा। ऐसे-ऐसे नाम सामने आ सकते हैं कि पार्टी के ही लोग चौंक जाएंगे।
कौन सा जिला किस जाति के लिए
यह पहले से तय भाजपा के सूत्रों से मिल रही खबरों के अनुसार तो पार्टी ने पहले से तय कर लिया कि किस जिले में किस जाति को जिलाध्यक्ष पद सौंपना है। इसी क्रम में चुनाव अधिकारियों को बता दिया गया था कि उन्हें अपने जिले से किस जाति के दावेदारों का पैनल भेजना है। सूत्र बताते हैं कि जब सूची केंद्र में पहुंची तो पिछड़ा, दलित और महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व न होने पर ये प्रदेश को दो बार वापस लौटाया गया था।