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प्रयागराज का विकास शास्त्रों के अनुरूप माधव तीर्थ और पंचकोश परिक्रमा स्थान निर्धारित हो-वासुदेवान्द

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प्रयागराज का विकास शास्त्रों के अनुरूप माधव तीर्थ और पंचकोश परिक्रमा स्थान निर्धारित हो-वासुदेवान्द

प्रयागराज। प्रयागराज विद्वत परिषद की बैठक में आज धर्मपीठ ज्ञानपीठ और विद्यापीठ के प्रमुखों प्रतिनिधियों ने एक स्वर से कहा कि प्रयागराज का विकास शास्त्रों के अनुरूप किया जाए। भरद्वाज आश्रम मुक्त किया जाए तथा माधव को शास्त्र के अनुसार स्थापित किया जाए।

स्वामी वासुदेवानंद राम जन्मभूमि तीर्थ न्यास की अध्यक्षता में आज साधु संतों और विद्वय जनों की बैठक हुई जिसमें माधव के स्थान पर प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। बैठक में कहा गया कि शास्त्र के अनुसार वट वृक्ष और त्रिवेणी मूल स्थान है। यहां पर तीन माधव है। इसके अलावा गंगा और यमुना के तट पर हर दिशा में एक माधव बताए गए हैं। शास्त्र के अनुसार जिन दिशाओं में जो माधव स्थापित हैं वहां पर अगर पहले से माधव नहीं है तो सरकार वहां माधव की स्थापना करें।
बैठक में विद्वत जनों ने शास्त्र के अनुसार गंगा और यमुना के सभी तट पर त्रिवेणी से लेकर तक्षक कुंड तक तथा तक्षक कुड से नाग बासुकी और शेष मंदिर तक आश्रम और तीर्थों का स्थान बताया गया। इसी तरह अरेल तथा झूसी के तटों पर अलग-अलग देवता वह अलग अलग ऋषि का स्थान बताया गया। विद्वत परिषद के समन्वयक वीरेंद्र पाठक ने वैज्ञानिक रूप से शास्त्रीय रूप से परिषद के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत किया कि सोमेश्वर महादेव तक्षक तीर्थ तथा नाक बासुकी शास्त्रों में कही गई त्रिकोण भूमि दर्शाते हैं। इन तीनों रचनाओं की दूरी एक समान है ,तथा कुल दूरी 5 कोस है ।जिसे गूगल मैप से भी देखा जा सकता है।
स्वामी वासुदेवानंद ने सभी तर्कों को शास्त्र प्रमाण को सुनने के बाद कहा कि शास्त्र यही प्रमाण दे रहे हैं । शास्त्र सम्मत ही स्थापना की जानी है।
कैवल्यधाम के हरि चैतन्य ब्रह्मचारी बैकुंठ धाम के श्रीधराचार्य अलोप शंकरी देवी के महंत यमुनापुरी नाग बासुकी के श्याम धर त्रिपाठी ,तक्षक तीर्थ के रविशंकर सहित सभी विद्वानों ने एकमत से यह व्यवस्था दी कि दिशाओं के अनुसार माधव स्थापित किया जाए।
श्री लाल जी शुक्ला पूर्व पुलिस महानिरीक्षक ने महर्षि भरद्वाज के स्थान पर तीन दिवसीय राम कथा के आयोजन का प्रस्ताव दिया जिसे सभी ने हर्ष ध्वनि के साथ स्वीकार कर लिया गया।
प्रस्ताव के अनुरूप श्री अंशुल त्रिपाठी जी ने सभी तट पर आश्रम और देवता के स्थान की चर्चा की और उसी अनुसार विकास कार्य किए जाने की बात दोहराई। सभी स्थानों पर बोर्ड लगाकर वहां के तीर्थ और आश्रम के बारे में प्रचारित किया जाना चाहिए।
विद्वत परिषद में डा विशाल ने महर्षि भारद्वाज पार्क का नाम बदलकर आश्रम तथा यहां धार्मिक सांस्कृतिक क्रियाकलापों के लिए एक बड़ा सत्संग हॉल डिजिटल लाइब्रेरी व मंदिर के सौंदर्यीकरण का प्रस्ताव सर्वसम्मति से किया। इस बात पर जोर दिया गया कि महर्षि भरद्वाज की जयंती को सरकार और अच्छे से मनाए।
परिषद ने ‘जहां चरण पड़े प्रभु श्री राम के”एक यात्रा भगवान राम के प्रयाग आने और चित्रकूट जाने की स्मृति में निकाले जाने की का भी निर्णय लिया । यह अपेक्षा सरकार से की गई कि इसे शासन प्रशासन अपने स्तर पर आयोजित करें जैसे अयोध्या में किया जा रहा है।
बैठक में प्रयागराज क्षेत्र को तीर्थ क्षेत्र घोषित किए जाने के साथ यहां पर मांस मदिरा का सार्वजनिक विक्रय बंद करने की मांग पुनः दोहराई गई।
बैठक में ज्योतिष विद बृजेंद्र मिश्रा कि इस बात पर भी सहमति बनी थी हिंदी पंचांग में कई बार व्रत त्योहार के संबंध में अलग-अलग विचार आते हैं ऐसे में प्रयागराज विद्वत परिषद की ओर से सही मार्गदर्शन और तिथि त्यौहार के बारे में प्रकाशन किया जाएगा।
परिषद की बैठक में पूरे प्रयाग भर के सभी मठ मंदिरों तीर्थ स्थानों की विशेषता पर्यटन की साइट पर डालने के साथ एक ऐसा तंत्र विकसित करने पर निर्णय हुआ जो यहां की सभी विशेषताओं को लोगों को बता सके।
बैठक में पूर्व कुलपति प्रोफेसर पियूष रंजन अग्रवाल ने पर्यटन की यहां असीम संभावनाओं को स्वीकार किया तथा कहा कि प्रस्तावित तीर्थ और आश्रम के विकसित हो जाने पर पंचकोसी परिक्रमा स्वत होगी । साथ ही यहां के पर्यटन पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ेगा जिसका लाभ सभी को होगा।
बैठक में क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अपराजिता सिंह तथा प्रयागराज विकास प्राधिकरण की ओर से जोनल अधिकारी सी पी सिंह उपस्थित थे। बैठक में प्रमुख रूप से निम्बार्क आश्रम के राधा माधव दास शांडिल्य गुरु सोमेश्वर महादेव मंदिर के महंत राजेंद्र पुरी डॉ प्रमोद शुक्ला शैलेंद्र पुरी पुजारी डा सियाराम त्रिपाठी पूर्व प्राचार्य प्रभु दत्त ब्रह्मचारी आश्रम झूसी डॉक्टर कमलेश त्रिपाठी पूर्व प्राचार्यपंडित राम नरेश त्रिपाठी डॉ चंद्र विजय चतुर्वेदी डॉ कृष्णानंद त्रिपाठी स्वर्ण कुमार शर्मा रवि पाठक हर्ष चैतन्य लाल बाबा उमाशंकर प्रमुख रूप से उपस्थित थे

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