प्रसिद्ध कलाकार यूसुफ साहब को उनके जन्मदिन पर बधाई….
लेख पूनम किशोर
प्रसिद्ध कलाकार यूसुफ जी अमूर्त कला के लिए पूरी दुनिया में अपनी एक पहचान रखते आज उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर उन्हें बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ईश्वर आपको दीर्घायु और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करें ताकि आप और आपकी कला युवा कलाकारों और समाज को सही दिशा में मार्गदर्शन करते रहे।
2 अगस्त 1952 में ग्वालियर में जन्मे 72 वर्षीय युसूफ जी ने ग्वालियर आर्ट कॉलेज से ललित कला और मूर्तिकला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। चूँकि वह अपने गुरु जे स्वामीनाथन के बहुत करीब रहें इसलिए वह भोपाल चले गए और अपना समय भारत भवन की स्थापना में उनकी सहायता करने में बिताया। भोपाल में कला आंदोलन में एक प्रमुख नाम यूसुफ़ जी का भी है
पिछले 30 वर्षों से, प्रसिद्ध कलाकार यूसुफ जी ने पूर्व निदेशक पद पर रहकर भारत भवन भोपाल में कार्य किया । देश दुनिया में यूसुफ जी ने बहुत सी कला प्रदर्शनियां की हैं जिसमे भारत भवन में अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में उनके चित्रों की अमूर्तन चित्र प्रदर्शनी में सभी चित्र जैसे ध्यान की एक दुनिया में उतरते हों क्योंकि उनकी कला कृतियों में कहीं रेखाएँ बहती हैं, कहीं मुड़ती हैं, दौड़ती हैं, टूटती हैं और शांत होती हैं समृद्ध दृश्य प्रस्तुतीकरण और अपनी लयबद्धता के माध्यम से वह जो जादू पैदा करते है, उसके लिए वह बहुत अनुभवी है। कैनवास पर भावना और कला, प्रेम और रंग की एक श्रृंखला को एक बंधन को गढ़ती हैं इनके चित्रों की श्रृंखला में अमूर्तन के साथ कहीं कहीं मूर्त रूप भी देखी जा सकती हैं उनकी कला में अमूर्त आकृतियाँ रेखाओं के आगे झुकती नज़र आती हैं निःसंदेह, उनकी कला का यह गुण संवेदनशील दर्शक को खुशी के साथ आश्चर्य की अनुभूति भी कराता है और उसे कुछ करने के लिए प्रेरित भी करता है।
मैने कहीं एक साक्षात्कार में पढ़ा था ,,,,यूसुफ जी ने कहा था कि कला चेतना की चंचलता को खुले मन से कैनवास पेपर या किसी अन्य सतह पर उंडेलने में निहित है।माध्यम कोई भी हो, अगर कलाकार उसे रचनात्मक जुनून में अपनी कल्पना के सांचे में ढालता है, तो सार्थक कला अवश्य बनती है। इसीलिए उन्होंने कई माध्यमों में काम किया। युवाओं को उनका संदेश है कि मेहनत करो और इस तरह काम करो कि वह काम ही आपका काम बन जाए। वही काम के प्रति दिलचस्पी ही आपके काम का विकास करती हैं और सफलता निस्संदेह उसी व्यक्ति को मिलती है जो काम में खुद को डुबोना जानता है।
आप सभी ने कलात्मक यात्रा की इन प्रेरक घटनाओं में यह भली-भाँति अनुभव किया होगा कि अच्छी कला जिसमें कलाकार के विशेष चरित्र की आभा होती है, हमें स्वयं भी कड़ी मेहनत करने की अद्भुत प्रेरणा देती है। यह भी कहना सही है की कला को धन की जरूरत नहीं होती. कलाकारों को इनकी जरूरत है, जिससे कलाकारों को अधिक अवसर और अनुकूल माहौल मिल सके। आवश्यक धनराशि कलाकारों की ज़िम्मेदारी नहीं है; बल्कि यह समाज और सरकार की जिम्मेदारी है। कला को सहारे की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन कलाकारों को ज़रूर होती है। कला कलाकार की अभिव्यक्ति का प्रथम आविष्कार हैं जिसे एक कलाकार अपनी कला के माध्यम से अभिव्यक्त करता हैं इसलिए एक कलाकार को कभी अकेलापन महसूस नहीं होता। वाह अपनी कला के माध्यम से अपने समुदाय और समाज से अधिक जुड़ा रखता है और उसका एक अहम हिस्सा बन जाता है। एक कलाकार जब अपने दर्शकों प्रशंसकों से मिलता है तो उसे एक संतुष्टि महसूस होती है। एक कलाकार निश्चित रूप से अकेले कार्य जरूर करता है लेकिन बाद में उसे दूसरों के सामने प्रदर्शित भी करता है। इस तरह एक कलाकार दो अस्तित्वों को जीता है। यूसुफ सर की कला पर कला विद्वानों और कला समीक्षकों ने बहुत से लेख लिखे और लिखते ही रहेंगे जिसका कभी अंत नहीं हो सकता कविता एक बोलता हुआ चित्र हैं पर कला एक मूक काव्य यूसुफ सर के चित्र किसी कविता के अनेक रूप लगते हैं जो एक लाइफ लाइन की तरह कलाकार के हाथ में होती हैं जो उसके जरिए निरंतर चलती ही रहती हैं जिसका कभी अंत नहीं होता। यूसुफ सर से मैं एक बार ही मिली थी लखनऊ ललित कला सेंटर में तभी से मैने यह भी जाना की मेरे कई कलाकार मित्र सहपाठियों को यूसुफ सर ने कला की दुनिया में एक अलग पहचान बनाने में एक सफल रास्ता दिखाया जिससे आज वह अभी अपनी कला साधना से कामयाब कलाकारों की तरह निरंतर कार्य कर रहे और कला की दुनिया में अपनी एक पहचान बनाई बड़े भाग्यशाली है वह सभी कलाकार जिन्हें यूसुफ सर का आशीर्वाद प्राप्त हैं शायद ही कोई ऐसा कलाकार होगा जिसने इतने सारे कला के छात्र छात्राओं को एक नई राह दिखाई होगी ऐसे महान कला गुरु को और उनकी कला साधना को मेरा प्रणाम।