“एकता” द्वारा आयोजित “लोक राग रंग उत्सव”,कलाकारों के सुंदर प्रदर्शन से दर्शक हुए आनंदित
प्रयागराज ।अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता और बर्बरता के सामने भारतीय सैनिकों की शौर्य वीरता बलिदान का सजीव चित्रण 29 अगस्त को लखनऊ के वाल्मीकि रंगशाला के मंच पर प्रयागराज की चर्चित सांस्कृतिक संस्था एकता द्वारा आयोजित “लोक राग रंग उत्सव” के अंतर्गत मंचित नाटक “शहीद लाल पद्मधर” में देखने को मिला।
आज़ादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से “एकता” संस्था द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में आयोजित किया जा रहे “लोक राग रंग उत्सव” की यह पांचवी कड़ी थी। इसके पूर्व “एकता” संस्था ने दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ एवं पंजाब में “लोक राग रंग उत्सव” का सफल आयोजन कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हुए इलाहाबाद के युवा क्रांतिकारी लाल पर पद्मधर की वीरता और बलिदान को बहुत मार्मिक रूप से नाटक “शहीद लाल पद्मधर” नाटक के माध्यम से दिखाया गया।नाटक की कहानी युवा कांतिकारी नेता लाल पद्मधर के इर्द गिर्द घूमती है।अगस्त क्रांति मैदान से अंग्रेजों को भारत छोड़ने को कहा जाता है। इस दौरान शक्तिशाली आंदोलन में भारतीय आंदोलनकारी अंग्रेजी सैनिकों को खदेड़ने का प्रयास करते हैं तो दूसरी तरफ अंग्रेजी सैनिक ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर देते हैं। इधर इलाहाबाद में आंदोलन का मोर्चा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संभालते हैं। छात्रों का नेतृत्व युवा छात्र नेता लाल पद्मधर करते हैं। लाल पद्मधर के नेतृत्व में छात्रों का हुजूम जिला कचहरी की ओर कूच करता है। अंग्रेजी सैनिकों के लाख रोकने की कोशिश के बाद भी आंदोलनकारी छात्र रुकने की बजाय आगे बढ़ते जा रहे थे। अंग्रेजी सैनिक जब खुद को कमजोर महसूस करने लगे तो उन्होंने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी। सभी छात्र जहां थे वहीं लेट जाते हैं किंतु लाल पद्मधर हाथ में तिरंगा लिए तटस्थ खड़े रहते हैं क्योंकि वह लेटते तो तिरंगा झुक जाता आखिरकार उसी समय अंग्रेजों की गोली उनको लगती है और वह वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं। यहीं पर नाटक का अंत होता है। इस मार्मिक दृश्य को देखकर दर्शक भाव विभोर हो जाते हैं। सभी कलाकारों ने अपने प्रभावपूर्ण अभिनय से पूरे समय दर्शकों को नाटक से बांधे रखा। लाल पद्मधर की भूमिका में श्वेतांग मिश्रा, नयनतारा की भूमिका में प्रगति रावत, मां की भूमिका में शीला, सूत्रधार की भूमिका में शुभम सिंह की प्रभावपूर्ण भूमिका थी। आरिश जमील, हरशलराज, प्रियांशु कुशवाहा, शुभेंदु कुमार, यश मिश्रा, अभिषेक सिंह ठाकुर, शरद कुशवाहा, विक्रांत केसरवानी ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया। संगीत परिकल्पना रोहित यादव, प्रकाश व्यवस्था अभिषेक गिरी गीतकार कुमार विकास, मंच सामग्री प्रियांशु कुशवाहा, शरद यादव, रूपसज्जा शीला एवं प्रगति रावत का था। नाटक के लेखक अजीत दुबे थे। सह निर्देशन रोहित यादव ने किया। नाट्य परिकल्पना एवं निर्देशन पंकज गौड़ ने किया।
आयोजन के दूसरे चरण में सुप्रिया सिंह रावत के निर्देशन में लोक नृत्य की मनोहारी प्रस्तुति हुई। चंडीगढ़ में सुरेंद्र सिंह एवं पंजाब में बलवीर सिंह भंवरा के निर्देशन में लोक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कलाकारों ने अलग-अलग प्रदेशों के संस्कारों , तीज त्योहार पर गाए जाने वाले गीतों पर नृत्य प्रस्तुत किया। इस अवसर पर वरिष्ठ रंग कर्मियों सहित साहित्यकारों, पत्रकारों एवं अन्य बुद्धिजीवियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
नृत्य के कलाकारों में अनूप कुमार, रामेहर, सिद्धार्थ, खुशी, नेहा, महक, तनु, अंजू, दिव्या, प्राची, सौम्या चंद्रा, आरती यादव, साक्षी दुबे, सुप्रिया कुमारी, मधुरिमा श्री, शिवानी पाल थी। कार्यक्रम संयोजक जमील अहमद थे, तथा संपूर्ण कार्यक्रम की परिकल्पना मनोज गुप्ता ने की थी। कार्यक्रम का मंच संचालन सुश्री शांता सिंह ने किया।