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अनाथ की नाथ बनी अदालत, 7 साल से बिना पैरवी के बंद अभियुक्त को दिया इंसाफ, उसके जेल से छूटने की जगी आस

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अनाथ की नाथ बनी अदालत, 7 साल से बिना पैरवी के बंद अभियुक्त को दिया इंसाफ, उसके जेल से छूटने की जगी आस

उजाला न्यूज़ ब्यूरो
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रिपोर्ट आलोक मालवीय

बीते दिनों न्यायालय ए डी जे 13 पूनम त्रिवेदी के सामने एक अलग तरह का मामला पेश हुआ , जिसमें विचाराधीन बंदी सुनील नगीना का विचारण ही पिछले 6 साल से न्यायालय के सामने नहीं शुरू हो सका था।

प्रयागराज। जनपद न्यायालय में अजीबोगरीब इस मामले में विचाराधीन बंदी सुनील नगीना के ऊपर आईपीसी की धारा 399 और 402 का आरोप था जोकि पिछले 7 साल से नैनी सेंट्रल जेल में पूर्व से ही बंद था, जिसकी सुनवाई शुरू न हो सकी थी । बंदी नगीना के गरीब होने के कारण वह कभी कोई अधिवक्ता नहीं कर सका और पैरोपकार के अभाव में कभी उसके मामले की जानकारी किसी भी स्तर पर न्यायालय को नहीं हो सकी,जिस कारण उसके मामले में किसी प्रकार की प्रगति नहीं हो पाई और समक्ष न्यायालय भी वह पेशी पर नहीं जा सका, आख़िरकार एक बेबस आम भारतीय नागरिक के न्याय की आशा में बतौर अभियुक्त उसकी फाइल धूल खाते लोअर कोर्ट में ही दम तोड़ती रही।

इसी बीच जेल अधीक्षक रंग बहादुर पटेल,जेलर के बी सिंह और जेल पीएलवी राकेश तिवारी,अशोक नकवी के द्वारा जरिए लीगल एड डिफेंस काउंसिल सिस्टम यह मामला जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चीफ डिफेंस काउंसिल विकास गुप्ता को निस्तारण हेतु सुपुर्द किया गया।

दौरान पैरवी चीफ़ डिफेंस काउंसिल ने पाया की बंदी से संबंधित पत्रावली लोवर कोर्ट में कहीं गुम है जिसकी पैरोकारी के अभाव की वजह से और बंदी के अज्ञानता वश पेशी पर ना आ पाने के कारण उसके मामले में कभी ध्यान नहीं दिया गया, हालांकि अधिवक्ता विकास गुप्ता द्वारा लगातार प्रयास करते हुए लोअर कोर्ट से पत्रावली को ढूंढवा कर कमिट कराते हुए पत्रावली को जिला एवं सत्र न्यायाधीश संतोष राय के यहां पेश कराया गया, जिसमें अधिवक्ता विकास गुप्ता और उनके असिस्टेंट अभिषेक त्रिपाठी, नीरज पांडे की ओर से अभियुक्त को 436ए सीआरपीसी का लाभ देते हुए तत्काल प्रभाव से छोड़ देने की प्रार्थना की गई, जिसमें जिला जज द्वारा उक्त पत्रावली को गुण दोष के आधार पर पत्रावली की तमाम तकनीकी पहलुओं को दृष्टिगत करते हुए एडीजे 13 के यहां त्वरित रूप से निस्तारण हेतु स्थानांतरित कर दिया गया।
स्थानांतरण के बाद से ही डिफेंस काउंसिल एवं उनकी विधिक टीम द्वारा इस विशिष्ट मामले की लगातार पैरवी किए जाने पर एडीजे 13 द्वारा *”न्याय में देरी ही अन्याय है”* के सिद्धांत को अवधारित करते हुए *मात्र एक माह* के भीतर ही संबंधित पत्रावली के अन्य मुलजिमानों से बंदी सुनील नागिन की पत्रावली पृथक करते हुए, उसकी सुनवाई कर गुण दोष के आधार पर पत्रावली निस्तारित करते हुए मुलजिम के छूटने की रास्ते को आसान कर दिया।

दिनांक २४.०७.२४ को सुनील नगीना को जैसे ही एडीजे 13 ने आदेश सुनाया, दोपहर लंच बाद, भरी अदालत में बंदी सुनील नगीना फूट-फूट कर रोने लगा और दोनों हाथों से न्यायालय को दुआ देते हुए न्याय की जीत और सत्य की जीत मानकर एडीजे 13 के सभी आदेशों को सर माथे लगाया ।

इस मौके पर न्यायालय द्वारा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से दी जा रही निशुल्क विधिक सहायता के लिए लीगल एड डिफेंस काउंसिल सिस्टम के चीफ़ विकास गुप्ता को विशेष बधाई देते हुए उनके कार्यों की सराहना कर गरीब और असक्त लोगों लोगों के प्रति भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड के संदेश को दोहराते हुए कहा की “लोकतंत्र में न्यायपालिका जनता के प्रति पूरी तरह से जवाब देह थी ,है और रहेगी ”
इसके साथ ही सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर मुलजिमान को सुधारात्मक दंड प्रक्रिया के चलते उन्हें जेल से छुड़ाने की मुहिम में अधिवक्ता विकास गुप्ता का साथ दे रहे उनकी लीगल टीम की भी प्रशंसा किया ।
इस मौके पर न्यायालय में एक भावुक वातावरण बन गया जिसमें न्यायालय में अभियोजन अधिवक्ता शिवशरण श्रीवास्तव, राधा रानी बचाव पक्ष अधिवक्ता विकास गुप्ता , बसंत कुमार, नीरज पांडे ,बसंत कुमार ,मोहित सिंह ,लवलेश त्रिपाठी, गौरव सिंह, ललित त्रिपाठी तथा विधि प्रशिक्षु छात्र एवं पैरालेगल वॉलिंटियर सचिन त्रिपाठी, किफायतुल्लाह, संतोष सिंह, पंकज सरोज आदि उपस्थित रहे।

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