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प्रो ओम् प्रकाश मालवीय एवं भारती मालवीय स्मृति सम्मान से सम्मानित हुए पंकज मित्र

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प्रो ओम् प्रकाश मालवीय एवं भारती मालवीय स्मृति सम्मान से सम्मानित हुए पंकज मित्र

 

प्रयागराज.सरोकार संस्था के तत्वावधान में हिंदुस्तानी अकादमी सभागार में आयोजित प्रो ओम् प्रकाश मालवीय एवं भारती मालवीय सम्मान समारोह के छठे संस्करण में वर्ष २०२४ के लिए यह पुरस्कार प्रख्यात हिंदी कहानीकार पंकज मित्र को दिया गया. कार्यक्रम का प्रारंभ में आनंद मालवीय ने पुरस्कार और निर्णायक समिति का परिचय दिया. ज्ञात हो कि इस पुरस्कार के अंतर्गत पच्चीस हज़ार रुपए की धनराशि, अंग वस्त्रम एवं स्मृति चिन्ह दिया जाता है.

कार्यक्रम का प्रारम्भ सम्मान सत्र से हुआ जिसमें DRDO ग्वालियर में तैनात प्रो ओम् प्रकाश मालवीय के शिष्य रहे डॉ. परितोष मालवीय ने व्यक्तिगत स्मृतियों के हवाले से प्रो मालवीय को श्रद्धा सुमन अर्पित किए. उन्होंने कहा कि प्रो मालवीय के सानिध्य से उनके जीवन की दिशा ही बदल गई. आज उन्होंने जीवन में जो कुछ भी अर्जित किया है उसके पीछे प्रो मालवीय का मार्गदर्शन ही था. उन्होंने आगे कहा कि जिस प्रकार कुम्हार गीली मिट्टी को आकार देता है उसी प्रकार प्रो मालवीय अपने शिष्यों के भविष्य को आकार देते थे. प्रो मालवीय अपने शिष्यों को मात्र शिक्षित ही नहीं करते अपितु उनके भीतर नागरिकताबोध जागृत करते थे. वे अपने शिष्यों को सामाजिक सरोकारों से भी जोड़ते थे.

उन्होंने भावुक कंठ से कहा कि उनका हाथ आज भी अपने कंधे पर महसूस करता हूँ. इसके उपरांत श्री संजीव रत्न मालवीय ने व्यक्तिगत स्मृतियों के हवाले से स्वर्गीय भारती मालवीय को स्मरण किया एवं श्रद्धा सुमन अर्पित किया. प्रतापगढ़ से आए प्रो मालवीय के डॉ. एस के पांडे ने प्रो मालवीय को याद करते हुए कहा कि वे असंभवों का समन्वय थे. वे एक समर्पित शिक्षक एवं प्रतिबद्ध समाजसेवी थे. इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो ओम् प्रकाश मालवीय के अनन्य शिष्य रहे पूर्व डीजीपी एवं महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं वरिष्ठ साहित्यकार विभूति नारायण राय ने प्रो मालवीय और भारती मालवीय के साथ अपनी व्यक्तिगत स्मृतियों को याद करते हुए कहा कि वे बहुत सरल व्यक्ति थे किंतु समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अतुलनीय थी. आज के समय इस बात की कल्पना करना भी मुश्किल है कि कोई शिक्षक चेचक निकलने पर शिष्य को अपने घर पर रखकर उसका इलाज करवा सकता है और पूरी तरह ठीक होने पर ही उसे अवकाश दे. ज़ाहिर है ये काम वे अपनी पत्नी के समर्पण और सहयोग के बग़ैर नहीं कर सकते थे. उनकी ही तरह ही उनकी पत्नी भी सरल एवं सहज व्यक्तित्व की धनी थी. साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रति प्रो मालवीय आजीवन प्रतिबद्ध रहे.

