प्रसिद्ध कलाकार मंजीत बावा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ
लेखिका पूनम किशोर
28 जुलाई 1941 को जन्मे भारतीय कला की दुनिया में मंजीत बावा का बड़ा नाम हैं
मनजीत बावा उन कलाकारों में से रहे, एक तरह से कहे घुमक्कड़ कलाकार कला में एक साधू जिन्हें हम सभी साधुवाद करते हैं जिन्होंने देश के हर शहर गांव में घूमकर भारतीय जनमानस के सार को औऱ उनके रंगों को जाना-बूझा वे ज्यादातर हिमाचल प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे शहरों में खूब घूमे। भारतीय आम आदमी के सरल जीवन ने उन्हें काफी आकर्षित किया। लोगों की सरलता-सहजता उनका दिल छू लेती थी जिसे अपने कला के माध्यम से और अपनी कल्पनाशीलता से अपने चित्र फलक पर उकेरते और उसे चटख रंगों से पेंट करते, उन्हें चटक रंग खूब लुभाते थे।
मंजीत बावा अपनी पेंटिंग में मुख्य आकृति एक सपाट रंग का प्रयोग करते थे और उसे लाल रंग की पृष्ठभूमि पर बनाते थे उन्होंने देवी देवताओं के विभिन्न चित्र अपनी शैली में बनाए कई चित्रों में मुझे भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीला पर आधारित कथाओं पर बनाए वो चित्र बहुत अच्छे लगते है, उन्होंने हमेंशा कृष्ण की मानवाकृति पर नीले रंग का ही उपयोग किया, जिसके सिर पर मोर पंख और हाथ में बांसुरी बजाते हुए दिखाई पड़ते हैं और गाय के साथ चरवाहे के रूप में दर्शाते थे । किसी भी कलाकार के कला में योगदान का मूल्यांकन का एक आधार तो यह भी हो सकता है कि उस कलाकार ने अपने से पहले आए कलाकारों से अलग शैली और मध्यम का प्रयोग कैसे किया है।
पहले भी और आज भी भारतीय चित्रकला में ऐसे चित्रकार हैं जिन पर यूरोपीय कला का असर साफ देखा जा सकता हैं लेकिन इनमें से मनजीत बावा की अपनी एक शैली है और उस शैली से वो पहचाने जाते रहे हैं कलाकार का अंतरिक संसार है जिसे वह अपने अभिव्यक्ति के जरिए शैली और माध्यम से कैनवास पर उलेरता हैं और वह कल्पनाशीलता मजीत बावा की कलाकृतियों में साफ देखने को मिलता है ।
मनजीत बावा का भारतीय चित्रकला में सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने अपने फॉर्म को ज्यादा कल्पनाशील ढंग से वास्तविकता का विरूपण किया। फिर मनोहारी रंगों का संवेदनशीलता से प्रयोग किया और अपने आकारों के लिए यूरोप की ओर कभी नज़र भी नहीं डाला , बल्कि उन्होंने महाभारत, रामायण, पुराण और सूफी कविता से अपने चित्रों चित्रित किया और एक मुकाम हासिल किया और उनके चित्रों पर सरसरी निगाह डाली जाए तो ये तीन-चार बातें बाआसानी से देखी जा सकती हैं उन्होंने कहीं कहा भी था कि कला में ताजगी और नयापन जरूरी है,परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है
उसे उन्होंने अपने खूबसूरत चित्रों में अभिव्यक्त किया है।
एक ऐसे समय में जब भारतीय कला में अधिकतर चित्रकार भूरे-धूसर रंगों की तरफ जा रहे थे और अपने को अमूर्त कला में व्यक्त कर रहे थे,तब उस समय मनजीत बावा ने अपने लिए एक नई राह चुनी उन्होंने अपने चित्रों के लिए ठेठ भारतीय चटख रंगों का चयन किया। उन्होंने अपने चित्रों में लाल,पीले ,हरे, नीले ,गुलाबी, जामुनी,रंग का प्रयोग किया,मनजीत बावा देश के उन कलाकारों में से थे , जिन्होंने देश के तमाम इलाकों में घूमकर भारतीय परंपरा और संस्कृति को जाना और उसे अपनी शैली में चित्रित किया।वे हिमाचलप्रदेश, गुजरात और राजस्थान खूब घूमे। भारतीय लोगों के सरल जीवन ने उन्हें काफी आकर्षित किया। लोगों के बीच रहकर उनकी सरलता-सहजता उनका दिल छू लेती थी और चटख रंग उन्हें खूब लुभाते थे वे जहाँ जाते वहाँ पेपर बिछाकर उस समय के सामाजिक जीवन को अपने रेखा चित्रों के माध्यम से चित्रित कर लिया करते थे।
