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पेड़ों के लिए अपनी कुर्बानी देने वाली माता अमृता देवी के बलिदान को याद किया गया

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पेड़ों के लिए अपनी कुर्बानी देने वाली माता अमृता देवी के बलिदान को याद किया गया

रिपोर्ट-आलोक मालवीय

पेड़ है लो कल है वर्ना सब बेरंग है,पेड़ों के लिए 1730 में अपने आप का बलिदान करने वाले 363 लोगों के बलिदान को याद किया गया।अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद पार्क प्रयागराज में 1730 को अमृता देवी नाम की 42 वर्षीय महिला के नेतृत्व में 363 लोग हरे पेड़ों को बचाने के बलिदान हुए थे जिसमें 71 नारी शक्तियां थी उनकी स्मृति में 28 अगस्त को अमृता देवी स्मृति प्रकृति पूजन कार्यक्रम रखा गया, जिसमें अधिक पौधा रोपण करने और उनका संरक्षण करने का संकल्प लेकर के सभी बलिदानों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। अशा रानी फाउंडेशन के नेतृत्व में इलाहाबाद जन कल्याण समिति और काई अन्य संस्थाओं ने शामिल होकर पेड़ों के ऊपर अपने अपने विचार व्यक्त किये और अमृता देवी बलिदान दिवस 28 अगस्त को भारत में पर्यावरण दिवस के रूप में मनाये जाने की मांग की।समाज सेवी आभा सिंगन ने कहा कि इस दिन अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना ही अमर बलिदानी वीरांगना अमृता देवी सहित 363 शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धाजलि होगी।अमृता देवी के बलिदान की क्या कहानी है वो भी जानना हर हिंदुस्तानी के लिए जरूरी है।। माता अमृता देवी ने पेड़ो की रक्षा के लिए दिया अदभुत बलिदान जोधपुर (राजस्थान) के राजस्व विभाग के अभिलेखों से पता चलता है कि 1730 में जोधपुर नरेश महाराज अभय सिंह को महल के निर्माण हेतु भरी मात्रा में लकड़ी की आवश्यकता पड़ी। उन्होंने अपने मंत्री को आदेश दिया कि लकड़ी का प्रबंध करें । राजा के आदेश का पालन करते हुए मंत्री ने सैनिकों को आदेश दिया कि जोधपुर से 25 किलोमीटर दूर खेजड़ली गांव में स्थित खेजड़ी के जंगल से पेड़ों की कटाई करके लकड़ी की व्यवस्था करें। मंत्री के हुक्म का पालन करते हुए कुछ सिपाही मजदूरों के साथ कुल्हाड़ी लेकर उस गांव में पहुंचे, जहां खेजड़ी का विशाल घना जंगल है।
वहां पेड़ों की कटाई शुरू हुई ही थी कि गांव के लोग इकट्ठा हो गए और वृक्षों को काटने का विरोध किया। किन्तु उनका विरोध मात्र मौखिक विरोध था। किसी में साहस नहीं था कि आगे बढ़कर समूह का नेतृत्व करें। अमृता देवी, जो घर में चक्की पीस रही थी, को जब पेड़ों की कटाई की खबर मिली तो उन्होंने पेड़ काटने वालों को ललकारा और कहा कि हम प्राण देकर वृक्षों की कटाई रुकवाएंगे।
उन्होंने कहा कि “जो सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जांण”। इतना कहकर वह पेड़ से चिपक गई। सिपाहियों ने राजाज्ञा उल्लंघन की दुहाई देते हुए उसका सर काट दिया। मां का अनुसरण करते हुए उसकी दो बेटियों ने भी पेड़ से चिपक कर अपना शीश कटवाया। अब क्या था, ग्रामीण लोग एक-एक पेड़ से चिपक गए। सिपाहियों के आदेश से मजदूरों ने पेड़ से चिपके लोगों को एक-एक करके काटना शुरू किया।
अंतिम बलिदान मुकलावा ने अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ दिया। यह घटना 28 अगस्त, 1730 (भाद्रपद शुक्ल 10, सम्वत् 1787) की है। महाराजा जोधपुर को जब इस हृदय-विदारक घटना की जानकारी मिली तो वे घटनास्थल पर आए और जनता से क्षमा मांगते हुए पेड़ों की कटाई रोक दी। और घोषणा की कि अब भविष्य में इस क्षेत्र के जंगलों में कोई हरा पेड़ नहीं काटेगा। वह राजाज्ञा आज भी ज्यों की त्यों लागू है।
पर्यावरण प्रदूषण रूपी जिस दानव से आज समूची मानव सभ्यता भयभीत है उसका आभास वीरांगना अमृता देवी को आज से 293 वर्ष पहले ही हो गया था। अमृता देवी एवं उनके गांव के साथियों का वृक्षों की रक्षा के लिए बलिदान देना पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत एवं ज्योति पुञ्ज बन गया है। खेजड़ली गांव में उन अमर बलिदानियों का स्मारक बना है।
बलिदान स्थल पर प्रतिवर्ष “वृक्ष शहीद मेला” लगता है। राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के हजारों श्रद्धालु यहां इकट्ठा होते हैं और अमर शहीदों को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। 1997 से राज्य सरकार द्वारा घोषित अमृता देवी जयपुर स्थित विश्व वानकी उद्यान के निकट झालना क्षेत्र में वीरांगना अमृता देवी की स्मृति में राज्य सरकार द्वारा अमृता देवी उद्यान की स्थापना कर उनकी पुण्य तिथि पर जन उपयोग के लिए अर्पित किया गया है। 35 हेक्टेयर में फैले इस वृक्ष उद्यान में दुर्लभ प्रजाति के पेड़-पौधे भू-क्षरण को रोकते हैं और संदेश देते हैं कि हम हैं तो आक्सीजन है शरीर में जान है,पेड़ हैं तो फल हैं,पेड़ हैं तो पक्षियों की चहचहाहट है,पेड़ हैं तो हरियाली है,पेड़ हैं तो छाया है,पेड़ है तो सावन के झूले हैं।

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