इसके उपरांत वरिष्ठ कथाकार एवं सम्पादक श्री पंकज मित्र जी को वर्ष २०२४ के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया. इसके उपरांत पंकज मित्र के रचनाकर्म एवं हिंदी साहित्य में उनके अवदान पर वरिष्ठ कहानीकार मनोज पांडे ने बोलते हुए कहा कि ९० के दशक के बाद हमारे समाज के बदलाव उनकी कहानियों का प्रमुख स्वर हैं. उन्होंने आगे कहा कि पंकज मित्र अपनी कहानियों में समय और सत्ता की चकाचौंध को विखंडित करते हैं. वे चरित्रों को उनकी तमाम कमज़ोरियों के साथ उनकी वास्तविकता में प्रस्तुत करते हैं इसलिए उनके यहाँ परंपरागत चरित्र नहीं पाए जाते. उनकी कहानियों में आजके पूँजीवादी समाज का भयावह चित्रण होता है एवं इसकी त्रासद सच्चाई दृष्टिगत होती है. पुरस्कार प्रदान किए जाने पर सम्मानित लेखक  मित्र ने आत्म उद्बोधन में कहा कि स्मृतिहीनता के इस दौर में स्मृति को सहेजने का जो कार्य इस सम्मान समारोह के माध्यम से हो रहा है वह प्रशंसनीय है एवं एक लेखक बतौर इस पुरस्कार ने मेरे उत्तरदायित्व का बोझ बढ़ाया है. उन्होंने आगे कहा कि आज के दौर में बाज़ार ने मध्य वर्ग की लालसाएँ बहुत बढ़ा दी हैं, झूठ का साम्राज्य फैला हुआ है और लेखन के माध्यम से इसे तोड़ने का कार्य करने का प्रयास करता हूँ. पुरस्कार निर्णायक के समिति के सदस्य रहे वरिष्ठ आलोचक रवि भूषण ने कहा कि पंकज मित्र उन विरले कथाकारों में हैं जिन्होंने अपने समय के सामाजिक यथार्थ को रचनात्मक यथार्थ बनाया है.

भोजनावकाश के उपरांत द्वितीय सत्र आयोजित हुआ जिसका विषय “हिंदी लेखकों के समक्ष चुनौतियाँ एवं उनका दायित्व” रहा. इस सत्र में विषय प्रवर्तन करते हुए इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर प्रणय कृष्ण ने कहा कि ९० के दौर में प्रारंभ हुई संचार क्रांति ने साहित्य के लिए आवश्यक अवकाश का अतिक्रमण कर लिया है. उन्होंने कहा कि ना केवल लेखक और लेखन सिकुड़ा अपितु साहित्य मात्र भी सिकुड़ गया है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि साहित्य की मुख्यधारा प्रतिरोध की है एवं यही इसका युग्धर्म है. इसके उपरांत अपनी बात रखते हुए इलाहाबाद केंद्रीय

विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर कुमार बीरेन्द्र ने लेखकों के समक्ष चुनौतियों को रेखांकित करते हुए कहा आज प्रतिरोधी साहित्य की जो भी पत्रिकाएँ वे बाज़ार के हमले झेल रही हैं. उन्होंने कहा कि लेखक समाज से रिश्ते बनाने में आनुपातिक रूप से सफल नहीं हो पा रहे हैं. उन्होंने दुःख के साथ कहा कि शोध में भी ज़मीन पर जाकर काम नहीं हो रहा है. ऐसे समय में जब क़स्बों में भी मॉल कल्चर पहुँच गया है ऐसे समय लेखक का दायित्व बहुत बढ़ जाता है. उन्होंने इस संदर्भ में पंकज मित्र की कहानियों मंगरा मॉल का विशेष संदर्भ दिया.


