सोनभद्र में खनन हादसा एक की मौत तीन मज़दूर गंभीर रूप से घायल 4 लापता
(सोनभद्र से समर सैम की रिपोर्ट)
सोनभद्र। जनपद सोनभद्र के बिल्ली मारकुंडी पत्थर खदान में भयानक हादसा। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ बालाजी एसोसिएटस के खदान में भयानक विस्फोट के कारण आरंगी निवासी अनन्त (उम्र तकरीबन 35 वर्ष) पुत्र छत्रधारी की खदान में आन द स्पॉट दर्दनाक तरीके से मौत हो गई। वहीं तीन मज़दूर गंभीर रूप से जख्मी हो गये। खदान में काम करने वाले चार मज़दूरों की तलाश की जा रही है। ये कन्फर्म नहीं हो रहा कि वह कहीं खदान के बाहर चले गए थे या खदान की चट्टान में दबे हुए हैं।
यूपी का जिला सोनभद्र समूचे प्रदेश में नियमों को ताक पर रखकर अवैध खनन के लिए जलील ओ ख़्वार हो रहा है। जिस प्रकार चेन स्मोकर सिगरेट की आखिरी कश खीचने के बाद उसे जूतियों से रगड़ देता है। उसी प्रकार खनन माफिया कानून व्यवस्था को अपनी नोंक पर रखते हैं। बिल्ली मारकुंडी खनन बेल्ट में नियम कानून को इतना रगड़ा जा रहा है कि जितना बिहारी खैनी भी न रगड़ते होंगे।
जिसके चलते जनपद सोनभद्र का खनन बेल्ट मज़दूरों की कब्रगाह बनता जा रहा है। 13 अक्टूबर की सुबह जनपद मुख्यालय पर खान सुरक्षा जागरूकता अभियान हेतु सभा की तैयारी का कोरम पूरा किया जा रहा था। उसी समय खनन माफियाओं ने सिस्टम के चेराह पर से पर्दा उठा दिया। ओबरा थाना क्षेत्र के बिल्ली मारकुंडी पत्थर खदान में अचानक से बेतरतीब ब्लास्टिंग के चलते 10 मज़दूर घायल हो गए। घायलों में से तीन मज़दूरों की हालत नाजुक बनी हुई है। उनका इलाज ट्रामा सेंटर में चल रहा है। खबर लिखे जाने तक चिकित्सकों की लाख कोशिशों के बाद भी गंभीर रूप से घायल तीनों मज़दूर कोमा से बाहर नहीं आ पाये थे। वहीं कुछ मजदूर खदान हादसे के बाद से लापता बताये जा रहे हैं। उक्त खनन हादसा बालाजी एसोसिएट नामक खदान में हुआ है। ये दिल दहला देने वाला हादसा तब हुआ जब जनपद में खदान सुरक्षा सप्ताह मनाने का ढोंग रचा जा रहा था। दिलचस्प बात ये है कि ये खदान ई टेंडरिंग के जरिये एलाट की गई है। उक्त खदान में नीलामी से पहले भी व्यापक पैमाने पर अवैध खनन हो चुका है। उसकी कोख में इतना बारूद भरा गया है कि उसने आविकसित जल स्रोत को जन्म दे दिया है। उक्त जलस्रोत को सुखाने के लिए खदान में पम्पिंग सेट लगाकर पानी बाहर निकाला जाता है। नियम के विपरीत होने के बाद भी शासन प्रशासन ने उक्त खदान की नीलामी आखिर क्यों की। जब कानून का क्रियावयन कराने वाली संस्थाये ही राजस्व के लालच में अपने बनाये हुए नियमो से खिलवाड़ करेंगी तो ऐसे में देश कैसे चलेगा। लॉ एंड आर्डर का राज कैसे कायम होगा। ऐसे में खनन व्यवसायियों का हौसला बुलन्द होगा। अगर वह कानून को ताक पर रखकर अवैध खनन कर रहे हैं तो ऐसे में बुराई क्या है। जो व्यवसाई करोड़ों रुपये