आत्मविश्वास का संवर्धन करता है शोध – प्रोफेसर डीएस चौहान
रिपोर्ट:कुलदीप शुक्ला
विकसित होनी चाहिए शोध की संस्कृति- प्रोफेसर सीमा सिंह,राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में 10 दिवसीय शोध प्रविधि पाठ्यक्रम प्रारभ,उ प्र राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर समाज विज्ञान विद्या शाखा के तत्वावधान में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित 10 दिवसीय शोध प्रविधि पाठ्यक्रम का उद्घाटन सोमवार को सरस्वती परिसर स्थित लोकमान्य तिलक शास्त्रार्थ सभागार में आयोजित किया गया ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर दुर्ग सिंह चौहान, पूर्व कुलपति, एकेटीयू, लखनऊ ने कहा कि शोध में सकारात्मकता होनी चाहिए क्योंकि सकारात्मकता शोध को परिणाम तक पहुंचाने में सहायक होती है। उन्होंने बताया कि शोध व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास का संवर्धन करता है, जो अंततः उसकी संभावनाओं के विकास में योगदान देता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य ऐसा प्राणी है जिसकी जिज्ञासाओं का कोई अंत नहीं होता और इसीलिए शोध एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह ने प्रतिभागियों को शोध की बारीकियों का यथासंभव अनुपालन करने के लिए प्रोत्साहित किया। कुलपति प्रोफेसर सिंह ने कहा कि बिना किसी सामाजिक संदर्भ के शोध अर्थहीन हो जाते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समस्त शोध संस्थानों में शोध की एक संस्कृति विकसित होनी चाहिए। जिससे शोध सार्थक और निष्पक्ष बनने की ओर अग्रसर हो।
विशिष्ट अतिथि डॉ मुकुल चतुर्वेदी, उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य उच्चतर शिक्षा परिषद, लखनऊ ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में वर्णित प्रावधानों के दार्शनिक आयामों एवं आधारों से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन शैली को सम्यक रूप को शोध के क्षेत्र में आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। मौजूदा शासन में शिक्षा की दशा और दिशा में गुणात्मक एवं सकारात्मक परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा कि शोध को भारतीय भाषाओं में भी आगे बढ़ाया जाना चाहिए। योग, ध्यान तथा संस्कृत पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर राकेश कुमार मिश्रा ने शोध प्रविधि के पाश्चात्य एवं प्राच्य परंपराओं की समीक्षा की। उन्होंने बताया कि पाश्चात्य शोध प्रविधि पर विद्वत जगत में सैद्धांतिक आधार पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है। ऐसे में परंपरागत भारतीय शोध प्रविधि अधिक समीचीन लगती है। उन्होंने कहा की सामाजिक विज्ञानों के लिए सही अर्थों में वही शोध प्रविधि समीचीन होगी जो एक समावेशी एवं सम्यक दृष्टि प्रदान करती हो। उन्होंने कहा कि 4 प्रकार से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। जिसमें प्रत्यक्ष, अनुमान,उपमान और शब्द प्रमाण प्रमुख हैं जबकि यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने में 16 चीजों की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि तर्कशास्त्र ज्ञान का प्रवेश द्वार है। हमें साध्य साधन दोनों का समुचित ज्ञान होना चाहिए।
इससे पूर्व कार्यक्रम के प्रारंभ में समाज विज्ञान विद्याशाखा के प्रभारी निदेशक प्रोफेसर एस कुमार ने मंचासीन विशिष्टजनों का स्वागत किया। शोध प्रविधि पाठ्यक्रम के निदेशक डॉ आनंदानंद त्रिपाठी ने 10 दिवसीय शोध प्रविधि पाठ्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यशाला का संचालन पाठ्यक्रम के सह-निदेशक डॉ त्रिविक्रम तिवारी एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ संजय कुमार सिंह ने किया।
इस पाठ्यक्रम में देश के 9 राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली एवं तमिलनाडु से कुल 172 आवेदन प्राप्त हुए। जिनमें से चयनित 30 प्रतिभागियों को प्रतिभाग करने का अवसर प्रदान किया गया है। संपूर्ण पाठ्यक्रम में कुल 30 व्याख्यान होंगे, जिसमें विशेषज्ञ के रूप में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं आचार्य अपना व्याख्यान देंगे। पाठ्यक्रम का समापन 02 मार्च 2023 को समापन सत्र के साथ होगा। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के निदेशकगण, आचार्यगण, सह आचार्यगण, सहायक आचार्यगण, समस्त शोधार्थी एवं देश के विभिन्न क्षेत्रों एवं विश्वविद्यालयों से आए हुए विभिन्न प्रतिभागी उपस्थित रहे।