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शंकरगढ राजघराने की 34 वीं पीढ़ी की दशहरे पर नज़राने की परंपरा आज भी बरक़रार

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शंकरगढ राजघराने की 34 वीं पीढ़ी की दशहरे पर नज़राने की परंपरा आज भी बरक़रार

प्रयागराज (शंकरगढ )

उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 365 गांव की जनता आज भी अपने राजा के दर्शन के लिए इस पर्व पर इकठ्ठा होते हैं,राजघराने के 34 वें राजा महेंद्र प्रताप सिंह अपने राजसी पोशाक में हजारों जनता के बीच आकर संबोधित करते हैं,34 पीढ़ी पहले बघेल राजवंश के राजा कंधरदेव को कसौटा रियासत का राजा बनाया गया जो अब शंकरगढ के नाम से जाना जाता है।

महाराज व्याघ्रदेव गुजरात से चलकर रीवा आकर अपनी राजधानी बनाई,जो मध्यप्रदेश बनने से पहले विंध्य प्रदेश हुआ करता था,महाराजा व्याघ्रदेव के पांच संतानों में सबसे छोटे पुत्र कंधरदेव को कसौटा का राजा बनाया गया जो अब शंकरगढ के नाम से जाना जाता है.पूरे देश मे शंकरगढ एक ऐसा राजघराना है जिसमे 34 पीढ़ी से चली आ रही दशहरे पर नज़राने एवं राजगद्दी तथा शस्त्र पूजन की परंपरा आज भी बरकरार है।

आपको बता दे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद के यमुनानगर के उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित शंकरगढ राजघराना जो पहले कसौटा राजघराने के नाम से जाना जाता था,ये बहुत पुराना राजघरना माना जाता है। शंकरगढ राजघरना जोकि रीवा रियासत का एक परिवार है। ये राजघरना महाराजा व्याघ्रदेव के वंशज है। जिन्हें बघेल राजा कहा जाता है,महाराजा व्याघ्रदेव नाम से राजपूतों का बघेल खानदान कहा जाता है। महाराजा व्याघ्रदेव गुजरात से चलकर मध्यप्रदेश के रीवा में आकर बस गए।

जो मध्यप्रदेश राज्य बनने से पहले विंध्य प्रदेश के नाम से जाना जाता था। महाराजा व्याघ्रदेव के पांच पुत्र हुए जिसमे सबसे छोटे पुत्र कंधरदेव को कसौटा का राजा बनाया गया जो अब शंकरगढ के नाम से जाना जाता है,इसी राजघराने के 34 वें पीढ़ी के राजा महेंद्र प्रताप सिंह शंकरगढ की जनता के स्नेह एवं प्यार को देखते हुए अपने पूर्वजों की इस परंपरा को बरकरार रखा है। पूरे देश मे राजतंत्र समाप्त हो गया जिसके साथ सभी राजाओं वाली परंपराएं भी समाप्त हो गई,लेकिन 34 पीढ़ी से दशहरे पर होने वाली परपंरा आज भी कायम है। परंपरा के अनुसार दशहरे के दिन सुबह राजघराने के प्रतीक चिन्ह झंडे की पूजा होती है,इसके बाद राजगद्दी एवं शस्त्र पूजन होता है,इसके उपरांत रात्रि को राजा अपने राजसी पहनावे में आकर जनता के बीच रूबरू होकर मिलते है,परंपरा के अनुसार 34 वें राजा महेंद्र प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 365 गांव से आए हुए जनता को संबोधित करते हैं। पूरे कसौटा क्षेत्र की जनता आज भी इनको अपना राजा मानते हुए पुराने परम्परा के अनुसार नज़राना पेश करती है, परम्परा के अनुसार पहले राजा के खानदानी लोग नज़राना पेश करते है उसके बाद क्षेत्र से आए हुए आम जनता अपने राजा को नज़राने के तौर पर 11 रुपए या 21 रुपए पेश करती,नजराना ग्रहण करने के बाद राजा द्वारा अपने हाथों से एक पान का बीड़ा दिया जाता है, पान देना इस पर्व पर शुभ माना जाता है। सबसे बड़ी बात दशहरे के दिन राजपरिवार के सभी बघेल वंश के राजपूत जो कि इसी खानदान के है जो कई गांवों में बसे है,वो इसी दिन अपने राजा के साथ भोजन ग्रहण करते हैं।

दशहरे के दिन से तीन दिनों तक चलने वाला ऐतिहासिक मेले का भी आयोजन किया जाता है,ये मेला भी सैकडों साल से लग रहा है। जिसमे दूर दराज के व्यापारी इस मेले में तरह तरह की दुकाने लेकर आते है और बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के झूले एवं मौत का कुंआ आकर्षक का केंद्र होता है। सैकड़ों गांव की महिलाएं बच्चे एवं पुरुष तीन दिनों तक मेले का लुत्फ उठाते हैं।

इस मौके पर राजा महेंद्र प्रताप सिंह,युवराज शिवेंद्र प्रताप सिंह,भंवर त्रयम्बकेश्वर प्रताप सिंह,अमरेंद्र सिंह (मुन्नू दादा) अनय प्रताप सिंह प्रधानाचार्य,मुलेन्द्र प्रताप सिंह,मुन्ना सिंह लोटना गांव,सैयद औसाफ़ अली,अनूप केसरवानी,सचिन वैश्य, छेदीलाल कोटार्य चेयरमैन प्रतिनिधि, गोपाल दास गुप्ता,रोहित केसरवानी,कुंजन लाल मिश्रा,गंगा प्रसाद द्विवेदी सोहरवा, सूर्यनिधान पांडेय,त्रियुगीकांत मिश्रा,चंदमणि त्रिपाठी,चंद्र प्रताप सिंह,त्योंथर विधानसभा से कांग्रेस प्रत्यासी रमाशंकर सिंह पटेल,अशोक सिंह बरगड़ी,सुनील सिंह राजू एवं कार्यक्रम का संचालन पूर्व प्रवक्ता गुलाब सिंह ने किया।

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