लगाकर और सिस्टम को भी भोग लगाकर तमाम पापड़ बेलने के बाद खदान हासिल करता है तो उससे सही की उम्मीद करना ही चुतियापा है। लानत तो उस शासन प्रशासन को जाता है जो मजदूरों के लिए भस्मासुर बन गया है। देखा जाये तो एक हिसाब से हादसों के लिए खदान व्यवसाई अधिक दोषी नहीं है। लेकिन इन खदानों में हादसों का शिकार होने वाले मज़दूर और उसका परिवार फरियाद करे तो किस्से करे। फ़िलहाल बिल्ली मरकुंडी पत्थर खदानों में एक बार फिर से मौत का नंगा नाच शुरू हो गया है। खनन के इस कारोबार की चमक सबको दिखाई दे रही है। लेकिन इस चमक में शामिल मजदूरों के लहू की बू का एहसास किसी को नहीं है। हादसे में घायल मजदूरों को इलाज के बजाय घटना को दबाने की भरसक कोशिश की गई। हादसे की खबर सुनकर जो भी आ रहा है मैनेज के खेल में लग जा रहा है। मगर किसी को मज़लूम मज़दूरों के दर्द ओ गम से कोई लेना देना नहीं। क्या इतना पाषाण हिर्दय हो गया है हमारा समाज। अब कोई राजा नहीं आने वाला सबरी के झुठे बेर खाने। अब इस मुग़ालते में मत रहो कि कोई राजा सिंघासन से उतर कर गरीब सखा का पैर अपने आँसुओं से धोयेगा। इस पासाणयुगीन समाज में बचाकर रखना अपने बच्चों के लिए जीवन की चेतना। अब कहां वह आचरण रामायणी, पाठ से बाहर हुई कामायनी। मेसर्स बालाजी एसोसिएटस की खदान बिल्ली पोखरा के पास है। जिसकी आराजी संख्या 4949 ख एवं रकबा 6. 80 हेक्टेयर है। स्वीकृत पट्टा अवधि 5 अप्रैल 2023 से 4 अप्रैल 2033 तक है। इस खदान पर पहले भी नियम विपरीत अवैध खनन की पेनाल्टी डॉ रोशन जैकब के स्थलीय निरीक्षण के बाद लग चुकी है। मेसर्स बालाजी एसोसिएटस पेनाल्टी और पुनरावृत्ति न होने की शपथपत्र देने के बाद भी अपने हरकतों से बाज नहीं आया। और उसके खदान में इतना बड़ा हादसा पेश आया। फ़िलहाल इतने बड़े हादसे के बाद भी जांच के नाम पर लीपापोती की जा रही है। चूंकि हादसे का शिकार मज़दूर हैं। इसलिए बाबा का बुलडोजर और बाबा की पुलिस दोनों खामोश है। जबकि खनन विभाग योगी आदित्यनाथ ने अपने पास रखा है। इसके बाद भी खनन के खेल में बेगुनाह मज़दूरों को रेला जा रहा है। योगीजी की ईमानदारी की कसम ज़मीन और आसमान दोनों खा रहे हैं। इसके बाद भी उनके नाक के नीचे नियम विपरीत खनन का इतना बड़ा खेल खुलेआम खेला जा रहा है। आश्चर्य की बात ये है कि सोनभद्र की अधिकांश मीडिया ने इस हादसे की कवरेज करना मुनासिब नहीं समझा। कुछ ने खबर छापी मगर सरसरी निगाह से रस्म अदायगी करते नज़र आये।