मंजीत बावा जब दिल्ली में रहते हुए कला की शिक्षा ले रहे थे तब उनके गुरु थे सोमनाथ होर और बीसी सान्याल, लेकिन उन्होंने अपनी जो पहचान बनाई अबानी सेन की छत्रछाया में तभी श्री सेन ने उन्हें कहा था कि रोज पचास स्कैच बनाओ। मनजीत बावा रोज पचास स्कैच बनाते थे और उनके गुरु इनमें से अधिकांश को रिजेक्ट कर देते थे। जाहिर है की यहीं से मनजीत बावा की स्कैच बनाने की रियाज शुरू हुई। उन्होंने अपने उन दिनों को याद करते हुए कहीं कहा भी था कि तब से मेरी लगातार काम करने की लत पड़ गई। जब सभी अमूर्त की ओर जा रहे थे तभी मेरे गुरुओं ने मुझे आकृतिमूलकता का मर्म समझाया और मुझे आकृति की मूल धारा की ओर जाने के लिए प्रेरित किया।
जहाँ उन्होंने 1958 में अध्ययन करना शुरू किया। 1964 में वे लंदन चले गए, जहाँ उन्होंने 1971 तक लंदन स्कूल ऑफ़ पेंटिंग में अध्ययन करते हुए सिल्कस्क्रीन प्रिंटमेकर के रूप में काम किया। वहां रहकर एक प्रतिभाशाली छात्र के रूप में उन्होंने लंदन में अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनी भी किया जिसमें लंदन में “टेरेस” और स्पेन के सैन सेबेस्टियन में एक निजी गैलरी में एक और शो शामिल है।”
वे आकृतिमूलकता की ओर आए तो सही लेकिन अपनी नितांत कल्पनाशील मौलिकता से उन्होंने नए फॉर्म्स खोजे, अपनी खास तरह की रंग योजना कि खोज की और मिथकीय संसार में अपने आकार ढूँढ़े और अपनी एक शैली बनाई उनके चित्र संसार में ठेठ भारतीयता के रंग आकार देखे जा सकते हैं। वहाँ आपको कृष्ण, गोवर्धन भी मिलेंगे,-राँझा भी मिलेंगे, देवी भी मिलेंगी तथा कई मिथकीय और पौराणिक प्रसंग-संदर्भ भी। …और सूफी संत भी मिलेंगे। इसके साथ ही उनके चित्रों में जितने जीव-जंतु मिलेंगे उतने शायद किसी और कलाकार की कलाकृतियों में मिलेंगे।,,,,
मंजीत बावा भारतीय पौराणिक कथाओं, पहाड़ी लघु चित्रों और सूफीवाद से बहुत प्रभावित थे। वर्तमान लॉट में, कलाकार ने अपने नायक को एक लेटे हुए शेर पर झुके हुए, लगभग उसके साथ जुड़े हुए दिखाया है – शायद भगवद गीता के अंशों का संकेत देते हुए जहाँ श्री कृष्ण खुद को ‘हरि’ या शेर के रूप में दर्शाते है, या ये कहें कृष्ण के ‘नृसिंहदेव’ अवतार में परिवर्तन की ओर इशारा करते हैं जहाँ वे एक ऐसे रूप में बदल जाते हैं जो आधा मनुष्य, आधा शेर है।
भारतीय कला के क्षेत्र में मनजीत बावा के जाने का मतलब यही है कि दर्शक गण उनके जरिये उस भारतीय कला की आत्मा ,जो एक यात्रा चल रही थी वह उनके जाने से अब देख नहीं पाएँगे जो उनके चित्रों में सजीव होती रही थी एक युग का अंत जरूर हो गया लेकिन उसकी छाप कला प्रेमियों के दिलों में और कला के क्षेत्र में युगों तक याद किया जाएगा और देखा जायेगा उनके जन्मदिवस पर मुझे आज लिखने का मन किया जिन्हें हमेशा उनकी कृतियों के जरिए देखते थे आज उन्हें मेरा नमन।
सभी चित्र – सैफ्रॉनआर्ट