इसके उपरांत विषय पर बोलते हुए पंकज मित्र ने कहा कि लेखक अपने समय को दर्ज करता है. उन्होंने कहा कि ९० के दशक के बाद भूमंडलीकरण ने समाज को बहुत तेज़ी से बदला है और यह भी लेखक का दायित्व है कि वह अपने पाठकों की रुचियों का परिष्करण करे. आज बदली हुई परिस्थितियों में लेखक अपने परिवार में ही अलग थलग पड़ गया है. तकनीकी क्रांति भी लेखकों के समक्ष एक चुनौती की तरह उपस्थित है. लेकिन आदिवासी संस्कृति में इन चुनौतियों का समाधान दिखाई पड़ता है.


इसी क्रम में अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ कथाकार योगेन्द्र आहूजा ने कहा आज वक़्त और समाज ही नहीं मनुष्य भी बदल गया है. वैश्वीकरण और फ़्रीमार्केट के बाद जो दुनिया हमारे सामने आई है वह बिल्कुल नई है और इसने हमारी रचनात्मकता को भी प्रभावित किया है. तुरंती लोकप्रियता ने आत्म समीक्षा, आत्म आलोचना को निरर्थक बना दिया है. उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों पर विचार करते समय हमें पिछली सदी के लेखकों और कवियों जैसे ब्रेख़्त, पाब्लो नेरूदा, लोर्का, सार्त्र और कोर्डवेल को याद करना चाहिए कि संकटपूर्ण समय में उन्होंने कैसे विचारोत्तेजक रचनायें कीं. इस सम्बंध में उन्होंने पंकज मित्र की “कुंजमास्टर” कहानी का विशेष उल्लेख किया.


इसी क्रम में अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ कवि और आलोचक प्रो राजेंद्र कुमार ने कहा कि आज युवाओं के सामने ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर दी गईं हैं कि वे साहित्य की तरफ़ नहीं जा रहे. आज समाज में असहमतियों के लिए जगह सिकुड़ रही है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यदि एक भाषा का लेखक दूसरी भाषा के लेखक को पढ़ने लगे तो हम एक नई बनाने में समर्थ हो सकते हैं. अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ आलोचक रवि भूषण ने कहा कि आज सबसे बड़ी चुनौती मनुष्य होने की है और ये चुनौती लेखक के सामने भी है. उन्होंने आगे कहा कि आज के युग में संवेदनाओं को बचाने की चुनौती सबसे बड़ी है. उन्होंने कहा कि ये निराश होने का नहीं बल्कि आत्मनिरीक्षण का समय है. इस अगंभीर समय में हिंदी के लेखकों से अपेक्षा की जाती है कि वे गंभीरता से लिखें. इसी से हल निकलेगा. कार्यक्रम का संचालन प्रेमशंकर ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रियदर्शन मालवीय ने किया.

विचार गोष्ठी के बाद शास्त्रीय संगीत संध्या का आयोजन किया गया. इसके अंतर्गत सर्वप्रथम पंडित अनूप बनर्जी ने एकल तबला वादन प्रस्तुत किया उसके उपरांत सिन्थेसाइज़र पर पंडित विजय चंद्रा ने राग बागेश्वरी की प्रस्तुति करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. उनके साथ तबले पर संगत की पंडित अनूप बनर्जी ने.

इसके उपरांत पंडित प्रवर टंडन ने बांसुरी पर राग मालकोश की बेहद सजीव प्रस्तुति दी. उनके साथ तबले पर साथ दिया अजय बनर्जी ने. इसके उपरांत प्रभाकर कश्यप एवं दिवाकर कश्यप की जोड़ी गायन की प्रस्तुति के माध्यम उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते रहे. सांगीतिक सत्र का संचालन रत्नेश दुबे ने एवं धन्यवाद ज्ञापन उत्कर्ष मालवीय ने किया.

इस आयोजन में प्रो ओम् प्रकाश मालवीय के वृहत परिवार के अलावा बड़ी संख्या में शहर के साहित्य और संगीत प्रेमी श्रोता उपस्थित रहे.

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