उक्त खदान को देखकर ही समझ में आ जाता है कि किस मूर्ख और धूर्त अधिकारी और कर्मचारी की जांच संस्तुति रिपोर्ट के बाद इस खदान का पुनः ई टेंडरिंग किया गया। जबकि किसी भी सूरत में उक्त खदान को पुनः संचालन हेतु ई टेंडरिंग नहीं कि जा सकती थी। उक्त पत्थर खदान में पहले ही मानक से अधिक खनन किया जा चुका था। ऐसे में उसे ई टेंडरिंग में शामिल करने वाले सभी लोग दोषी हैं। ऐसे आपराधिक मानसिकता वालों को अब शायद एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट ही सबक सिखा सकती है। इस लोमहर्षक हादसे में घायल मज़दूरों का मुजरिम पूरा सिस्टम है। ऐसे में शासन प्रशासन के ऊपर भी गैर इरादतन नहीं अपितु इरादतन हत्या का केस दर्ज होना चाहिए। पर अफसोस बिल्ली के गले में घन्टी बांधे तो आखिर कौन बांधे। यहां तो पूरे कुआं में ही भांग पड़ी हुई है। आख़िर पीडित मज़दूरों का परिवार किस्से इंसाफ की भीख मांगे। जब मुंसिफ ही मुजरिम बन जाये। जब रहबर ही रहज़न बन जाये। वहीं मज़दूरों के जीवन को संकट में डालने के साथ ही साथ प्रकृति के साथ भी जमकर खिलवाड़ किया जा रहा है। नेचर से खिलवाड़ कर रहे इन अक्ल के अंधों को ये नहीं मालुम कि अगर धीरे से भी नेचर ने खिलवाड़ कर दिया तो क्या होगा। दौलत की मद में चूर नियम को ताक पर रखकर खनन करने वालों तुम्हारी बुलन्दी का बोझ मजदूरों का पार्थिव शरीर उठाये हुए है । तुम्हारे घरों की रोटियां मज़दूरों की लहू से सनी हुई हैं। तुम्हारे घरों में खुशियां मज़दूरों की विधवा की सूनी मांग और टूटी चूड़ियों से आती है। सालों से खदान हादसे में लापता मज़दूरों की जवान होती बेटियां घर की झोपड़ियों से गॉव की सूनी डगर पर अपने बाबा की आहट तलाश रहीं हैं। मासूम बच्चियां अपनी माँ से पूँछती हैं कि बाबा चूड़ियां कब लायेंगे। मासूम बच्चा पूंछता है कि बाबा खिलौना कब लायेंगे। शायद इन अभागों को नहीं पता कि बाबा अब कभी नहीं आयेंगे। इन अभागों के बाबा तो गुज़र गये मगर सेठ की तिजोरी भर गये। अपनी झोपड़ी में अंधेरा कर गये, मगर सेठ की हवेली को रोशन कर गये। आलीशान मकान सबको अच्छे लगते हैं मगर इसके नींव की ईट ने जो कुर्बानी दी है उसे कोई नहीं याद रखता। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि लोकतांत्रिक सम्प्रभु भारत संविधान से चलता है। लेकिन धरातल की हकीकत यही है कि यहां आज भी सामंतवादी मानसिकता हावी है। खदानों में दिन रात मजदूर गन्ने की तरह पेरा जाता है तबजाकर सामंतवादियों की धन लोलुपता मन मयूर होती है। ऐसी ही मानसिकता जाता में पीस रहे मज़दूरों में असंतोष की भावना को जन्म देती है। असंतोष की यही भावना जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही उग्र आंदोलन में बदल जाती है। नक्सल मूवमेंट भी इसी तरह के असंतोष के कोख से उतपन्न हुआ। जो आज हमारे देश के लिए नासूर बन चुका है। सोनभद्र से नक्सल मूवमेंट का उन्मूलन हो चुका है। लेकिन आज भी निरन्तर ऐसी शोषण वादी एवं दमनवादी परिस्थितियों को पैदा किया जा रहा है। जिससे नक्सलियों को पैर जमाने के लिए जाने अनजाने उर्वर भूमि तैयार की जा रही है। अंत में एक शेर बस बात ख़त्म, हमे पता है लुटेरों के सब ठिकानों का। गर शरीके जुर्म न होते तो मुखबिरी करते।