*हमने तो एक सबील लगा दी है राह में*
*पानी पिओ तो करबोबला हो निगाह में*
पैग़म्बरे इसलाम मोहम्मदे मुस्तफा के नवासे हज़रत इमाम हुसैन उनके असहाब और अक़रबा पर यज़ीदी सेना द्वारा नहरे फोरात पर लगाए गए पहरे और तीन दिन की भूख और प्यास की शिद्दत मे करबला की सरज़मी पर शहीद कर देने की 14 सौ साल पहले घटी सबसे बड़ी आतंकी घटना को याद करते हुए प्रत्येक वर्ष माहे मोहर्रम के चाँद के नमुदार होने के बाद से लगातार 67 दिन शिया समुदाय नवासा ए रसूल पर ढ़ाए गए ज़ुल्म को ताज़ा करते हुए ग़मगीन मजलिस और नौहे के द्वारा अज़ीमुश्शान शहादत पर गिरया ओ ज़ारी करता है वही करबला के प्यासों के नाम पर कहीं ठण्डा पानी तो कहीं दूध के शरबत की सबील लगाकर यह पैग़ाम देता है की हुसैन ए मज़लूम पर जहाँ यज़ीद ने पानी बन्द कर सूखे गले पर कुंद खंजर चला कर ज़िब्हा कर दिया तो हम हुसैन के शैदाई राहगीरों को पानी और शरबत पिलाकर उस वक़्त के पहले आतंकी यज़ीद के कारनामों को उजागर करते रहेंगे ताकि अब कहीं भी दूसरा यज़ीद न पैदा हो सके।शाहरुक़ क़ाज़ी द्वारा कोतवाली जीटी रोड पर एक मोहर्रम से दस मोहर्रम तक इमाम हुसैन के नाम लगी सबील यही पैग़ाम दे रही है।इस मौक़े पर शायर व आफताबे निज़ामत नजीब इलाहाबादी ने क्या खूब कहा।हमने तो एक सबील लगा दी है राह मे।पानी पिओ तो करबोबला हो निगाह में।। यह है लगी सबील शहे तश्नाकाम की।असग़र से शीरख्वार व सकीना के नाम की।।तिश्नगी दिल से हर ऐहसास मिटा देती है।प्यास इन्सान को दिवाना बना देती है।।यह है लगी सबील 72 के नाम की।नूरे निगाहे साक़ीए कौसर के नाम की।