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शांति की खोज नही,शांति है मन के अंदर …. निज स्वरुप …..

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शांति की खोज नही,शांति है मन के अंदर
…. निज स्वरुप …..

लेखिका-जूही श्रीवास्तव

शान्ति हमारा निज स्वरूप है, बस हम अपनी चंचल वृत्ति के कारण ही अशांत हैं। साबुन से कपडे में कभी भी चमक नहीं आती, साबुन केवल कपडे पर लगी गंदगी को साफ करता है। इसी प्रकार शांति के लिए हमें कोई प्रयत्न नहीं करना होता है , वह तो प्राप्त ही है। आनन्द तो नित्य है, सहज है, मिला हुआ ही है।

औषधि केवल रोग निवृत्ति के लिए होती है, स्वास्थ्य के लिए नहीं। स्वास्थ्य तो उपलब्ध है। अशांति देने वाले, विषाद देने वाले कर्मों से हमें बचना है। जिस प्रकार रोड़ पर चलते समय हमें स्वयं गाड़ियों से बचना पड़ता है लेकिन इस नियम को हम जीवन में और बहुत जगह पर लागू नहीं करते हैं।

क्लेश की, कलह की स्थितियों से विवेकपूर्वक बचते रहो। वो उत्पन्न होंगी और हर बार नए-नए रूप में आएँगी। जिस प्रकार एक कुशल नाविक तेज धार में समझदारी से अपनी नाव को किनारे लगा देता है उसी प्रकार आप भी समझदारी पूर्वक जीवन रुपी नाव को शांति और आनंद के किनारे पर रोज पहुँचाने के लिए प्रयत्नशील बने रहें ।

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